शुक्रवार, 24 मार्च 2023

मैं और अहंकार पर कविता

जैसे धुएं के आवरण में अग्नि का गोला छुपा होता है
वैसे ही प्रत्येक अनुष्ठान तेरा अहंकार में घिरा होता है ।

बचपन कितना सुन्दर निश्चिंत था फिक्र नहीं था कोई 
असमंजस,शर्म की बात ना थी अहंकार नहीं था कोई 
खुश होने पर हँस लेते दु:ख में बिलख-बिलख रो लेते
डांट,फटकार के तुरन्त बाद माँ के गले लिपट सो लेते ।

जब से पग धरे बाहर 'मैं' रूपी विचित्र हवा में बह गये
सम्पूर्ण व्यक्तित्व हो गया बेपटरी संस्कार सब ढह गये 
'मैं" रूपी हवा से पिंड छुड़ा ज्ञान भंडार के द्वार खुलेंगे 
कड़वाहट भरे रिश्तों में तत्पश्चात सुमधुर सौहार्द घुलेंगे ।

मैं ज्ञानी मैं समर्थवान भ्रम में जीवन व्यर्थ बीत जायेगा
कर लें अहं विसर्जित,उर भव्य-दिव्य धाम बन जायेगा 
मैं भाव से मुक्त हो तुम परिपूर्णता का आनंद उठाओगे
वरना होगी प्रगति बाधित जीवन भर रो-रो पछताओगे ।

बुद्धि,शक्ति,सम्पत्ति,रिश्तों के,बावजूद विफल क्यों होते
करती ना 'मैं' की विडंबना भ्रमित हर कार्य सफल होते 
आध्यात्मिक जीवन भी प्रभावित 'मैं' के चक्रवात करेंगे
अहं के बंधन से कर लो जीवन मुक्त भगवन आ मिलेंगे ।


सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

मंगलवार, 21 मार्च 2023

ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है

कैसे भूले गली तुम शहर की मेरे
निशां अब तक जहाँ तेरे पग के पड़े हैं
खुला दरवाजा तकता राह आज तक तेरा
खिड़की पे पर्दे का ओट लिए अब तक खड़े हैं ।

तेरे दीदार को दिल तरसता मेरा
तेरे इन्तज़ार में कैसे दिल तड़पता मेरा
क्या जानो पगले दीवाने दिल का हाल तुम 
कि मेरा होकर भी तेरे लिए दिल धड़कता मेरा ।

ईश्क़ में जख़्म तूने मुझे जो दिया
उसे अंजुमन में मैंने भी आम कर दिया
ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है
टूटे ख़्वाबों की विरासत भी तेरे नाम कर दिया ।

जाने कैसे रिश्ते में दिल बंध गया
भूला धड़कना पर भूला नहीं नाम तेरा
मिले तो सफर में बहुत लोग मुझको मगर
तड़प,बेचैनी,उलझन में बस तूं तेरी याद चितेरा ।

तोड़कर सरहदें जिद्द की एकबार 
बता जाओ आकर हो ख़फ़ा क्यूँ बेज़ार 
ख़यालों में तेरे हुई बावरी मशहूर हो गई मैं
राह देखते अपलक थककर चूर-चूर हो गई मैं ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह

बुरा न मानो होली है रंग डाल

उड़ा रंग-बिरंगा अबीर गुलाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

अलमस्त रंगरसिया पाहुना ने
प्रेमरस बरसा उर के अँगना में
कर दिया काला गुलाबी गाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

रंग दिया मुझे संवरिया ने ऐसे
सब इसी रंग में रंगने को तरसें
देख के गुलज़ार दिल का हाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

पी भंग घर-घर हुड़दंग मचाते
हुरियारे हर रंग अंग पे लगाते
झूम बजाते ढोल,मंजीरे झाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

नाचते गाते सब मस्त उमंग में
जोगीरा सर रर कहते तरंग में 
बुरा न मानो होली है रंग डाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

मन घोले केसर फगुनी बयार
मन से मिलाये मन ये त्योहार 
मलाल मिटा के करदे निहाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

है सबके लिए मंगलकामनाएँ 
हिल-मिल प्यार से पर्व मनाएँ 
रहे ना कोई भी मन में मलाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

