शनिवार, 18 मई 2024

नज़्म ---

अपनी नज़रों में कर लो महफूज़ मुझको 
ताकि कर सको हर पल महसूस मुझको
तुम्हारी नज़रों में रहके देखूं सुहाने नजारे
ज़िन्दगी में रहूं हर पल साथ साथ तुम्हारे ।

खुशबु बन कर तेरी श्वासों में समां जाऊं
तेरी सूरत में मैं ही मैं सबको नज़र आऊं
तूं मेरा मुकद्दर  मैं तेरी मुकद्दर बन जाऊं
दूर कितना भी रहूॅं  तेरे पास नज़र आऊं ।

मुहब्बत के नशे में अगर हो गये बदनाम 
आंखों के देखें ख़्वाब अगर हो गये आम
ग़म नहीं जज़्बात का तोफ़ा देते ही रहेंगे
मोहब्बत की तपिश कर दे भले सरेआम ।

अजनवी होके भी कितने करीब आ गये
रूसवाई के चर्चे आज इस कदर भा गये
तुझपे ऐतबार कर दाग दामन लगा लिये
तुझपे यकीन कर गले तन्हाई लगा लिये ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

गुरुवार, 16 मई 2024

ये तनहाई

ये तनहाई --
सुबह तनहा शाम तनहा 
तनहा ज़िन्दगी का हर लमहा 
परछाईंयां भी अब डराने लगी हैं
सुख चैन ज़िन्दगी का चुरानें लगी हैं 
कैसे कटेगी ज़िन्दगी की बाकी उमर 
तनहा-तनहा लगता आठों पहर
ना जाने किसकी लग गई नज़र 
नहीं तन्हाई का अब कोई हमसफ़र 
अपने चारों तरफ तन्हाई का मेला
भीड़ भरे शहर में भी फिरते अकेला 
न महफ़िल न मयखाना ना कोई खेला
न कोई संगी संम्बन्धी ना कोई चेला
गुज़र रही ज़िन्दगी अकेला अकेला। 
शैल सिंह 

सोमवार, 13 मई 2024

ग़ज़ल----

 ग़ज़ल----
जो लफ़्ज़ों में बयां ना हो वो आॉंखों से समझ लेना
कि करती हूँ मोहब्बत कितना तुमसे वो समझ लेना 
मुझको दीवानगी की हद तक मुहब्बत हो गई तुमसे 
मत कुछ पूछना जो कहें ख़ामोशियाँ वो समझ लेना ।

तेरी हर ज़िक्र पर हर शब्द का शायरी में ढल जाना 
तुझसे बात करते वक़्त नज़र नीची करके शरमाना 
बार-बार मेरी तरफ़ तेरा देखना मेरा यूं घबरा जाना 
अनजाने ही फिर इक दूजे की निग़ाहों में खो जाना ।

मोहब्बत का सुरूर कैसा न जानते तुम न जानें हम 
कितनी मुश्किल भरी राहें न जानते तुम न जानें हम
चल पड़े बेफिक्र इस राह दहर ने जीना किया दुश्वार 
कैसे नयनों ने किया शिकार न जाने तुम न जाने हम  ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

बुधवार, 8 मई 2024

उफ्फ ये गर्मी --

उफ्फ ये गर्मी --

कड़ी धूप पथिक बिचारा ढूंढ रहा तरूवर की छांव 
तनिक छंहा ले विश्राम कर कहीं नहीं है ऐसा ठांव।

प्रकृति संँग खिलवाड़ हो रहा काटे जा रहे हैं जंगल
जल-कल विटप व्यर्थ कर,हो रहा बस अपना मंगल।

अम्बर उगल रहा है आग तपिश से त्रस्त हुई धरित्रि
प्रकृति से छेड़छाड़ देखकर दुख से दुखित हुई सृष्टि।

सूरज अग्नि का बम बरसा रहा पसीने से तर-बतर
तेज धूप में बाहर निकलें कैसे ऐसी गर्मी लगे जहर।

पछुआ पूरवा की हवा बहे प्रचंड सूखे पेड़ औ पत्ते
पंछियों के खोते उड़े,उड़े जा रहे मधुमक्खी के छत्ते।

अटा धूल से आंगन छत ओसारा चिलचिलाती धूप
हलक प्यास से तर होती नहीं ना लगे गर्मी से भूख।

सूनी गलियां सूना दोपहर सब एसी, कूलर में दुबके 
शहर की खामोशी भाए ना चलो गांव बगीचे में बैठें।

प्रदूषण बढ़ रहा शहर में विकसित ऐसा हुआ शहर
गांवों को गंदा कहने वाले जांयें देखें खुशहाल नगर।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

गुरुवार, 2 मई 2024

ज़िन्दगी पर कविता

ज़िन्दगी पर कविता 

दो पल की ज़िंदगी है दो पल जियें ख़ुशी से
हंसकर मिलें ख़ुशी से  खुलकर हंसें सभी से।

