बड़े आदमी होने का दंश
कुछ खुशियाँ ऐसी क्यों होती हैं
जो ज़िन्दगी को बेमानी सी बना देती हैं
कुछ ख्वाब कुछ सपने पूरे तो होते हैं मगर
ख़ुद को ख़ुद से क्यों अन्जानी सी बना देती हैं
शोहरत,मूल आचरण से कर देती पृथक को मजबूर
क्यों उपलब्धियां भी ज़िन्दगी परेशानी सी बना देती हैं
औपचारिक व्यवहार की रीति शिष्टाचार से कर देतीं हैं दूर
संवादों हेतु क्यों मानक तय कर ज़िन्दगी हैरानी सी बना देती हैं।
अंतर्द्वन्द
चुप रहकर जीना कितना दर्द भरा होता है
घुट-घुट आँसू पीना कितना दर्द भरा होता है
मन का मर्म दबा लेना कितना दर्द भरा होता है
वीरानी पीड़ा से गुजरना कितना दर्द भरा होता है
निश्छल आचरण पे लांछन कितना दर्द भरा होता है
मन का वृन्दावन पतझर होना कितना दर्द भरा होता है
मुक्त हंसिनी सा जीवन दुभर होना कितना दर्द भरा होता है ।
खामोशियों की जुबाँ
मेरी ख़ामोशियों से दिल के ग़र अल्फ़ाज़ समझ लेते
काश मेरे सब्र पे भी दिल के ग़र जज़्बात समझ लेते
तो हैरां न होते तुमपे ऐसे उमड़ते अब्र मेरी आँखों के
हैं ध्रुव से अटल क्यूँ नहीं बरसते ग़र बात समझ लेते ।
दार्शनिक अंदाज की रचना। प्रभावी व सुन्दर। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
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