कैसे भूले गली तुम शहर की मेरे
निशां अब तक जहाँ तेरे पग के पड़े हैं
खुला दरवाजा तकता राह आज तक तेरा
खिड़की पे पर्दे का ओट लिए अब तक खड़े हैं ।
तेरे दीदार को दिल तरसता मेरा
तेरे इन्तज़ार में कैसे दिल तड़पता मेरा
क्या जानो पगले दीवाने दिल का हाल तुम
कि मेरा होकर भी तेरे लिए दिल धड़कता मेरा ।
ईश्क़ में जख़्म तूने मुझे जो दिया
उसे अंजुमन में मैंने भी आम कर दिया
ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है
टूटे ख़्वाबों की विरासत भी तेरे नाम कर दिया ।
जाने कैसे रिश्ते में दिल बंध गया
भूला धड़कना पर भूला नहीं नाम तेरा
मिले तो सफर में बहुत लोग मुझको मगर
तड़प,बेचैनी,उलझन में बस तूं तेरी याद चितेरा ।
तोड़कर सरहदें जिद्द की एकबार
बता जाओ आकर हो ख़फ़ा क्यूँ बेज़ार
ख़यालों में तेरे हुई बावरी मशहूर हो गई मैं
राह देखते अपलक थककर चूर-चूर हो गई मैं ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 23 मार्च 2023 को 'जिसने दी शिक्षा अधूरी तुम्हें' (चर्चा अंक 4649) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
बहुत-बहुत आभार आपका रविन्द्र जी
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद
हटाएं