शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

पुलवामा काण्ड पर लिखी पुरानी कविता

मौजूदा हालात पर

सर  बांध  तिरंगा  सेहरा  माँ 
कर  दुधारी   तलवार   थमा 
फौलादी  बाँहें   मचल   रहीं 
उबल रहा जिस्म में लहू जमा ।

माथे  तिलक  लगा विदा कर
प्रण है  रण में जाना  मुझको 
बैरी  दुश्मन  का  शीश  काट    
चरणों में  तेरे चढ़ाना  मुझको ।

चीत्कार रहा है सिहर कलेजा
पिता,पति,पुत्र  खोया है वतन
घोंपा है कायरों ने पीठ में छुरा 
शांति,वार्ता के सब व्यर्थ जतन ।

बूंद-बूंद कतरे-कतरे का देखना
लूंगा हिसाब जाहिल भौंड़ों का 
खौल रहा है घावों का गर्म लहू  
करूंगा घातक वार हथौड़ों का।

शैल सिंह

रविवार, 17 जनवरी 2021

नव वर्ष पर कविता

   नव वर्ष पर कविता


नवल वर्ष है स्वागत तेरा 
लाना जीवन में नया विहान
नई स्फूर्ति,नये जोश,आनंद से 
भरना नई पतंगों में नभ नया उड़ान ।  

नवल वर्ष हो मंगलमय
बीते वर्ष ने गाया मंगलगीत
अम्बर ने बरसाया फूल हर्ष से
भर अंकवार बसुंधरा ने लुटाया प्रीत ।

नई भोर की नई किरण
सूरज धूप का सेहरा बाँधे
धरा बनी सज-धज के दुल्हन
सधे-सधे पग देहरी धर शरमा लाँघे ।

ओ नव वर्ष के नव प्रभात
भरना नव उजास जीवन में
हर्षो-उल्लास से नूतन सौगातें
उलिचना आँजुरी भर-भर आँगन में ।
 
ऊँच-नीच का भेद मिटाना
प्रीत ज्योति जला हर उर में
हर पल सुनहरा सुखमय बीते
हिल-मिलके गायें नग़मा हम सुर में ।

आने वाला लम्हा मुबारक
मिटे रंजिश,नफ़रत के चाहत 
बीते वर्ष के खट्टे-मीठे अनुभव
बिसार करें हम सब सबसे मुहब्बत ।

मानवता का कर कल्याण 
अरपन रचना हर घर के द्वार
आत्मीयता की अलख जगाना
अद्भूत उन्नति,समृद्धि का दे उपहार ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह

रविवार, 13 दिसंबर 2020

बड़े आदमी होने का दंश

   बड़े आदमी होने का दंश


कुछ खुशियाँ ऐसी क्यों होती हैं 
जो ज़िन्दगी को बेमानी सी बना देती हैं
कुछ ख्वाब कुछ सपने पूरे तो होते हैं मगर
ख़ुद को ख़ुद से क्यों अन्जानी सी बना देती हैं
शोहरत,मूल आचरण से कर देती पृथक को मजबूर
क्यों उपलब्धियां भी ज़िन्दगी परेशानी सी बना देती हैं
औपचारिक व्यवहार की रीति शिष्टाचार से कर देतीं हैं दूर
संवादों हेतु क्यों मानक तय कर ज़िन्दगी हैरानी सी बना देती हैं।

                   अंतर्द्वन्द 


चुप रहकर जीना कितना दर्द भरा होता है 
घुट-घुट आँसू पीना कितना दर्द भरा होता है
मन का मर्म दबा लेना कितना दर्द भरा होता है
वीरानी पीड़ा से गुजरना कितना दर्द भरा होता है
निश्छल आचरण पे लांछन कितना दर्द भरा होता है
मन का वृन्दावन पतझर होना कितना दर्द भरा होता है
मुक्त हंसिनी सा जीवन दुभर होना कितना दर्द भरा होता है ।