बचपन में खेले हम कभी चढ़के आई जवानी
फिर आयेगा बुढ़ापा ख़त्म फिर होगी कहानी
न कुछ लेकर आये थे न ही कुछ लेके जायेंगे
न होगा दिन ऐसा सुहाना न रात ऐसी सुहानी।

दो पल की ज़िन्दगी है दो पल जियें ख़ुशी से
हंसकर मिलें ख़ुशी से  खुलकर हंसें सभी से।

बीता कल न कभी आया न ही आने वाला है 
बस आज में जियें यह पल भी जाने वाला है।
कल की फ़िक्र में ना कभी आज को गंवाइए 
कर मीठी मीठी बातें रूठों को मनाने वाला है।

दो पल की ज़िंदगी है दो पल जियें ख़ुशी से
हंसकर मिलें ख़ुशी से  खुलकर हंसें सभी से।

हम मीठी बोली बोलें घोलें रिश्तों में मिठास 
गुनगुनाते जियें ज़िन्दगी महकायें हम सुवास
हम लुटायें सब पर नेह नये सम्बन्ध बना कर 
सफ़र ज़िन्दगी का चलें मिलकर सबके साथ।

दो पल की ज़िंदगी है दो पल जीलें ख़ुशी से
हंसकर मिलें ख़ुशी से खुलकर हंसें सभी से।

जवानी तो काटी सुनहरे भविष्य की आस में 
पर भविष्य बुढ़ापे का रूप धार खड़ी पास में 
लौट न आने वाले लम्हों की याद में खुश रहें
कल कब किसने देखा बस आज में खुश रहें।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

बुधवार, 1 मई 2024

शायरी

शायरी---

निगाहों के रस्ते दिल में उतरकर
बिन कहे जाने क्या से क्या कह गये
रूह तक मेरा अपने वश में कर लिया 
जाने क्या क्या दिल पर पैगाम लिख गये।

ऐ ख़ुदा उसको भूलना गवारा नहीं 
उससे मिला दे तो तेरा क्या जायेगा 
थोड़ा करले फिक्र मोहब्बत वालों की
इतनी सी कर दे खता तेरा क्या जायेगा।

मेरी चाहत का जादू तुझपे ऐसा चला
कि तुम एहसास दिल में छुपा ना सके
जो दिल की धड़कीं धड़कनें मेरे लिए 
आवाज़ मुझ तक ना आने से छुपा सके।

मत इस तरह मेरे ख्वाबों में आया करो
मचल उठता है दिल मोहब्बत के लिए 
मत सांसों में इस तरह आया जाया करो
अधर फड़क उठते हैं गुनगुनाने के लिए।

तेरी मोहब्बत में दुनिया का हर रंग फीका
तेरी सोहबत में आकर जाना क्या चीज़ है 
ख्वाब बनकर तुम आओ ना मेरे ख्वाबों में 
भटके मुसाफ़िर नहीं तुम बहुत अज़ीज़ हो।

तुझे पाकर दुनिया का सब कुछ पा लिया 
अब ख़ुदा से कुछ मांगने की जरूरत नहीं 
भले ही अब चाहे ख़ुदा हो नाराज मुझसे 
जब तुम्हीं मिल गये किसी की जरूरत नहीं।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

रविवार, 21 अप्रैल 2024

बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                          

मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना 
नटखट भोलापन यारों से कुट्टी-मिठ्ठी झूठा मूठा बहाना
वक्त की गर्द में अल्हड़ भरी मस्ती खुशियों का खजाना
जाने कहाॅं खो गया प्यारे बचपन का प्यार भरा जमाना।
 
सखिन संग आंख मिचौली नीम वृक्ष की कड़वी निबौरी
चाॅंद छूने की ख्वाहिश सपनों की उड़ान पतंग की डोरी
ना कल की फिक्र ना शिकवा किसी से ना कोई निहोरी
ना गर्मी, लू की परवा तितली उड़ाना घूमना खोरी-खोरी।

जब जवां हुए शान्ति खोये गयी आजादी बचपन वाली
मां के आॉंचल का ममत्व खोया रह गया पुलाव ख्याली
परिजनों का दुलार खो गया व्यंजनों के खुश्बू की थाली
पापा के कांधे का मस्ती खोये झूला पड़ा नीम की डाली।

बचपन की खट्टी-मीठी यादें बचपन कितना सलोना था
बारिश में कागज की नाव बहाना हर मौसम सुहाना था
हॅंसने,रोने की वजह ना कोई न कोई नाहक फ़साना था
हर रिश्ते में अपनापन था ना पराया ना कोई बेगाना था।

उम्र के इस पड़ाव पर आ कर यादें बचपन की रुलाती हैं
दादी वाली परीयों की कहानी शाम सुहानी याद आती हैं
सिरहाने से मुठभेड़ कर हसीं मुलाकातें आराम चुराती हैं
इक बार लौट फिर आओ ऐ बचपन यादें बहुत सताती हैं।
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 






बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...