बुधवार, 13 अगस्त 2014

ऐसा है हमारा वतन

ऐसा है हमारा वतन


हमारे वतन के आगे भला क्या बिसात और देश की
गोदी में जिसकी खेलतीं हजारों जातियाँ रंग,भाषा,वेश की।

हमारे वतन के आगे भला क्या बिसात और देश की
सोहबत में जिसके विहँसते हैं सदैव नदी रेगिस्तान रेत भी।

हमारे वतन के आगे भला क्या बिसात और देश की
जहाँ मन्दिरों में गूँजे घण्टियाँ सुनाई दे मस्ज़िद अज़ान की।

हमारे वतन के आगे भला क्या बिसात और देश की
जहाँ ईसा को मिले मान हो सम्मान गुरु गोविन्द महान की।
                                                                         


माँ-बाप ,भाई-बहन ,पत्नी, बेटे-बेटी, गाँव की
सीमा के प्रहरियों तुम्हें सलाम देश जहान की
रख जान हथेली पे रखते लाज माँ के आन की
तेरे बुते महफ़ूज गुलिस्ताँ,चमन हिंदुस्तान की ।

''बन्दे मातरम'' ,''भारत माता की जय''
                                        

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

होली पर कविता

होली पर कविता ---- हम उत्सवधर्मी देश के वासी सभी पर मस्ती छाई  प्रकृति भी लेती अंगड़ाई होली आई री होली आई, मन में फागुन का उत्कर्ष अद्भुत हो...