मंगलवार, 27 सितंबर 2016

'' क्रन्तिकारी कविता '' शमशीरें मचल रही हैं चोलों में


उरी हमले पर मेरी लेखनी द्वारा बिफ़रती हुई यह दूसरी कविता है ,उरी के शहीदों को समर्पित मेरी इस वीर रस की कविता की एक वानगी ---

शमशीरें मचल रही हैं चोलों में


प्रस्तावना से लेकर उपसंहार तक
ऐ पाकिस्तान तेरी बर्बादी का
पटकथा,कहानी लिख ली भूमिका
ध्वस्त करना ढाँचा तेरी आबादी का ,  

कितनी बार फेंकी है तूने लुत्ती
हमारे अमन चैन के उपवन  में
कितनी बार तूने भड़काए शोले
हमारे जन-मन के शान्त सदन में ,

विकराल हवा संग मिल चिन्गारी
तेरी चमड़ी पर ऐसा क़हर ढहाएगी
अब अंगारों को चैन तभी मिलेगा,जब 
नमक-मिर्च का खाल पे छौंङ्क लगाएगी ,

अनगिनत नासूर दिए हैं तुमने
अब ये उफान नहीं है रुकने वाला
लालकिले की रणभेरी ने हुंहकार कर 
अब खोल दिया है चुप का ताला  ,

दरियायें भी अब समंदर बन कर
व्याकुल हैं पाक तेरी तबाही को
आँसुओं की छछनाईं नदियां
आकुल हैं तेरी भीषण बरबादी को ,

क्यों तेरी अम्मियाँ बस पैदा करतीं
तुझे आतंक,ज़िहाद में झोंकने को
क्यों शिक्षा,संस्कार,चलन को देतीं
चोला आत्मघाती,फ़िदाईन का ओढ़ने को ,

हमारे असंख्य पीरों की मवाद ने
अचूक औषधि ईज़ाद कर ली है अब 
इसका माकूल शोध अब तुझ पर होगा
सहनशक्ति ने पूरी मियाद कर ली है अब 

तेरा घर आतंकवाद का गढ़ है
आतंकी देश तूं घोषित होने वाला
अब चाहे जितना भी मिमिया ले तूं 
जिहादियों को तूं ही है पोषित करने वाला ,

छप्पन गज छाती की दहाड़ तो
दिल्ली के सिंहासन की तूने भी सूनी होगी
ये आवाज ही काफ़ी है नींद उड़ाने को तेरी 
अब ये हुँकार दिन दूनी रात चौगुनी होगी ,

अरे ओ नक़ाबपोश के धूर्त गलियारों
तेरे पापों का पर्दाफ़ाश हुआ है
तेरे दिग्गज मेहरबानों ने ही खींच लिए हाथ 
तभी तो तूं इतना बदहवास हुआ है ,

गिलगित,बलूचिस्तान भी उफनाए हैं
देखना पीओके भी हम ले लेंगे
तेरा दुनिया के नक़्शे से नाम मिटा
तुझे भी मोहरा बना दांव हम खेलेंगे ,

अपने वीर शहीदों की कुर्बानियां
कभी व्यर्थ नहीं हम जाने देंगे
क़तरे-क़तरे का मोल चुकाएंगे
दस-दस लाश बिछा हम दम लेंगे ,

क्यों इतनी नियति में खोट तेरे रे
इन्सान नहीं हैवान है रे तूं
ज़ुल्मतों का खा-खाकर आहार
राक्षस,नरपिशाच,शैतान है रे तूं ,

तेरी लाशों के ही ढेर पर अब
होली,दीवाली का जशन मनाएंगे
एक-एक शहादत के एवज में
सौ-सौ जानों पर गाज गिराएंगे ,

जब हम भी हो गए चौकन्ना तो 
क्यों बिल में घुस गए ओ केंचुओं
कंटियायें बेताबी से तरस रही हैं
साहिल पर आ जाओ ओ कछुओं ,

छुट्टा बकरी के अरे ओ मेमनों
कहाँ दुबक गए हो खोलों में
बहत्तर हूरों के पास नहीं जाना क्या
शमशीरें मचल रही हैं चोलों में ,

हमीं हुए हैं क़ामयाब हर मोर्चे पर 
अरे क़ायरों मैदान-ए-जंग में तो आओ
कृष्ण,अर्जुन के पराक्रम,पुरुषार्थ पर
एक बार कायराना बल तो आज़माओ ,

नदियों का जल भी सुलभ ना होने देंगे
बेहूदों हो जाओ तैयार आपदा झेलने को
जब प्यास से मरना बिलबिलाकर
तब आना कबड्डी हम संग खेलने को ,

रुख हवा ने भी है अपना मोड़ लिया   
सन्धि,समझौते भी बदल देंगे अन्दाज़
तुझे बूँद-बूँद को तरसायेंगी पापी अब 
झेलम ,रावी ,सतलज ,व्यास ,चिनाब ,

इन विषधर साँपों के फन को
यही है अच्छा वक़्त कुचलने का 
इन डोड़हों के फुफकारने से पहले
इनके नस-नस है ज़हर उड़लने का ,

कुछ भितरघाती जयचंदों की भी
जुबानों पर शीघ्र ही जाबा मखने होंगे
कुछ गद्दारों,देशद्रोही,बड़बोलों की
नाकों में भी शीघ्र नकेल कसने होंगे ।

                         




















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