गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

भजन

   '' भजन ''   


भगवन तुम तो बसे हो मन-मन्दिर
ईंट-पत्थरों के शिवाले क्यूँ जाऊँ
जब मन के नगर में तेरा महल
क्यूँ चौखट-चौखट सर टकराऊँ ,

तेरा रूप धार ली काया मेरी
प्रतिदिन अंग भभूत लगाऊँ
रच-बस गए हो प्रभु तुम मुझमें
नख-शिख रोम-रोम सुख पाऊँ ,

याचनाओं का अर्ध्य भेंट दी
दु:ख का मृगछाल बिछाऊं
निशि-वासर हूँ लीन भजन में
दीन-दशा का भोग चढ़ाऊँ ,

तेरे पांव पखारें नीर नयन के
दुःख की गागर छलकाऊँ
कहीं छवि ओझल ना जाये
डर से पलकें ना झपकाऊँ ,

तुम ध्यान मग्न मेरे उर गह्वर में
क्यूँ गुफ़ा कंदरा मन भटकाऊँ
जब मुझमें समाहित तुम प्रभुवर
क्यूँ दर-दर की जा ठोकर खाऊँ ,

एक बार नज़र तूं फेरे इधर
क्यूँ मन्दिरों की घण्टी खटकाऊँ
जब नज़रबन्द कर लिया तुझे
दिन रात दरश तेरा पाऊँ ,

                      शैल सिंह



गुरुवार, 16 मार्च 2017

होली अबकी बार

मोदी जी की जीत पर 

होली अबकी बार

मोदी लहर लील गई सबके सियासी चाल
बेदाग छवि पे मेहरबान जनता हुई निहाल

उन्मत्त उमंगों की होली होगी अबकी बार
क्योंकि बनेगी यूपी में बीजेपी की सरकार

नाना नवरंगों के गुलाल,उड़ेंगे अबकी बार
दिल से किया सभी ने है मोदी को स्वीकार

शेर,हुंकार भरेगा दुबकेंगे रंगे सभी सियार
क्योंकि धरती,नदिया,हुए अम्बर एकाकार

नमो-नमो जयकार में चित हैं सब भौकाल
किसी की बम्पर हार तो कोई हुआ बीमार

रंग अबीर पिचकारी ख़ुशी से गाल हैं लाल
कितने वर्षों बाद देश में आया ऐसा भूचाल

सात समंदर पार चर्चा,मोदी नाम बेमिसाल
विरोधी सुरों की अटकलें कैसे हुआ कमाल ।

                                           शैल सिंह 

बुधवार, 8 मार्च 2017

नारी दिवस पर

नारी दिवस पर 

मैं शक्तिस्वरूपा नारी जननी सम्पूर्ण जगत की
त्याग,दया,ममता की मूरत गौरव निज संस्कृति की
मैं लक्ष्मी,दुर्गा,सरस्वती हूँ अवतार अनवरत शक्ति की
युग निर्मात्री लिए सीमाएं,लक्ष्मण रेखाएं क्यूँ बनीं प्रकृति की
सीता,द्रौपदी,गंगा,कुन्ती को कीं कलुषित मानसिकता कुत्सित की
वही सबल बन अबला निष्ठुर जग की निर्मम अवरोधों को खंडित की
सह समाज के विषम थपेड़े नियति से लड़ खुद लिए उसने नव राह सृजित की
उड़ रही गगन में,हर क्षेत्र में बढ़-चढ़ हिस्सा स्वयं स्वरूपा ख़ुद को महिमामंडित की ।

                                                                                 शैल सिंह   

शनिवार, 4 मार्च 2017

वसंत ऋतु पर कविता

   वसंत ऋतु पर कविता 


बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना
थोड़ी सर्दी थोड़ी गर्मी
मौसम बड़ा सुहाना ,

