शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

मन इतना आद्र है की बस .... मत पूछिये

     मन इतना आद्र है की बस  ....  मत पूछिये


उरी में शहीद हुए हैं अपने वीर जवान जो उनकी श्रद्धांजलि में
अभी शपथ लो हिंदुस्तान के नौजवानों डटकर इंतकाम लेने का
सिलसिला तभी थमेगा जब घुसकर तुम भी पाकिस्तान के गढ़ में
ऐसा हश्र करोगे मुँहतोड़ जवाब दे बेगैरत छिनालों के छैले ख़ेमे का ।

मच्छर,मक्खी सी माँऐं पैदा करतीं तादातों में वाहियात औलादें
न तहजीब सीखातीं न कोई संस्कार बस जनती रहतीं हरामजादे
न अफ़सोस उन्हें ना फर्क कोई गोजरों की एक टांग टूट जाने का
गर महसूसती वज्र का पहाड़ टूटना मलाल होता कुछ खो जाने का ।

पर तेरी बहना तो थाल सजा बैठी थी इकलौते भाई की राहों में
मेंहदी रचे हाथ भरी चूड़ियाँ जहाँ सिंगार तब्दील हो गए आहों में
हसरत से देखती रस्ता जिन माँओं के आँखों से निर्झर आँसू उमड़े
उन वीर सिपाहियों की शहादत पे नौनिहालों लेने होंगे फैसले तगड़े ।


शीघ्र फतह कर घर लौटो



तुम दुश्मन पर बम फोड़ो
हम दुआ करेंगे तेरी सलामती की
दीवाली नाम तेरे देश के रखवालों
जय वीरों जय माँ भारती की
तुम वीरों के नाम का दीप जला
सजा राखी है थाली आरती की
शीघ्र फतह कर घर लौटो
घर-घर जश्न मने खुशहाली की
ऐ सरहद पर लड़ने वालों
शत-शत नमन और शत-शत प्रणाम
तेरे ज़ज्बों और वतन परस्ती की |
                                                     

सोमवार, 10 अक्टूबर 2016

वीर रस की कविता --ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना

वीर रस की कविता --ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना 



क्यूँ पापों में निर्लिप्त निर्बाध बह रहे अनिर्दिष्ट दिशा में पाकिस्तान ,

क्यों सत्य,अहिंसा की पावन वेदी को हिंसात्मक बनाने पर हो तूले
कश्मीर का तो सवाल नहीं पीओके पर नजर हमारी क्यूँ तुम भूले ,

छोड़िये नवाज़ शरीफ बुरहान वानी की तोतिये रट का सिलसिला
मेरे घर का मामला था वो ग़द्दार,उसे उसके करनी का फल मिला ,

गर कुछ लेहाज बाकी तो पहले निज घर की बिगड़ी तस्वीर संवार
तेरी व्यर्थ कोशिशें काश्मीरियों लिए शाख़ की ढहती दीवार निहार ,

छोड़ दो वानी का कल्ट खड़ा कर कश्मीरी युवाओं को भड़काना
अन्तर्राष्ट्रीय मानकों ने इतना धिक्कारा पर तुझे नहीं आया शर्माना ,

क्यों उसकी फिक्र तुझे इस्लाम अनुसार जन्नत के मजे वो लूट रहा
बहत्तर हुरों के अंगूरी रस का स्वाद इत्मिनान से वानी तो चूस रहा ,

वैश्विक पटल पे इतनी फ़जीहत देखले मक्कार तूं अपने को तनहा
कहाँ गई जनाब की दादागिरी ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना ,

आख़िर क्यूँ हमसे बैर तुम्हें,साज़िश-रंजिश रचते जिन्ना के मरदूदों
पक्के देशभक्त अपने हिंदुस्तानी मुस्लिम यहाँ ना डालो डोरे चूज़ों

पाकिस्तानी हिन्दूओं संग जो किये बर्बरता उन्हें शहीद का दो दर्जा
कहर ढा चुप रखा उन निर्दोषों को कहीं तेरे गुनाहों की ना हो चर्चा

देख तरक्की हिन्दुस्तान की जल-भून क्यूँ खूंखार बन खुंदस रखता
हम मानवता के अंकुर बोते पाकिस्तानी जमीं जिहादी पौधा उगता

मौन तरंगों को करता उद्वेलित तूं हमपे अघोषित प्रहार कर-करके
गरज उठा समंदर अन्तर का भीषण तूफ़ानों के अट्टहासों से भरके ,

