शनिवार, 4 मार्च 2017

वसंत ऋतु पर कविता

   वसंत ऋतु पर कविता 


बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना
थोड़ी सर्दी थोड़ी गर्मी
मौसम बड़ा सुहाना ,

इंद्रधनुष ने खींची रंगोली
सज गई मधुऋतु की डोली
बिखरा दी अम्बर ने रोली
धरती मांग सजा खुश हो ली
छितरी न्यारी सुषमा चहुँदिश
कलियाँ घूँघट के पट खोलीं
आई ठूँठों पे तरुणाई
भर गई उपहारों से झोली,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना।,

देख हरित धरणी का विजन
हुआ मन मयूर मस्ताना
पीली चूनर सरसों लहराई
उसपे तितली का मंडराना
पी मकरंद मस्त भये मधुकर
मद में मगन दीवाना
गूंजे विहंगों की किलकारी
कुञ्ज-कुटीर मलय भर जाना ,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना ,

अमराई महके बौराई
मधुकंठी तान सुनाये
देख वासन्ती मादकता नाचे
वन,वीथिक मयूरा बौराये
पछुआ-पुरवा की शीतल सुरभि
नशीला गन्ध जिया भरमाये
पापी पपीहरा पिउ-पिउ बोले
सुध विरहन को पी की सताये ,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना ,

चित चकोर तिरछी चितवन से
अपने सजन से करे निहोरा
मूक अधर और दृग से चुगली
करे दम-दम सिंगार-पटोरा
प्रकृति नटी भरे उमंग अंग औ
वाचाल कंगना हुआ छिछोरा
बूझे ना अनुभाव बलम अनाड़ी
कंचन देह अंगार दहकावे मोरा ,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना ,
`
वासन्ती दुपहरिया में गर
संग प्रियतम मेरे होते
प्रीत रंग में नहा सराबोर
हम सारा अंग भिगोते ,
धारे पीत-हरा रंग धरा वसन
चिरयौवन दिखलाये
बहे उन्मादी फागुनी हवाऐं
चाँदनी उर पे बरछी चलाये ,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना ,

लगे नववधू सी वसुधा
सूरज प्रणय निवेदन करता
अवनि हुलास से इठलाये
होंठों पे शतदल खिलता ,
टेसू,गुलाब,हरसिंगार,पलाश
मौली,कचनार पे पवन है रीझता
मनमोहक बिछा है इन्द्रजाल
दिग-दिगन्त सौन्दर्य दमकता ,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना ।

                            शैल सिंह

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...