इंद्रधनुष ने खींची रंगोली
सज गई मधुऋतु की डोली
बिखरा दी अम्बर ने रोली
धरती मांग सजा खुश हो ली
छितरी न्यारी सुषमा चहुँदिश
कलियाँ घूँघट के पट खोलीं
आई ठूँठों पे तरुणाई
भर गई उपहारों से झोली,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना।,

देख हरित धरणी का विजन
हुआ मन मयूर मस्ताना
पीली चूनर सरसों लहराई
उसपे तितली का मंडराना
पी मकरंद मस्त भये मधुकर
मद में मगन दीवाना
गूंजे विहंगों की किलकारी
कुञ्ज-कुटीर मलय भर जाना ,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना ,

अमराई महके बौराई
मधुकंठी तान सुनाये
देख वासन्ती मादकता नाचे
वन,वीथिक मयूरा बौराये
पछुआ-पुरवा की शीतल सुरभि
नशीला गन्ध जिया भरमाये
पापी पपीहरा पिउ-पिउ बोले
सुध विरहन को पी की सताये ,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना ,

चित चकोर तिरछी चितवन से
अपने सजन से करे निहोरा
मूक अधर और दृग से चुगली
करे दम-दम सिंगार-पटोरा
प्रकृति नटी भरे उमंग अंग औ
वाचाल कंगना हुआ छिछोरा
बूझे ना अनुभाव बलम अनाड़ी
कंचन देह अंगार दहकावे मोरा ,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना ,
`
वासन्ती दुपहरिया में गर
संग प्रियतम मेरे होते
प्रीत रंग में नहा सराबोर
हम सारा अंग भिगोते ,
धारे पीत-हरा रंग धरा वसन
चिरयौवन दिखलाये
बहे उन्मादी फागुनी हवाऐं
चाँदनी उर पे बरछी चलाये ,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना ,

लगे नववधू सी वसुधा
सूरज प्रणय निवेदन करता
अवनि हुलास से इठलाये
होंठों पे शतदल खिलता ,
टेसू,गुलाब,हरसिंगार,पलाश
मौली,कचनार पे पवन है रीझता
मनमोहक बिछा है इन्द्रजाल
दिग-दिगन्त सौन्दर्य दमकता ,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना ।

                            शैल सिंह

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

चुनावों की बेला में ,मेरी ये कविता

 एक विनम्र निवेदन देश की जनता से 

हमें विश्व गुरु है बनना हर मन सपना ये बुनवाना होगा
अराजकता,अत्याचार,अनाचार का कोढ़ दूर भागना होगा
राष्ट्रीय पुष्प का कर अभिनन्दन बहुमत का अर्ध्य चढ़ाना होगा
ईमानदारी,नैतिकता,जनसेवा हित कमल का फूल खिलाना होगा ,

हिंदुस्तान के हिन्दुओं को अकल तभी अब आएगी
जब उसकी ही सरजमीं पर फसल दूजी क़ौम उगायेगी
सपा,बसपा,काँग्रेस को तो नफ़रत अयोध्या नगरी के राम से
ग़र नहीं चेता हिन्दू अब भी मिट जायेंगे हम अपने ही चारों धाम से ,

गढ़-गढ़ में कमल खिला दे जनता ग़र यूपी के कीचड़ में
चोर,उचक्के सारे माफ़िया बंद हो जायेंगे जेलों के सीकड़ में
ना गुंडागर्दी हत्या,बलात्कार ना होगा कैराना,दादरी जैसा काण्ड
ना एक मंच पर सांठ-गांठ कर खड़े होंगे साथ फिर सारे भड़ुवे भांड़ ,

हाथी,पंजा,साईकिल ने बना दिया जैसे यूपी को चम्बल
मज़हब की दीवार खड़ी कर करवाते रहे आपस में दंगल
इक थैली के चट्टे-बट्टे बन गए सियासत कर इक दूजे के संबल
मेधावों को कर दरक़िनार सदा वर्ग विशेष का ये करते रहे सुमंगल ,

