पतझड़ और वसंत ऋतु
उजड़े नीड़ पंछियों के हुईं सूनी टहनियाँ
मुहब्बत ख़िज़ाँ को हो गई सनकी हवाओं से
तो कर बैठा दग़ाबाज़ी ख़िज़ाँ गुमां में बहारों से,
निर्वस्त्र हुए शाख़ उद्दंड हवा के झोंकों से
विरान हुए सारे बाग बिन खगों के क़स्बों के
धन्य केलि तेरी कुदरत मनमौजी अठखेलियाँ
कभी सर्द हवाएँ कभी गर्म हवाओं की शोखियाँ,
दृश्य होगा मनोहारी द्वारे आयेंगे ऋतुराज
स्वागत में भू पर पीले,भूरे सजायेंगे वृक्ष पात
पतझड़ ने किया अवशोषण प्रत्येक पदार्थ का
होगा सब्ज़ा का संचार रूत आयेगा मधुमास का,
फिर से होगा कायाकल्प खिलेंगे बहार में
झरे पत्ते ख़िज़ाँ में नई कोंपलों के इन्तज़ार में
उन्मत्त हवा के रूख में जो दरख़्त थे सहक गये
पा सौग़ात सजल नैनों से मधुमास के महक गये,
कलियों ने खोला घूँघट मंडराने लगे भृंग
मधुमक्खियों,तितलियों के उड़ने लगे झुण्ड
लहलहा उठी सरसों छा गई हरियाली चहुँओर
कोकिल ने छेड़ी मधुर तान लद गये आम्रों पे बौर ।
सब्ज़ा—-हरियाली ,
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
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