पीड़ा और ज्वलन के आरक्त से हुईं शिथिल इन्द्रियाँ भी उन्मादित
तेरे रक्त कणों से उर की प्यास बुझानी,हैं हिंदुस्तानी भी उत्साहित ।

                                                                 शैल सिंह
  

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2016

बता दो शेरों क्या औक़ात तेरे हिंदुस्तान की,


   ' वीर रस की कविता '


सीमाओं पर तो सब कुछ सहते तुम सेनानी
फिर किस आक़ा के ऑर्डर का इन्तजार है
आत्म रक्षा के लिए वीरों तुम पूर्ण स्वतंत्र हो
हैवानों से निपटने का तुम्हें पूर्ण अधिकार है,

स्वयं के जान की कीमत समझो सिपाहियों    
दुश्मनों पर दागो गन ,बारूद औ एटमबम
कायर बन कर राक्षसों के वंशज करते वार
छप्पन गज सीने से टकराने का नहीं है दम,
   
खद-खद ख़ौल रहा जो आज खून जाबांजों
इतना ख़ौफ़ दिखा फट जाए पाकिस्तान की
बहुत खोये हैं लाल भारत माँ ने आज तलक
बता दो शेरों क्या औक़ात तेरे हिंदुस्तान की,

ऐसा उठा बवंडर शान,आन की बात सपूतों
घर के मित्र-शत्रु का फर्क भी ध्यान में रखना
बहुत हुई गाँधीगिरी मानवीयता बहुत दर्शाये
असमंजस क्यों,पैलेटगन हिफ़ाजत में रखना,

मुहूर्त बहुत ही अच्छा दुश्मन मार गिराने का
मटियामेट इन्हें करना संकल्प ठानो दिग्गज़ों
प्रीत पड़ोसी नहीं जानता बार-बार उकसाता
देश कुर्बानी मांग रहा राणा प्रताप के वंशजों,

ऐ कश्मीर के बासिन्दों क्यों धुंध नजर पे छाई
क्यों स्वर्ग की नगरी नरक कुण्ड है बना दिया
क्यूँ बो रहे केसर की क्यारी नफरत के अंगारे
क्यों ग़द्दारों की सह पे खुद का चैन उड़ा लिया ,

                                                shail singh



बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

' क्रान्तिकारी कविता ' अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे

 इस कविता के द्वारा मैंने हिजबुल मुजाहिदीन,जैश-ए-मोहम्मद और अलगाव वादी नेताओं तथा हाफिज सईद आदि जैसे आतंकी फैक्ट्रियों को चलाने वाले एवं भारत में अराजकता फैलाने वाले एवं अपने नापाक इरादों से कश्मीरी नौजवानों को गुमराह करने वाले सनकियों को समझाने वाले अंदाज में एक सन्देश देने की कोशिश की है । 

' क्रान्तिकारी कविता '  अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे,


भटके नौजवां आतंकी बन काश्मीर के जर्रे-जर्रे में छैले
छितरे नागफ़नी के काँटों से फुफकारें पाले नाग विषैले ,

क्यूँ रक्षकों के भक्षक बन दुश्मन देश से हाथ मिलाते हो
क्यूँ जन्नत सी धरती पर अपनी काँटों की पौध उगाते हो
संग कौन खड़ा होता विपदाओं में जब भी तुम घिरते हो 
किस आजादी की मांगे कर दिन-रात उत्पात मचातें हो ,

ओ वादी के भोले नादानों कह दो अपने सरगनाओं को
हमें नहीं जेहादी बनना दो टूक जवाब दो आक़ाओं को
हमें तामिल हासिल कर नबील बानी जैसा टॉपर बनना
हमें हुर्रियत जैसे भड़काने वाले नेताओं का पर कतरना ,

तुम्हारी अकर्मन्यतायें ही आतंकों की प्रयोगशालाएं हुईं
क्या कभी हुक्मरानों ने जानी क्या तेरी अभिशालाएं हुईं
अपनी औलादो की करें हिफाज़त तुझे ज़िहाद में झोंकें
तूं कुत्तों की मौत मरे तेरे कुन्बों को खुश करने वो भौंकें ,

पत्थरबाजी खेल,खेलते तुम्हीं वर्दी वालों को उकसाते हो
जब वर्दी हरकत में आती क्यों पैलटगन पर चिल्लाते हो
सारी हदें तुम तोड़ते क्यों पागल माफ़िक होश गंवाते हो
खुद आग लगा हाथ क्यों आग की लपटों में झुलसाते हो ,