रविवार, 5 मार्च 2023

फागुन और वसन्त --कपोल गुलाबी करवा गोरी और हुई छबीली

" कपोल गुलाबी करवा गोरी हुई और छबीली "

मन के धुलें मलाल,अबीर गुलाल से प्यार में
मुबारक सबको होली,भींगें रंगों के फुहार में ।

आया फाल्गुन का महीना बहे फगुनी बयार 
साँसों में घुला चंदन मौसम हो गया गुलज़ार 
दिल हुआ बावरा मिश्री घोले प्राणों में पूरवा 
मधुऋतु का उल्लास लगे खिली-खिली दुर्वा ।

कुसुमित हो गईं कलियां महक उठा उपवन 
रूनझुन बाजी पायल पाँवों में उठा थिरकन 
पत्रविहीन टहनियों पर फूटी फिर से कोंपल
बरस वसंती वर्षा भींगा गई धरा का आँचल ।

हुरियारे हुड़दंग मचाकर पनघट चौपालों पर
थिरकें गागा फगुआ,ढोल,मृदंग के थापों पर
यौवन से गदराये वृक्ष,मंजर सुगंध बिखराया
शोख़ हुईं कलियों पर भ्रमरा उन्मत्त मंडराया ।

कुंकुम,केसर सजा थाल,ऋतुराज पाहुन का
पपीहे,कोयल करें चहक सत्कार फागुन का
इन्द्रधनुषी हुआ अनन्त,छटा बिखरी रंगों की 
झूमकर आई होली,चूनर भींगो गई अंगों की ।

प्रकृति की छवि न्यारी साफ-स्वच्छ आकाश
करें विहार विहंग व्योम में उर में भर उल्लास 
प्रकृति कर आबन्ध फागुन से,दी ढेरों सौगात 
सुर्ख रंगो में चरम पे यौवन टहकें टेसू पलाश ।

बौराया हर नटखट मन,मस्ती भरे त्यौहार में
बदला मिज़ाज बूढ़वों का होली के ख़ुमार में
कपोल गुलाबी करवा गोरी और हुई छबीली
कवियों की कविताएं भी करने लगीं ठिठोली ।

दुर्वा--दूब
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 


सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

किस्मत की लाना कांवर 

वासन्ती उपहार लिये कब,आओगे गांव हमारे मधुवन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन

व्यग्र शाख पर कोंपल,मुस्कान बिखेरें कैसे
बंजर मरू धरा का मन,हरा-भरा हो कैसे
कैसे आलोक बिखेरे,अंशुमाली कण-कण पर
तुम बिन चादर कैसे, प्रकृति ओढ़े तन पर 
दिग-दिगन्त बिखरा दो सौरभ,निकुंज करें अभिनंदन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

चमकूं कैसे भला बताओ,इस निस्सीम गगन में
सुन्दर,स्वप्न सजेंगे कब,बेबस शिथिल नयन में
अलि मधुपान करें कैसे,मस्त पराग के कण का
कब आगाज करोगे,विमल बहार के क्षण का 
ठसक से आ सिंगार करो,सूना कितना नन्दन वन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

कनक रश्मियां मचल रहीं,कोना-कोना चमकाने को
सौरभ को देतीं नेह निमंत्रण,महक से जग महकाने को
मेहमान वसन्ती परदेसी,कब पतझड़ संग तेरी भांवर
सहवास करूं पंखुड़ियों संग,किस्मत की लाना कांवर 
तपता तन ले मृदु अंगड़ाई,सहर्ष दे जाओ नवजीवन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

लता कुञ्ज की बदहाली,कब निखरेगी काया
कब हेमन्त की मंजुल,मोहक,पावन बरसेगी माया
वातावरण,फ़िज़ा में कैसे मदमस्त होंगी रंगरलियां
तपते विराने वन में गुम हैं सतरंगी लड़ियां
लहराता देखूँ नूर तुम्हारा,दो ना अनूठा दरपन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन।

