यादों के झरोखे से
आया मौसम सर्दी का
लगे खुशग़वार हर लमहा
खनक हँसी की घुली फिज़ा
स्वेद,शिशिर से डर कर सहमा,
नए-नए हुए सपने पंकिल
स्वागत में तल्लीन नवागत के
घर-घर जली खुशी की कंदील,
बहे कभी पछुवा,पुरवाघर-घर जली खुशी की कंदील,
कभी रवि पे मेघ दे पहरा
बिलम है जाती धूप कभी तो
घटा बरसे कभी कुन्तल लहरा,
बहें हुलसती हवाएं जब
आई याद कन्टोप औ गांती
अनुपम उद्यान में प्रसून खिले
पर लगे न सरसों पुष्प की भाँति ,
तपिश गई सूरज की
गुनगुनी धूप सेंके वदन
लद गई तन पे गरम रजाई
रूत लगती नई नवोढ़ी दुलहन,
कुरुई,मऊनी आई याद
दाना,चूरा,ढूंढा,नैका भात
रेवड़ा,गट्टा,नई भेली,संक्रांति
कहाँ रही वैसी त्यौहारों में बात,
सुखद सुनहरी धूप गई
गई सुगबुगाहट कौड़े की
अल्हड़ सी अबोध अठखेली
गई चहल-पहल कोल्हउड़े की,
खोल अतीत का पन्ना
विह्वल करें शरारती यादें
रूत लगती नई नवोढ़ी दुलहन,
कुरुई,मऊनी आई याद
दाना,चूरा,ढूंढा,नैका भात
रेवड़ा,गट्टा,नई भेली,संक्रांति
कहाँ रही वैसी त्यौहारों में बात,
सुखद सुनहरी धूप गई
गई सुगबुगाहट कौड़े की
अल्हड़ सी अबोध अठखेली
गई चहल-पहल कोल्हउड़े की,
खोल अतीत का पन्ना
विह्वल करें शरारती यादें
नादां बचपन रंगी वो दुनिया
बीते लम्हों की आकृतियां झाँकें,
बीते लम्हों की आकृतियां झाँकें,
वक़्त पखेरू सौदाई
छीन अमीरी बचपन की
दे-दे लालच मूढ़ जवानी का
धन लूटा अमोल लड़कपन की,
कुड़कुड़ाती ठण्ड बहुत
कैसे भूलें आजी की बोरसी
धुएं सम भाप निकाले मुँह से
मना रही मृदु यादों की खोरसी ।
खोरसी--सूतक
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें