शनिवार, 8 जुलाई 2023

कभी तूती तेरी बोलती थी---

क्यों कलम निष्प्राण पड़ी तुम खोलो ना जिह्वा का द्वार 
घुमड़ रहा जो तेरे अन्तर्मन में कर दो व्यक्त सारा उद्गार 
भीतर जो तेरे छटपटाहट राष्ट्र,समाज और  जगत लिए 
इतनी अन्दर तेरे कलम है ताक़त उगल दो सारा अंगार ।

एक समय था कवियों की कलम से फूटती थी चिन्गारी 
क्रान्ति लिए शीघ्र उतर विद्रोह पर बन जाती थी कटारी 
ब़रछी,भाले,बाण,कृपाण कभी तेरे आगे शीश नवाते थे 
ज्ञान, बुद्धि,विवेक का दीप जला हर लेती थी अंधियारी ।

शासन तन्त्र का बखिया उधेड़ झुका लेती थी चरणों में
आवाज शोषितों की बन तलवार बन जाती थी वर्णो में
कहाँ गई कलम वह पैनी धार तेरी,सुस्त पड़ी बेबस सी
कभी इतिहास बदलने का दम रख गरजती थी हर्फ़ों में ।

नहीं तुझे सत्ता का भय सत्ताधीशों की चूल हिलाती थी
बेजुबान होते भी बेबस गरीबों की जुबान बन जाती थी
थी विरह,वेदना की सखी तूं दुख-दर्द की सहचरी भी तूं
कहाँ गई वरासत छोड़ जो उर के भाव समझ जाती थी । 

जब भी बग़ावत पर उतरती तेरे पीछे दुनिया डोलती थी 
हिल जाता था सिंहासन जब तूं निर्भीक मुँह खोलती थी 
उठो भरो हुंकार,प्रतिकार कर शोषितों का निनाद लिखो 
क्यों पड़ी नैराश्य तूं भीरू बन कभी तूती तेरी बोलती थी ।

वर्णों--शब्दों,  नैराश्य—निराश,  भीरू--डरपोक,  
निनाद--आवाज 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

बुधवार, 5 जुलाई 2023

ख़ामोश नहीं होना

ख़ामोश नहीं होना --

ख़ामोशी की वाणी से झनझना जातीं दीवारें 
ख़ामोशी और भी संगीन बेहतर लड़ लें प्यारे ।

नाराज भले हो जाना पर निःशब्द नहीं होना
चुप का वार असह्य बहुत,ख़ामोश नहीं होना 
कह सुन लेना पर ख़त्म ना करना वार्तालाप 
लड़ लेना, झगड़ लेना पर ख़ामोश नहीं होना ।

जरा सी ज़िन्दगी है तमाशा ना बने ज़िन्दगी
अन्दर का शोर बता देना ख़ामोश नहीं होना
ख़ामोशी की किताब में दास्तान छुपाते क्यों
आँखें बांच लेतीं हर भाव,ख़ामोश नहीं होना ।

कहीं ख़ामोशी के सन्नाटे में दम ना घुट जाए
शब्द भी लब का पता ऐसा ना हो भूल जाएं
ओढ़ ख़ामोशी का लबादा कह जाते हो सब 
कहीं ख़ामोशी से रिश्तों में विष ना घुल जाएं ।

घातक होती है ख़ामोशी शोर मचाती अन्दर 
ख़ामोशी का रहस्य बता देती जिह्वा अक्सर 
लड़ते भीतर के शोर से निर्वाक् रह बाहर से 
तूफ़ां से पूर्व की ख़ामोशी बरपा जाती कहर ।

निर्वाक्-- मौन
शैल सिंह 

 

गुरुवार, 29 जून 2023

भर उर में भगवा प्रेम

सिंहनाद कर गरज उठी हैं  आज म्यान से तलवारें
जागो हिन्दुस्तानी जागो देश की माँ,बहनें ललकारें
कहीं अनर्थ ना हो जाये अध्याय अहिंसा का पढ़ते
निज स्वार्थ लिए होश हवास खो जयचंद सा बनते ,

धर्म संस्कृत के रक्षार्थ यदि प्राण विसर्जित हो जाए 
ग़र रामराज्य,हिन्दुत्व लिए जीवन समर्पित हो जाए 
चिंता नहीं करना तोड़ मर्यादा की पांव बंधी जंजीरें
चीरने को शत्रु का सीना तुम्हें उठानी होंगी शमशीरें ,