अलमस्त चहकने को व्याकुल अधीर खग,मृग हैं
पद-रज चूमें कब तेरा,बावरे से पागल दृग हैं
चाह क्षितिज में उर्वसी सी मैं मादक इतराऊं
नव उमंग से मस्त कड़ी,मैं मल्हार की गाऊं
मधुमासी परिधान पहन,करना कलियों का आलिंगन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

तरस रही कबसे विलास को,पुरवा की पटरानी
जैसे गांव की अल्हड़ गोरी,पनघट से भरती पानी
पीहर से सौगात लिये,चुनरी सतरंगी मनभावन 
छमक-छमक तुम आना,अलबेले पाहुन आँगन
पतझड़ की सूनी गलियों में सुन कोकिल क्रन्दन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 












सोमवार, 13 फ़रवरी 2023

पतझड़ और वसंत ऋतु

पतझड़ और वसंत ऋतु


झर गये पात सब,हुईं ठूंठ डालियाँ
उजड़े नीड़ पंछियों के हुईं सूनी टहनियाँ  
मुहब्बत ख़िज़ाँ को हो गई सनकी हवाओं से
तो कर बैठा दग़ाबाज़ी ख़िज़ाँ गुमां में बहारों से,

निर्वस्त्र हुए शाख़ उद्दंड हवा के झोंकों से 
विरान हुए सारे बाग बिन खगों के क़स्बों के 
धन्य केलि तेरी कुदरत मनमौजी अठखेलियाँ
कभी सर्द हवाएँ कभी गर्म हवाओं की शोखियाँ,

दृश्य होगा मनोहारी द्वारे आयेंगे ऋतुराज
स्वागत में भू पर पीले,भूरे सजायेंगे वृक्ष पात
पतझड़ ने किया अवशोषण प्रत्येक पदार्थ का
होगा सब्ज़ा का संचार रूत आयेगा मधुमास का,

फिर से होगा कायाकल्प खिलेंगे बहार में
झरे पत्ते ख़िज़ाँ में नई कोंपलों के इन्तज़ार में
उन्मत्त हवा के रूख में जो दरख़्त थे सहक गये
पा सौग़ात सजल नैनों से मधुमास के महक गये,

कलियों ने खोला घूँघट मंडराने लगे भृंग
मधुमक्खियों,तितलियों के उड़ने लगे झुण्ड 
लहलहा उठी सरसों छा गई हरियाली चहुँओर
कोकिल ने छेड़ी मधुर तान लद गये आम्रों पे बौर ।

सब्ज़ा—-हरियाली  , 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

ढल रही है ज़िन्दगी की उमर धीरे-धीरे

                                                
अब तलक उस लमहे को रोके खडी हूँ 
जिसे छोड़ा अधूरा था उसने जिस हाल में
कई अरसे गुजर गये आयेगा वो इन्तज़ार में
कशमकश में जीती रही ज़िन्दगी भरी बहार में ।

मिट ना जाएं कहीं उसके पग के निशां
किसी बटोही को उस पथ ना जाने दिया 
खुला रख छोड़ा है दरीचे का पट आज तक
इक दीदार लिए ही कभी पर्दा ना गिराने दिया
राह शिद्दत से आज भी निहारतीं आँखें उसी का
आस में किसी ग़ैर का नाम अधरों पर ना आने दिया ।

नींद भी उसी की तरह बेवफ़ा हो गई है
सपने पलकों पर बिछाकर दगा दे रही है
मुद्दत से खड़ी हूँ उसी मोड़ पे मैं इन्तज़ार में
मुझको मेरी ही मोहब्बत कैसी सजा दे रही है
कैसे भूल जाऊँ धड़कता दिल ख़यालों में उसके
लगे रूह उसकी मेरे साये से प्रकट हो सदा दे रही है ।

ढल रही है ज़िन्दगी की उमर धीरे-धीरे 
रोज रेत की भाँति मुट्ठी से फिसलती हुई
चंद हसरतों की ख़ातिर चल रहीं साँसें मगर
जीना दूभर लगे चले साथ मौत भी छलती हुई 
कब तक बहलाती दिल दिलासों के खिलौनों से 
ख़्वाब देखती रह गई ज़िन्दगी मोम सी पिघलती हुई ।
सदा--आवाज 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...