यह मत सोचो हमें डराकर कश्मीर हमारा हथिया लोगे
दहशतग़र्द गतिवविधियों से दिल्ली का तख़्त हिला दोगे
अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे
रहो चैन से रहने दो वरना हम जन्नत की राह दिखा देंगे ,

मत इस ग़फ़लत में रहना ऐ आतंक जेहाद के उलेमाओं
देश के नक़्शे से काश्मीर मिटा इस्लामी मुल्क़ बना लोगे
हमने खेलीं ना कच्ची गोलियाँ ना तो गट्टों में चूड़ियां पेन्ही
जब कुपित काल बन घहरेंगे नाशपीटों तो दुम दबा लोगे

क्या कभी भड़काने वालों ने शिक्षा रोजग़ार की बातें कीं
पढ़ो-लिखो तुम अच्छा इन्सान बनो कभी ऐसे जुमले कीं
तूं दिमाग से पैदल है या तेरी अक़्ल को लकवा मार गया
क्यों नहीं समझता गिद्धों ने पैदा खूनी खेलों की नस्लें कीं ,

हम कितने पेशेवर हैं देखो बता दिया सही वक़्त आने पर
जब-जब तोड़ेगा सब्र विवश होंगे इच्छाशक्ति दिखाने पर
क्यूँ भड़काते,भाई से भाई के आंगन में दंगल करवाते हो
कितनी हिदायतें देते ओछी हरकत से बाज नहीं आते हो,

क्यों नौजवानों के मस्तिष्क में बोते तुम नफ़रत के अंगारे
पलते हमारी आस्तीन मे लगवाते पाक ज़िन्दाबाद के नारे
अरे जाहिलों लड़वाओ ना भूख,बीमारी,अशिक्षा,बेगारी से
इत्ते भी अब घाव ना दो वादी वंचित हो जाये किलकारी से ,

घाटी में मरघट फैला,वीरों की शहादत पर जश्न मनाते हो
मुस्टण्डों खाते-पीते हो हिंदुस्तान का हरा रंग फहराते हो
तेरी भाषा में देना आता जवाब आ हम भी सीना तान खड़े
क्यों मधुमक्खी सा भिनभिनाकर तुम छत्तों में घुस जाते हो ,

तुझ माटी के कच्चे घड़ों को मनचाहे आकारों में ढलवाना
मनसूबों के नापाक़ ईरादे तुझे नाकारा निकम्मा बनवाना
ओ कश्मीर के नौनिहालों इन अलगाववादियों से दूर रहो
हिन्दुस्तान लिए जीयो-मरो ऐसा करो के हिन्द के नूर रहो ,

भेदिये का काम करें यही बख़ूबी,यही हैं घुसपैठ करवाते
हम विविधता के बहुरंगों में यह इस्लाम की फ़सल उगाते
देख हिन्द की ताक़त का अन्दाज़ विश्व भी लोहा मान रहा
सरहद पार जो कीर्ति दिखा दी दुनिया भर में सम्मान रहा ,

दहशतग़र्दी की धौंस दिखा खेल न खून भरी पिचकारी से
खलनायक का रोल भूल खुश्बू फैला केसर की क्यारी से
हाथ न डाल मांद में शेरों की हम चीर फाड़ कर रख देंगे
अपनी धर्म,संस्कृति की रक्षा हेतु जान हथेली पर रख देंगे

हुक़्मरानों के बरगलाने पर नाक में दम करना अब छोड़ो
बंद करो ये खूनी खेल प्रसारण अंजाम बहुत घातक होगा
और न उकसाओ हिन्दुस्तानी हृदय के तूफानी ज्वारों को
तेरे कुकर्मी कारख़ानों का रोकथाम बहुत विनाशक होगा ।
                                                 
                                                                    शैल सिंह
                                      

शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

'' क्रन्तिकारी कविता '' शत-शत नमन तुम्हें महानायकों

क्रन्तिकारी कविता 
शत-शत नमन तुम्हें महानायकों


ये वानगी तो एक चेतावनी थी
सिंधु जल पर जल्द फैसला लेंगे हम ,

दिल आज ख़ुशी से पागल है
मन रही देश में गली-गली दीवाली  
शहर-नगर फूटे धांय-धांय पटाखे
मिष्ठानों से घर-घर सज गई थाली ,

इंतक़ाम ले लिया उरी की घटना ने
मातमी चेहरों पर फैली ख़ुशहाली
बहादुरों ने ऐसा साहसी रंग बिखेरा
अबीर गुलाल उड़ा होली पर्व मना ली ,

