" एक प्यारी सी ग़ज़ल "
उसकी यादों को जेवर गढ़ा मैंने तन पर सजा लिया
इक वो कि मेरी यादों में इक नया रिश्ता बना लिया ,
उसके इक लफ़्ज़ के भरोसे पर कायम हूँ आज तक
इक वो है बिना मेरे ही इक नवीन दुनिया बसा लिया ,
शुभ साअत के चाह में रची न कभी मेंहदी हथेली पे
इक वो है बिना बेज़ार हुए सेहरा सर पर सजा लिया ,
उम्र भर छलती रही ख़ुद को उठाये आसरे का भार
इक वो है बड़ी ख़ामशी से दामन मुझसे छुड़ा लिया ,
मेरी ही ध्वनि से बजते रहे कानों के कोटर बेख़याल
इक वो है राहे-जुनूं में पागल कर आईना चढ़ा लिया ,
ख़ुद के आंच से पिघलती रही देख उफ़क़ का चाँद
इक वो है मेरी पुरनम आँखों में मल कर नहा लिया ,
हम मिज़्गाँ पर सजा रखे वरक़ इश्क़ के लमहों का
हम मिज़्गाँ पर सजा रखे वरक़ इश्क़ के लमहों का
इक वो है जहां सुख का मुझसे अलहदा जमा लिया ,
तमन्नाओं को ख़ाक कर मैंने द्वार पे शम्मां जलाई हैैं
इक वो है ज़नाज़ा हसरतों का देख कंधा लगा लिया ,
कोटर --छिद्र
मिज़्गाँ--पलक
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
बहुत खूब!
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उसके इक लफ़्ज के भरोसे पर कायम हूँ आज तक
इक वो है बिना हमारे ही इक नई दुनिया बसा लिया,
..."
आपका बहुत बहुत आभार प्रकाश जी
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी
हटाएंबहुत उम्दा सृजन।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
धन्यवाद कुसुमित जी
हटाएंबहुत उम्दा सृजन।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
धन्यवाद कुसुम जी
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपको यशोदा जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका कुसुम कोठारी जी
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