               खामोशियों  की जुबाँ 


मेरी ख़ामोशियों से दिल के ग़र अल्फ़ाज़ समझ लेते
काश मेरे सब्र पे भी दिल के ग़र जज़्बात समझ लेते
तो हैरां न होते तुमपे ऐसे उमड़ते अब्र मेरी आँखों के 
हैं ध्रुव से अटल क्यूँ नहीं बरसते ग़र बात समझ लेते ।

शनिवार, 31 अक्टूबर 2020

बेटियों की महत्ता पर कविता


बेटियों की महत्ता पर कविता ''

'' सुराख आस्मां में कर दें इतनी ताब हैं रखते हम ''


हम वो फूल हैं जो महका दें अकेले पूरे चमन को
,हम वो दीप हैं जो रोशनी से भर दें अकेले पूरे भवन को,
हम वो समंदर हैं जो तृप्त कर दें सारे संसार को,
और समेट भी लें अपने आगोश में सारी कायनात को,
हम चाहें तो स्वर्ग उतार लाएं आसमान से ।


गर हम बेटियां ना होतीं विपुल संसार नहीं होता
गर ये बेटियां ना होतीं ललित घर-बार नहीं होता
गर बेटियां ना होतीं भुवन पर अवतार नहीं होता
गर हम बेटियां ना होतीं रिश्ते-परिवार नहीं होता ।

हमने तोड़ के सारे बन्धन अपनी जमीं तलाशा है
दृढ़ इरादों के पैनी धार से अपना हुनर तराशा है
हमने फहरा दिया अंतरिक्ष में अस्तित्व का झंडा
सूरज के शहर डालें बसेरा मन की अभिलाषा है ।

झिझक,संकोच शर्म के बेड़ियों की तोड़ सीमाएं
हौसले को पंख लगा निडर उड़ने को मिल जाएं
सुराख आस्मां में कर दें इतनी ताब हैं रखते हम
बदल जग सोच का पर्दा हमारी शक्ति आजमाए ।

मूर्ख से कालिदास बने विद्वान दुत्कार हमारी थी 
तुलसी रामचरित लिख डाले फटकार हमारी थी 
विरांगनाओं के शौर्य की गाथा जानता जग सारा 
अनुपम सृष्टि की भी रचना अवनि पर हमारी थी ।

इक वो भी जमाना था के इक नारी ही नारी पर
सितम करती थी घर आई नवोढ़ाओं बेचारी पर
संकीर्ण मानसिकता से उबार उन्हें भी संवारा है
पलकों पर बैठा सासूओं ने बहुओं को दुलारा है ।

क़ातर कण्ठों से करती निवेदन माँओं सुन लेना
मार भ्रूण हमारा कोंख में यूँ अपमान मत करना
क्यों हो गईं निर्मम तूं माँ अपने अंश की क़ातिल
हमें बेटों से कमतर आँकने का भाव मत रखना ।

हम जैसे ख़जानों को पराये हृदय खोलकर मांगें
हमारे लिए कभी रोयेंगे आँगन ये दीवार,दरवाज़े
हम परिन्दा हैं बागों के तेरे आँगन की विरवा माँ
रिश्तों की वो संदल हैं खुश्बू से दो घर महका दें ।

करें मुकाम हर हासिल गर अवसर मिले हमको
कर स्वीकार चुनौतियाँ हमने चौंकाया है सबको
लहरा दिया अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पे राष्ट्र का ग़ौरव
बेहतर कर दिखायें गर जगत में आने दो हमको ।

विपुल---विशाल , ललित---सुन्दर ,
भुवन---- जगत , अवनि----पृथ्वी ।

                                                       शैल सिंह 



शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

" कोहिनूरों से भी कीमती अनमोल हैं यादें "

" कोहिनूरों से भी कीमती अनमोल हैं यादें "

शबनम हुई है शोला दिल में छुपाऊं कैसे
चन्द लफ़्ज़ों में दास्तां इतनी सुनाऊं कैसे
हो गये पुराने ग़म जवां देख उसे बज़्म में 
ग़ज़ल सामने उस बुत के गुनगुनाऊं कैसे ।