शत-शत नमन तुम्हें महानायकों
रच दी एल ओ सी पे नई कहानी
प्रण किया था खाकर माँ की कसम
सेनाओं की व्यर्थ ना जाने दी क़ुरबानी ,

तेवर ने एक-एक शहादत के बदले 
दस-दस जां लेने की बात कही थी
बता दो नहीं पूरा हुआ मिशन अभी
पीठ पर हमने घात की वार सही थी

आज कलेज़े को मिली है ठण्डक
उरी का मुँहतोड़ जवाब दे देने पर
घर में घुस वीरों ने जो अंजाम दिया
अब नहीं मलाल सुपुत्रों के खोने पर

तेरे शौर्य का अद्द्भुत परचम देख
हल्दीघाटी का भी सीना फूल गया
परमाणु बमो की धमकी देने वाला
शिकश्त खा लाशें गिनना भूल गया।

                                       शैल सिंह




मंगलवार, 27 सितंबर 2016

'' क्रन्तिकारी कविता '' शमशीरें मचल रही हैं चोलों में


उरी हमले पर मेरी लेखनी द्वारा बिफ़रती हुई यह दूसरी कविता है ,उरी के शहीदों को समर्पित मेरी इस वीर रस की कविता की एक वानगी ---

शमशीरें मचल रही हैं चोलों में


प्रस्तावना से लेकर उपसंहार तक
ऐ पाकिस्तान तेरी बर्बादी का
पटकथा,कहानी लिख ली भूमिका
ध्वस्त करना ढाँचा तेरी आबादी का ,  

कितनी बार फेंकी है तूने लुत्ती
हमारे अमन चैन के उपवन  में
कितनी बार तूने भड़काए शोले
हमारे जन-मन के शान्त सदन में ,

विकराल हवा संग मिल चिन्गारी
तेरी चमड़ी पर ऐसा क़हर ढहाएगी
अब अंगारों को चैन तभी मिलेगा,जब 
नमक-मिर्च का खाल पे छौंङ्क लगाएगी ,

अनगिनत नासूर दिए हैं तुमने
अब ये उफान नहीं है रुकने वाला
लालकिले की रणभेरी ने हुंहकार कर 
अब खोल दिया है चुप का ताला  ,

दरियायें भी अब समंदर बन कर
व्याकुल हैं पाक तेरी तबाही को
आँसुओं की छछनाईं नदियां
आकुल हैं तेरी भीषण बरबादी को ,

क्यों तेरी अम्मियाँ बस पैदा करतीं
तुझे आतंक,ज़िहाद में झोंकने को
क्यों शिक्षा,संस्कार,चलन को देतीं
चोला आत्मघाती,फ़िदाईन का ओढ़ने को ,

हमारे असंख्य पीरों की मवाद ने
अचूक औषधि ईज़ाद कर ली है अब 
इसका माकूल शोध अब तुझ पर होगा
सहनशक्ति ने पूरी मियाद कर ली है अब 

तेरा घर आतंकवाद का गढ़ है
आतंकी देश तूं घोषित होने वाला
अब चाहे जितना भी मिमिया ले तूं 
जिहादियों को तूं ही है पोषित करने वाला ,

छप्पन गज छाती की दहाड़ तो
दिल्ली के सिंहासन की तूने भी सूनी होगी
ये आवाज ही काफ़ी है नींद उड़ाने को तेरी 
अब ये हुँकार दिन दूनी रात चौगुनी होगी ,

अरे ओ नक़ाबपोश के धूर्त गलियारों
तेरे पापों का पर्दाफ़ाश हुआ है
तेरे दिग्गज मेहरबानों ने ही खींच लिए हाथ 
तभी तो तूं इतना बदहवास हुआ है ,

गिलगित,बलूचिस्तान भी उफनाए हैं
देखना पीओके भी हम ले लेंगे
तेरा दुनिया के नक़्शे से नाम मिटा
तुझे भी मोहरा बना दांव हम खेलेंगे ,

अपने वीर शहीदों की कुर्बानियां
कभी व्यर्थ नहीं हम जाने देंगे
क़तरे-क़तरे का मोल चुकाएंगे
दस-दस लाश बिछा हम दम लेंगे ,

क्यों इतनी नियति में खोट तेरे रे
इन्सान नहीं हैवान है रे तूं
ज़ुल्मतों का खा-खाकर आहार
राक्षस,नरपिशाच,शैतान है रे तूं ,

