सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

वीर रस की कविता --ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना

वीर रस की कविता --ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना 



क्यूँ पापों में निर्लिप्त निर्बाध बह रहे अनिर्दिष्ट दिशा में पाकिस्तान ,

क्यों सत्य,अहिंसा की पावन वेदी को हिंसात्मक बनाने पर हो तूले
कश्मीर का तो सवाल नहीं पीओके पर नजर हमारी क्यूँ तुम भूले ,

छोड़िये नवाज़ शरीफ बुरहान वानी की तोतिये रट का सिलसिला
मेरे घर का मामला था वो ग़द्दार,उसे उसके करनी का फल मिला ,

गर कुछ लेहाज बाकी तो पहले निज घर की बिगड़ी तस्वीर संवार
तेरी व्यर्थ कोशिशें काश्मीरियों लिए शाख़ की ढहती दीवार निहार ,

छोड़ दो वानी का कल्ट खड़ा कर कश्मीरी युवाओं को भड़काना
अन्तर्राष्ट्रीय मानकों ने इतना धिक्कारा पर तुझे नहीं आया शर्माना ,

क्यों उसकी फिक्र तुझे इस्लाम अनुसार जन्नत के मजे वो लूट रहा
बहत्तर हुरों के अंगूरी रस का स्वाद इत्मिनान से वानी तो चूस रहा ,

वैश्विक पटल पे इतनी फ़जीहत देखले मक्कार तूं अपने को तनहा
कहाँ गई जनाब की दादागिरी ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना ,

आख़िर क्यूँ हमसे बैर तुम्हें,साज़िश-रंजिश रचते जिन्ना के मरदूदों
पक्के देशभक्त अपने हिंदुस्तानी मुस्लिम यहाँ ना डालो डोरे चूज़ों

पाकिस्तानी हिन्दूओं संग जो किये बर्बरता उन्हें शहीद का दो दर्जा
कहर ढा चुप रखा उन निर्दोषों को कहीं तेरे गुनाहों की ना हो चर्चा

देख तरक्की हिन्दुस्तान की जल-भून क्यूँ खूंखार बन खुंदस रखता
हम मानवता के अंकुर बोते पाकिस्तानी जमीं जिहादी पौधा उगता

मौन तरंगों को करता उद्वेलित तूं हमपे अघोषित प्रहार कर-करके
गरज उठा समंदर अन्तर का भीषण तूफ़ानों के अट्टहासों से भरके ,

पीड़ा और ज्वलन के आरक्त से हुईं शिथिल इन्द्रियाँ भी उन्मादित
तेरे रक्त कणों से उर की प्यास बुझानी,हैं हिंदुस्तानी भी उत्साहित ।

                                                                 शैल सिंह
  

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