कितना जाति,धर्म के दाँवपेंच का देना होगा प्रमाण
सर्वधर्म,समभाव,सर्वांगीण विकास का तभी होगा निर्माण
जब हर तबके के लोग होंगे मोदीमय,धर्मों,वर्णों का होगा कल्याण
भगवा धारियों से द्वेष रखने वाले भी करेंगे दिल से मोदी का गुणगान ,

लोकतंत्र के इस महापर्व को विवेक के रंग से रंगना होगा
राष्ट्रहित के लिए जन-मन को यूपी का भविष्य नया रचना होगा
हर मज़हब के हिंदुस्तानी बाशिन्दों तुम्हें भारत माता कहना होगा
कश्मीर से कन्याकुमारी के दुर्ग को केसरिया भगवा रंग से भरना होगा ,

सोने की चिड़िया गुमसुम बैठी राजनीति की शाख़ पर
धधक रही धरा हिन्द की ज़हरीली जाति,मज़हब की आँच पर
तिलमिला उगलते विष सदा विरोधी आग क्यों लग जाती साँच पर
सिरफिरे बेंच खायेंगे देश की आबरू जश्न मनाएंगे वतन की ख़ाक पर ,

देशद्रोहियों,गद्दारों के मनसूबों के महल गिराने होंगे
जाति,धर्म का ज़हर उतार गुमराहों को सिरे से समझाने होंगे
लाना अमन-चैन ग़र रामराज्य हम सबको सारे मतभेद मिटाने होंगे
मनभेद कराने वाले चालबाजों को इस चुनावी संग्राम में धूल चटाने होंगे।

जय हिन्द ,जय भारत
    

शनिवार, 21 जनवरी 2017

तुम कहाँ हो बोलते

सर्प दंश से भी बढ़ कर
घातक तुम्हारा मौन है ,

तुम कहाँ हो बोलते
बोलती तुम्हारी चुप्पियाँ हैं
मौन की भाषा अबोली
कह देतीं मन की सूक्तियां हैं ,

इतनी विधा के भाव समेटे
अधर विराम चिन्ह क्यों हैं
शब्दों को रखते मापकर
स्वभाव इतना भिन्न क्यों है,

क्या-क्या उधेड़ बुनकर
दिन रात तुम हो जी रहे
कौन सा ऐसा गरल जो
मौन घोंट कर हो पी रहे,

मौन तो हो तुम मगर
बोलती देह की भित्तियां हैं
किस खता पे सौगंध तुमको
बन रही कड़वी पित्तियाँ हैं,

किताब भर ब्यौरा समेटे
क्यूँ रखते अधर के बंद पट
अंदाज की चंठ झाँकियाँ
झाँकतीं नैन के पनघट,

जब कभी गर खोलते हो
भानुमति का बंद पिटारा
बस गोल मोल बोल करते
चन्द सा अस्फुट निपटारा,

जीने लिए इस किरदार को
मजबूर क्यों हो बोल दो
चुपचाप की इन खिड़कियों को
भड़भड़ाकर खोल दो,

मूल्यवान मेरे हजारों शब्द से
मौन की कुपित दृष्टियां  हैं
आत्मज्ञान की तुम खोज में
मगर रहतीं तनी भृकुटियां हैं ,

वास्ता मुझसे अगर है
मैं वजह हूँ मौन की
तो ओ विरागी पूछती हूँ
ढीठ बन मैं कौन हूँ,

तुम बंद सीपी की तरह
मैं प्रश्नों का बादल हूँ बस
ग्रीवा के हाँ,ना उत्तरों से
छीज-खीझ घायल हूँ बस,

कभी मौन कड़के बिजलियों सी
अन्तर्द्वन्द की कुण्डी तोड़कर
जलजला इक छोड़ मौन
फिर चुप की चुन्नी ओढ़कर,

