शनिवार, 21 दिसंबर 2019

'' जिंदगी की रवायत है जीना ''

नाकाम मोहब्बत वालों पर मेरी लेखनी से ,,,,,

'' जिंदगी की रवायत है जीना ''


कभी यामा हुई बेदर्द
कभी दग़ाबाज़ हुई तन्हाई
जिस ऐतबार पर था ग़ुरूर
की उसी ने बड़ी बेवफ़ाई ,

जिसकी जादू भरी मुस्कान 
बनी धड़कन निश्छल दिल की
वही मन की सूखी जमीं पर
भूला,गुंचे खिला दहकन की ,

एहसासों से क्या शिक़वा
भला दिल का भी कैसा कुसूर
जिस्त हुई बर्बाद मोहब्बत में
था इश्क़ सुरा का ऐसा सुरूर ,

जैसे शैवाल पर फिसले पांव
फिसलना दिल का लाजिमी था
गजब कशिश थी उसके लहज़े में
आदमी दिलचस्प हाकिमी था,

जुबां पर रख मिश्री की डली
विश्वासपात्र बन की गुफ़्तगू उसने
तहज़ीब से मेरे मासूम दिल में
उतरा था हलक़ तक डूब उसमें ,

याद आती पहली मुलाक़ात 
कभी गुजरा जमाना लगता है
ज़ख़्म का हर इक दाग पुराना
कभी नायाब सुहाना लगता है ,

कभी भटकूं उन्हीं ख़यालों में
बदली तासीर नहीं लगती
कम्बख्त बंद कोठरी चोखी लगे 
कभी पावन ख़ामोशी लगती ,

किस क़दर है टूटा दिल
है चोटिल किस क़दर वज़ूद
हद से ज्यादा मोहब्बत में
बहुत दूर जाने के बावज़ूद ,

यकीं ने की बेहूदी ख़िदमत
तोड़ मासूम सा नादां दिल
जिंदगी की रवायत है जीना
वरना तो दर्द में जीना मुश्किल ,

कभी दर्द ही दर्द को सहला
जवां हो ले अंगड़ाई
अरे दर्द तेरा हो बेड़ा ग़र्क
पी गरल भी निकला हरजाई।

हाकिमी--हुकूमत करने वाला 

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह 

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