गूंजे जय श्रीराम का जयकारा भगवा ध्वज लहराये
दिखा हिन्दुत्व की ताकत ब्रम्हांड का सर झुक जाये
सूर्य भी भगवा के लिबास में अपना प्रभुत्व दिखाता 
भगवा रंग में सांध्य की लाली मन को बहुत है भाता ,

हिन्दुस्तान की धरती हिन्दुत्व का परचम लहराना है
घाती गद्दारों को धूल चटा रामराज्य फिर से लाना है
मुगलों,अंग्रेजों का इतिहास बदल भूगोल बदलना है
भगवामय कर भारत,हिंदुत्व का कोहराम मचाना है ,

मिट गये मिटाने वाले नहीं मिटा सनातन धर्म अमर
ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र भले हैं हिन्दुस्तानी हैं मगर
मंदिर,टीका,जनेऊ,कलावा हिन्दुत्व की पहचान रहे
नहीं किसी छलावे में बनना स्वार्थी कायर ध्यान रहे ,

कट्टर हिन्दू बनकर फैलानी तुम्हें शेरों जैसी दहशत
भर उर में भगवा प्रेम,मिटानी तुम्हें आपसी नफ़रत
आतंक,जिहाद के संत्रास से उबाल लहू में आया है
हिन्दुओं में एकता लाने को बागी मशाल जलाया है ,

बनो शेरनियों भारत की काली,दुर्गा झाँसी की रानी 
लव-जिहाद की बलि चढ़ो ना करो कुछ कारस्तानी 
कुछ छुपे संपोले आस्तीन में नित पैंतरे बदल रहे हैं
भीतर-भीतर खेल खेल रहे तेरे देश को कुतर रहे हैं ,

जो सियासी कलमुहें आकंठ नशे में धुत्त हरे रंग के  
उन्हें औकात दिखानी होगी उनका बेड़ा गर्क करके
भाँप राष्ट्रद्रोहियों की शातिर चालें जागा हिन्दुस्तान 
सभी राष्ट्रभक्त हुए रामभक्त गूंजा नारा जय श्रीराम । 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

क्यूँ छेड़े मन का इकतारा

कितने दर्द से गुजरे होंगे शब्द  जज़्बात उकेरने से पहले 
कागज भी कितना तड़पे होंगे मनोभाव उमड़ने से पहले 
अनुबंध किये तुम साथ निभाने का क्यूँ इरादे बदल दिए 
मेरे साये से भी कतराने लगे तुम सैर के रास्ते बदल दिए ।

पास मेरे ऐसे अल्फ़ाज़ नहीं जिसमें व्यक्त करूं एहसास 
दर्द के पास भी जुबां नहीं जो कर सके अन्तस की बात 
कैसे जख़्म दिखाऊँ दहर को जो दिखते नहीं किसी को 
भीतर-भीतर होता उर गीला किससे करूँ बयां जज़्बात ।

कभी ना थकतीं बोझल हो पलकें पर थक जाती है रात 
तन्हाई में तसल्ली भी अक्सर तज देती तन्हाई का साथ 
मेरे अवसाद का कोई करे उपचार या कर दे दवा ईज़ाद 
कोई ना पूछता ख़ैरियत ग़म में, छोड़ देते अपने भी हाथ ।

जैसे शाख़ से सुमन जुदा हो कुम्हलाकर हो जाता तनहा 
वैसे ही थम गया है दिल का स्पंदन याद कर बीता लम्हा 
जब नहीं थे तुम मेरे लकीरों में क्यूँ छेड़े मन का इकतारा 
क्यों ख़ुद को मुझमें छोड़ा सजा आँखो में ख़्वाब सुनहरा ।

दर्द ने ली जब-जब अंगड़ाई  मैंने अश्क़ों से सहला लिया 
टूटे दिल की किरिचें जोड़ रफ़्ता-रफ़्ता दिल बहला लिया 
बेशुमार नज़राना दर्दे-दिल का रख दी दिल के तलघर में 
भर गया हृदय का आगार शायरी का शौक़ अपना लिया ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

शुक्रवार, 9 जून 2023

गर्मी पर कविता

अंबर उगल रहा है आग झुलस रही है धरती
सुलग रहे हैं सूरजदेव तपिश से देह दहकती ,

चिलचिलाती धूप में लपटें लू की गरम-गरम 
सूर्ख हो भानु तेवर दिखलाते होते नहीं नरम ,

सिसकें ताल,तड़ाग कण-कण तपे जगत का 
देख विरानी विकल हैं पनिहारिनें पनघट का ,

तरू के तन पे कड़ी धूप ने पीत वस्त्र पेन्हाये
टप-टप चूवे पसीना देह से सर से पांव नहाये ,