ये इक आईना है जो लिखी है मैंने ग़ज़ल
हो गईं आँखें सुनने वालों की ऐसे सजल
शिकवा,गिला करना मुनासिब ना समझा 
पिरो दर्द दिल का  गुनगुना दी मैंने ग़ज़ल ।

कुछ अल्फ़ाजों में बयां कर पाती हूँ सुकूं
कुछ क़ागजों पर लिख कर पाती हूँ सुकूं
कुछ परछाईयां रखी बसा दिल,आँखों में 
कुछ धड़कन,सांसों में छुपा पाती हूँ सुकूं ।

कैसे कर दूं आजाद यादों को आगोश से
बंद मन की तिजोरी में हैं जो ख़ामोश से
कोहिनूरों से भी कीमती अनमोल हैं यादें
क्यूँ हर्फ़ों तुम भड़क जाते हो आक्रोश से ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह




बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

" सारी-सारी शब अपनी याद में जगाते रहे "

सारी-सारी शब अपनी याद में जगाते रहे


आती हर बात याद डंसती बैरिन सी रात
प्यासे रह गये जज़्बात ऐसी हुई हिमपात ।

मेरे आँसुओं का कतरा वो दरिया जानके   
प्यास बुझा चला गया  मुशाफिर की तरह
न परखा उदासी न समझा दर्द अश्क़ का
बेपरवाह दिल-ए-ग़म से राहग़ीर की तरह ।

सोचती क्यूं बहे देख उसे अश्रु ये फ़िज़ूल  
ढले अनमोल अश्क़ क्यूं इश्क़ में फ़िज़ूल
भान होता न था वो कभी मुझ पर निशार 
बहने ना देती सब्र तोड़ आँखों से फ़िज़ूल ।

वो आँखों को हसीं ख़्वाब बस दिखाते रहे
सारी-सारी शब अपनी याद में जगाते रहे
जो काजल लगाती आँखों में बड़े शौक से
वे चित्र आरिज़ों पे स्याह रंग के बनाते रहे ।

लब से छेड़ती तरन्नुम है भर आती आँख
लब पर खेलती तबस्सुम ढल जाती आँस
तरन्नुम और तबस्सुम करें  बज़्में गुलज़ार 
नादां ख़ुद को बेज़ार किये गातीं एहसास ।

आरिज़--गाल





शनिवार, 26 सितंबर 2020

" बड़े जिद्दी ख़्वाब तेरे "

इस तरह ना हर रात मेरे ख़्वाबों में आया करो
कि बिखर जायें आँखें खुलते किरचों की तरह ।

सोचों की डगर पर मेरी तुम बन कर हमसफर
आ जाते जाती जहाँ कहीं मुस्कुराते हुए नज़र
बेहिसाब सलीके से  सताने का नायाब तरीका
जाने सीखते कहाँ से आँखों में समाने का हुनर ।

महज खूबसूरत ख़्वाब बन न पलकों पे छाओ
थम जातीं धड़कनें न शोर सिरहानों पे मचाओ
सोने की करूं कोशिशें जब करें करवटें बखेड़ा
बड़े जिद्दी ख़्वाब तेरे रतजगा में हो जाये सवेरा ।

दीदार की ख़्वाहिशों का भी है अजीब सा नशा
मिले फुर्सत कभी तो देख जाना आ कैसी दशा
क्या तेरी आँखों में मेरे ख़्वाब आ पूछते सवाल
तुम्हें भी हैं याद क्या वो शामें सलोनी कहकशाँ ।     

नज़रों का मिलना और मुस्कुराना ज़ुर्म हो गया
कशिश नज़रों में गजब ईश़्क का इल़्म हो गया
इक अजनवी चेहरा ने किया हृदय ऐसा घायल
कि भ्रमजाल में नज़रों के ख़ुद पे ज़ुल्म हो गया ।

कहकशाँ--आकाश में तारों का समूह
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...