देख नयन की घन घटा भी
फर्क नहीं पड़ता कोई
गुम रहते तुम अपनी घुन में
इस ढंग पे मैं कितना हूँ रोई,

जिंदगी के लघु मंच पर
मन में कितनी गुत्थियाँ हैं
मन के तल का शोर झंकृत
कर देतीं भाव वृत्तियाँ हैं,

अब नहीं मोहताज हूँ मैं
कि हँस के जरा तुम बोल दो
कर ली ख़ुशी के औज़ार ईज़ाद
मत कहना कि इसकी पोल दो,

इस मौन से भली कविता मेरी
इस चुप से सुन्दर लेखनी
कोरे कागज़ों से मेल कर
फूंक-फाँक ली मन की धौंकनी ,

चंठ --बदमाश
मेल -- दोस्ती
                         शैल सिंह


सोमवार, 16 जनवरी 2017

देशभक्ति गीत

       एक देशभक्त सिपाही के उद्वेग का वर्णन गीत वद्ध कविता में ,

बाँधा सर पे कफ़न हम वतन के लिए
जांनिसार करना मादरे चमन के लिए ,

मत प्रिये राह रोको कर दो ख़ुशी से विदा  
भाल पर मातृ भूमि का रज-कण दो सजा
दिल पे खंजर चलातीं हरकतें दुश्मनों की
लेना सरहद पे बदला हर बलिदानियों का ,

है पिता का आशीष गर दुआ साथ माँ की
प्रिये होगी विजय मुश्किले हर हालात की
रखना इंतजार का दीया दिल में जलाकर
सलामत रहा होगी बरसात मुलाक़ात की ,

अश्कों के बाल दीप ना बुज़दिल बनाओ 
ना कजरे की धार की ये बिजली गिराओ  
पिघल न जाये कहीं मोम सा दिल ये मेरा 
विघ्न के इस प्रलय की ना बदली बिछाओ ,

महबूब ये वतन तेरा वतन से प्यार करना 

वतन की आबरू लिए सुहाग वार करना 
माँग अपनी संवारो संकल्प के सामान से
कंगना कुंकुम ना रोको न मनुहार करना ,

कायराना कमानों का न आयुद्ध जुटाओ 
आरती के थाल आज़ सम्मान से सजाओ
धरा पलकें बिछा पथ निहारती सपूत का 
फर्ज़ का यह कटघरा न मुज़रिम बनाओ ,

है ललकारता नसों में नशा इन्क़लाब का 
तूफां से लड़ते देखना कश्ती के ताब का 
व्यर्थ ये जनम जो वतन के काम आये ना 
व्यर्थ रक्त शिराएं जिसमें उबाल आये ना , 

मक्कारियों से दुश्मनों के आजिज़ हैं हम 
बार-बार क्यूँ हुए शिकार साज़िश के हम
हौसलों के आग से तबाह करना शत्रु को 
भेंजो रणसमर न नैन कर ख़ारिश में नम , 

जीना मरना राष्ट्र हित लिए आरजू है मेरी 
कर्ज़ माँ का फ़र्ज निभाऊँ जुस्तजू है मेरी 
मौत आये ग़र अर्थी पर कफ़न हो तिरंगा 
शहादत पे सुनना आख़िरी गुफ़्तगू ये मेरी , 

ये तन समर्पित सरज़मीं पे देश प्राण मेरा 
ऐसा बनूँ मैं प्रहरी लगे सारा आवाम मेरा 
रखूँ अखण्ड देश को मैं लाल भारती का 
माँ भारती की आन पर कुर्बान जान मेरा ,

वतन पे मिटने वालों दिल से तुम्हें सलाम 
मिटना हमें क़ुबूल ज़िन्दगी वतन के नाम 
वफ़ा की मेरे खुश्बू सने माटी में वतन के 
शौर्य,शूरवीरता पे मिले हमें बस ये इनाम।   

                                     शैल सिंह 


   

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...