शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

" कोहिनूरों से भी कीमती अनमोल हैं यादें "

" कोहिनूरों से भी कीमती अनमोल हैं यादें "

शबनम हुई है शोला दिल में छुपाऊं कैसे
चन्द लफ़्ज़ों में दास्तां इतनी सुनाऊं कैसे
हो गये पुराने ग़म जवां देख उसे बज़्म में 
ग़ज़ल सामने उस बुत के गुनगुनाऊं कैसे ।

ये इक आईना है जो लिखी है मैंने ग़ज़ल
हो गईं आँखें सुनने वालों की ऐसे सजल
शिकवा,गिला करना मुनासिब ना समझा 
पिरो दर्द दिल का  गुनगुना दी मैंने ग़ज़ल ।

कुछ अल्फ़ाजों में बयां कर पाती हूँ सुकूं
कुछ क़ागजों पर लिख कर पाती हूँ सुकूं
कुछ परछाईयां रखी बसा दिल,आँखों में 
कुछ धड़कन,सांसों में छुपा पाती हूँ सुकूं ।

कैसे कर दूं आजाद यादों को आगोश से
बंद मन की तिजोरी में हैं जो ख़ामोश से
कोहिनूरों से भी कीमती अनमोल हैं यादें
क्यूँ हर्फ़ों तुम भड़क जाते हो आक्रोश से ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह




11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 11 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका दिग्विजय जी "सांध्यदैनिक मुखरित मौन" मैं पर मेरी रचना को जगह देने के लिए।

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  2. कैसे कर दूं आजाद यादों को आगोश से
    बंद मन की तिजोरी में हैं जो ख़ामोश से....
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। ।।।

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    1. पुरूषोत्तम जी बहुत प्रसन्नता हुई आपकी प्रतिक्रिया से आपको मेरा धन्यवाद

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  3. आदरणीय रविन्द्र जी धन्यवाद आपका

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  4. यादों का सटीक और सुदर वर्णन क‍िया ...शैल जी ,
    कैसे कर दूं आजाद यादों को आगोश से
    बंद मन की तिजोरी में हैं जो ख़ामोश से
    कोहिनूरों से भी कीमती अनमोल हैं यादें
    क्यूँ हर्फ़ों तुम भड़क जाते हो आक्रोश से ।..वाह

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  5. आपका किन शब्दों में आभार व्क्त करूं बहुत अच्छा लगा आदरणीया

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