सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

लॉकडाउन की तन्हाई पर कविता

गुमसुम सी है सुबह,सुनसान शाम आजकल 
ख़बरदार मेरी तन्हाई में न डाले कोई ख़लल ।

करीब मेरे बेहिसाब ख़यालों के आशियाने हैं 
दिल के बन्द कक्षों में कई यादों के ख़ज़ाने हैं
इसीलिए तन्हाईयां मुझे तनहा होने नहीं देतीं
जगाकर रखतीं रात भर कभी सोने नहीं देतीं ।

मुझे भी हो गई अकेलेपन से मुहब्बत इतनी
भाईं नहीं किसी की भी नजदीकियां जितनी
ख़ुशी ना उदासी बैठे हैं ख़ामोश सुबहो-शाम
लगने लगीं सुखदायिनी भी तन्हाईयां कितनी ।

फिर पुराने मौसम आ गये लौट के तन्हाई में 
अपनों से बिछड़ना दर्द,ग़म जख़म जुदाई में
जो बीता,गुजरा लिखा मन बहला लिया मैंने
और तन्हाई में तन्हा ही जश्न मना लिया मैंने ।

विरां वक़्त मग़र हैं बिचरते माज़ी के कारवां 
मुद्दतों बाद भी महसूती आज भी वही समां
अतीत के सुरंगों में संजो रखी जो असबाब
मेरी तन्हाईयां उनसे ही गुलजार औ आबाद ।


असबाब--सामान,वस्तु
सर्वाधिकार सुरक्षित
                शैल सिंह



4 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-05-2021 ) को 'मैं नित्य-नियम से चलता हूँ' (चर्चा अंक 4068) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. मुझे भी हो गई अकेलेपन से मोहब्बत इतनी
    भाईं नहीं किसी की भी नजदीकियां जितनी
    ख़ुशी ना उदासी बैठे हैं ख़ामोश सुबहो-शाम
    बेइंतहा लगने लगी सुखदायी तन्हाई कितनी ।

    वाह क्या बात है एक बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद आदरणीय,आप लोगों की प्रतिक्रियायें ही रचना का पुरस्कार हैं

    जवाब देंहटाएं

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