शनिवार, 7 सितंबर 2013

दिल्ली,बाम्बे के रेप काण्ड और हालात पर 


दिल्ली,बाम्बे के रेप काण्ड और हालात पर 

         नारी जागृति के लिए 

कर इतनी बुलंद आवाज कि घूंट अपमान का अंगार बरसाये
सहनशक्ति सीमा तोड़ दे दुर्गा का विकराल अवतार अपनाये
डरा बगावती मुहिम से, विभत्स व्यभिचार  वाकया ना दुहराये
दूषित सोच का मिटे तमस,अस्तित्व की आ हम ज्योति जलायें 

ऐसे कामान्ध पुरुषत्व पर धिक्कार जो काबू में ना रखा जाये
किसी रक्षक का ऐसा हश्र हो दुबारा कभी सोचा ना ये जाये
इतना क्षत-विक्षत करो अंग कि दुस्साहस तार-तार हो जाये
बेमिसाल तस्वीर करो पेश ऐसी जग सारा शर्मसार हो जाये
दिखा अंतर्द्वंद की वहशत ताकि दरिंदों को आगाज़ हो जाये 
कि क्या हस्ती हमारी भी संसार में  अजूबा अन्दाज़ छा जाये,

क्यूँ अग्नि परीक्षा दें हमीं क्यों चीरहरण हमारा हो सरे राह में
हम अल्पवसना हों या पर्दानशीं या चलती अकेली हों राह में
युवती,किशोरी,बालिका या प्रौढ़ा कहीं हों तनहा रात स्याह में
कोई भी कौन होते है सीमाएं खींचने वाले हमारे हसीं चाह में
ऐसा करो कि पाबन्द मीनारों की टूटें सींखचें,दीवारें ढह जायें
अन्यथा कहीं अमर्ष ऐसा क़हर न बरपा दे कुहराम मच जाये

हम सुन्दर रचना भगवान की पावन माँ,बहन,संगिनी,बेटियां
हमारी शालीनता,सहृदयता को कोई समझ मत कमजोरियां
वक़्त का तगादा बदल ले अब विकृत मानसिकता ये दुनियां
वर्जनाओं के तोड़ विद्रूप पहरे कर ले स्वतंत्र पाँव की बेड़ियाँ
खुद का करो प्रभुत्व कायम पुरुषों के समकक्ष नाम हो जाये
मर्दों के दृश्य नजरिये में हो तब्दीली भष्म ये तकरार हो जाये 

क्यों इज्जत का ठीकरा हमेशा सर हमारे ही सिर्फ मढ़ा गया
क्यों हमें ,हमारी निधि को संरक्षण का मोहताज बनाया गया
त्याग समर्पण की बन मूरत न बस यूँ ही छलती रहो खुद को 
आबरू पर लगी खरोंचें सदा नासूर बनी बेंधती रहेंगी तुझको
कुछ ऐसा करो वहशियों के भूखे जिस्म को आग निगल जाये
लगा दो आग नापाक ईरादों में कि तन कोई दाग ना रह जाये 

कर इतनी बुलंद …।
अमर्ष---आक्रोश 

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