कितने दर्द से गुजरे होंगे शब्द जज़्बात उकेरने से पहले
कागज भी कितना तड़पे होंगे मनोभाव उमड़ने से पहले
अनुबंध किये तुम साथ निभाने का क्यूँ इरादे बदल दिए
मेरे साये से भी कतराने लगे तुम सैर के रास्ते बदल दिए ।
पास मेरे ऐसे अल्फ़ाज़ नहीं जिसमें व्यक्त करूं एहसास
दर्द के पास भी जुबां नहीं जो कर सके अन्तस की बात
कैसे जख़्म दिखाऊँ दहर को जो दिखते नहीं किसी को
भीतर-भीतर होता उर गीला किससे करूँ बयां जज़्बात ।
कभी ना थकतीं बोझल हो पलकें पर थक जाती है रात
तन्हाई में तसल्ली भी अक्सर तज देती तन्हाई का साथ
मेरे अवसाद का कोई करे उपचार या कर दे दवा ईज़ाद
कोई ना पूछता ख़ैरियत ग़म में, छोड़ देते अपने भी हाथ ।
जैसे शाख़ से सुमन जुदा हो कुम्हलाकर हो जाता तनहा
वैसे ही थम गया है दिल का स्पंदन याद कर बीता लम्हा
जब नहीं थे तुम मेरे लकीरों में क्यूँ छेड़े मन का इकतारा
क्यों ख़ुद को मुझमें छोड़ा सजा आँखो में ख़्वाब सुनहरा ।
दर्द ने ली जब-जब अंगड़ाई मैंने अश्क़ों से सहला लिया
टूटे दिल की किरिचें जोड़ रफ़्ता-रफ़्ता दिल बहला लिया
बेशुमार नज़राना दर्दे-दिल का रख दी दिल के तलघर में
भर गया हृदय का आगार शायरी का शौक़ अपना लिया ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
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