तेरी लाशों के ही ढेर पर अब
होली,दीवाली का जशन मनाएंगे
एक-एक शहादत के एवज में
सौ-सौ जानों पर गाज गिराएंगे ,

जब हम भी हो गए चौकन्ना तो 
क्यों बिल में घुस गए ओ केंचुओं
कंटियायें बेताबी से तरस रही हैं
साहिल पर आ जाओ ओ कछुओं ,

छुट्टा बकरी के अरे ओ मेमनों
कहाँ दुबक गए हो खोलों में
बहत्तर हूरों के पास नहीं जाना क्या
शमशीरें मचल रही हैं चोलों में ,

हमीं हुए हैं क़ामयाब हर मोर्चे पर 
अरे क़ायरों मैदान-ए-जंग में तो आओ
कृष्ण,अर्जुन के पराक्रम,पुरुषार्थ पर
एक बार कायराना बल तो आज़माओ ,

नदियों का जल भी सुलभ ना होने देंगे
बेहूदों हो जाओ तैयार आपदा झेलने को
जब प्यास से मरना बिलबिलाकर
तब आना कबड्डी हम संग खेलने को ,

रुख हवा ने भी है अपना मोड़ लिया   
सन्धि,समझौते भी बदल देंगे अन्दाज़
तुझे बूँद-बूँद को तरसायेंगी पापी अब 
झेलम ,रावी ,सतलज ,व्यास ,चिनाब ,

इन विषधर साँपों के फन को
यही है अच्छा वक़्त कुचलने का 
इन डोड़हों के फुफकारने से पहले
इनके नस-नस है ज़हर उड़लने का ,

कुछ भितरघाती जयचंदों की भी
जुबानों पर शीघ्र ही जाबा मखने होंगे
कुछ गद्दारों,देशद्रोही,बड़बोलों की
नाकों में भी शीघ्र नकेल कसने होंगे ।

                         




















रविवार, 25 सितंबर 2016

'' क्रन्तिकारी कविता ' रण में विजय केतु फहराने पर

'' क्रन्तिकारी कविता ' रण में विजय केतु फहराने पर

ये आक्रोश भरे शब्द लिखे हैं आँख के पानी से
रोष है उड़ी में हुए अट्ठारह वीर जवानों की कुर्बानी से ,

रण हुंकार से भरी शेरों की शमशीरें दहक रही हैं
बिफ़र रहीं तलवारें भी भुजायें-भुजायें फड़क रही हैं
हर वजूद के रक़्त प्रवाह से सिंह सी गर्जनायें भड़क रही है
विकराल तूफान की लहरें पाक तुझे लीलने के लिए ललक रही हैं

हम आस्मा को धरा पर झुका लेने की ताक़त रखते हैं
तोड़ पर्वतों का गुमां गंगा बहा लेने की हिमाक़त रखते हैं
हमारी एक ही हुंकार जला के ख़ाक कर देगी पाकिस्तान को
हमारे हिन्दुस्तानी स्वेद में दुनिया बहा ले जाने का दुःसाहस रखते हैं

माँ मलिन मन मत करना वीर पूत के शीश कटाने पर
गर्व से सीना तान के रखना रण में विजय केतु फहराने पर
धरा का शीश नहीं झुकने देंगे अरि भी नत मस्तक करेगा अब
रण बांकुरों के कर में देख खंग माँ देखना विश्व भी काँप उठेगा अब

बांध शहादत का सेहरा माँ ग़र वीरगति भी हो जाये
मातृभूमि की रक्षा ख़ातिर माँ मेरा नाम अमर ग़र हो जाये
धन्य मानूँगा ये जीवन,धरती ऋण से प्राण उऋण ग़र हो जाए
सौभाग्यशाली वो दिन होगा क़फ़न तिरंगा ओढ़ चिता ग़र घर जाये ,

माँ ने कोंख से जनम दिया भारत माँ को सौंप दिया
कैसी हिम्मत वाली माँ फ़र्ज की ख़ातिर कुलवंश सौंप दिया
योद्धा पत्नी ने जीवन सुहाग का,आभूषण धैर्यवान हो सौंप दिया
मैं कितना किस्मत वाला वतन लिए निश्चिन्त सांस-सांस है सौंप दिया
,
ऐसा सिंघनाद करना है,तहलका विश्व में मचाने को
रक़्त की काई साफ है करना कायरों की जड़ें हिलाने को
अब कोई संवाद न होगा बस होगा इंकलाब दिल दहलाने को
भटकी तरुणाई में ऐसा घोलना रसायन नपुंसकों का होश उड़ाने को ।

शैल सिंह

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...