ना कटे पहाड़ सा दिन,ना ढले है जल्दी साँझ 
ना कहीं हवा बतास,घर उगले भट्ठी सी आँच ,

जाने क्यों ऐंठे मेघराज जी कुपित हुए बैठे हैं
सरसाते नहीं धरा की छाती खफ़ा हुए ऐसे हैं ,

एसी,कूलर,पंखा भी राहत देने में मजबूर हुए 
तन को तरावट देने वाले मंहगे हैं तरबूज़ हुए ,
 
तापमान बढ़ता जाता  मानसून कब आयेगा
बंजर भूमि के वक्षस्थल अंकुर कब उगायेगा ,

ऐसा दुष्कर भ्रमण हुआ छुट्टियाँ बीतीं बेकार
गर्मी डाली विघ्न अवकाश में घर बैठे लाचार ,

कुदरत के सौन्दर्य से,जो हम खिलवाड़ किये
बाग,विटप,वृक्ष काट,जंगल से छेड़छाड़ किये ,

प्रकृति दे रही उसका प्रतिफल मिज़ाज बदल  
तरसें गाछ के छांव को चलो करें आज पहल ,

फिर करें मिशन शुरू हम,नये पेड़ लगाने का
प्रकृति देगी अभयदान जगत को मुस्काने का ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 
 

रविवार, 30 अप्रैल 2023

दिखा दो जोश तरुणाई का

ऐ भारत के मेरे नौजवानों  ललकारो अपने  यौवन को 
बाधाओं,व्यवधानों  को काटो, संवारो  अपने लक्ष्यों को,   

भरो यौवन में साहस,संकल्प करो अद्भुत कुछ करने को
यौवन की आँधी  समाधान कर दे  दुर्लभ समस्याओं को ,

लक्ष्यहीन जीवन भी  क्या जीवन है सदा लक्ष्यनिष्ठ बनो
यौवन को गतिमान बना  युवाशक्ति जगा  सत्यनिष्ठ बनो ,

नहीं व्यर्थ गंवाओ जीवन अपना  त्याग दो विकृतियों को     
पहचानो अपनी क्षमता,उबारो दलदल से दुष्प्रवृत्तियों को ,

गम्भीर चुनौतियों से लड़ना सुखदेव,भगतसिंह बनना होगा
राष्ट्रहित लिये महावीर,गौतम सा युवाओं तुझे उभरना होगा ,

दिग्भ्रमित हो मत करो उल्लंघन समाज की मर्यादाओं को
सही मार्ग अपनाओ छोड़ो बेकार,विकृत निरंकुशताओं को ,

जलाकर नई क्रान्ति की ज्वाला  फिर से नया आगाज करो
जाति,धर्म में नहीं बंटना  देश लिए यह प्रण तुम आज करो ,

पहल करो एकता की मशाल से,नये भारत की अरूनाई का
राष्ट्र विकास के लिए एकजुट हो दिखा दो जोश तरुणाई का ,

धर्म,संस्कृत की अलख जगा,देश का जग में ऊँचा नाम करो 
वीर शिवाजी,राणा जैसा आतंक,अनाचार का प्रतिकार करो ,

बनाओ खुद को चट्टानों सा मजबूत भरो भुजाओं में ताकत 
ऐ भारत माँ के वीर पुत्रों दिखला दो वो दुनिया को नज़ाकत ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 


शनिवार, 22 अप्रैल 2023

दो पाट हैं इक नदी के हम

दो पाट हैं इक नदी के हम

जगे तो भी आँखों में
सोये तो भी आँखों में
जर्रे-जर्रे में महफ़िल के   
तन्हाई की पनाहों में ,       

हँसी के फुहारों में       
रोये तो भी आहों में 
चलूँ तो परछाई बन     
संग-संग साथ सायों में ,   

नजर फेरूं जिधर भी
हर पल साथ रहते हो
मुझे तुम छोड़ दो तन्हा
क्यूँ वार्तालाप करते हो ,

मत आ आकर घिरो 
नयन की घटाओं में 
छुप-छुप कर ना बैठो
उर के बिहड़ सरायों में ,

खटकाओ ना सांकल मौन की
ना दो शान्ति पर दस्तक 
बना लूंगी आशियाँ अपना
यादों के उजड़े दयारों में ,

जो गुजरी है वो काफी है
अब ना कोई सौग़ात बाकी है
दो पाट हैं हम इक नदी के 
बस मुसाफिर हैं कगारों में

दर्द से तड़प से मोह हमें
अब तो हो गई है बेइंतहा
ज़िन्दगी के शेष पन्नों को
उड़ाना है मुझे बहारों में ।

शैल सिंह

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...