बुधवार, 20 नवंबर 2019

ग़ज़ल '' पी आँसुओं का सैलाब समन्दर हूँ बन गई ''

'' पी आँसुओं का सैलाब समन्दर हूँ बन गई ''


क्यों मेरे ख़्यालों में आते हो तुम बार-बार
दिल के साज़ों का छेड़ जाते हो तार-तार
मेरी वीरानियाँ भी महकतीं सदा फूल सी
क्यों करते तन्हाईयों  से यादों का व्यापार ,

एक दर्द दहकता हुआ छोड़ कर सीने में
अक़्सर आजमाते हो टूट बिखर जाने को
हो गई दिल्लगी दिल के कैसे सौदाग़र से
कि चाहतें हुई मज़बूर तुम्हें भूल जाने को ,

किन कुसूरों की सजा में थी बेवफाई तेरी
वफ़ा की  दरिया पहल की तूफां लाने की
क्या कसर बाकी रह गयी थी मेरे प्यार में
असाध्य मर्ज़ मिली तुमसे दिल लगाने की ,

तेरे दिए दर्दों की ही कैफ़ियत है ये ग़ज़ल
रियाज़ रोज करूं दर्द छुपा गुनगुनाने की
किन कण्ठों से गाऊँ मैं जज़्बात शौक से
भींगा लफ़्ज़ भी उदास होता शायराने की ,

न नफ़रत मुक़म्मल न याद मिटा पाना ही   
बग़ैर तेरे जीने की करके नकाम कोशिशें
पी आँसुओं का सैलाब समन्दर हूँ बन गई
बेलग़ाम कश्ती में खे रही तमाम ख़्वाहिशें ,

बात करना ना आया तुझसे तेरे अंदाज में
रहता टूटे सपनों के सच होने का इंतजार
जो आँखें की हैं नज़रअंदाज आज बेतरह   
वही कभी ढूँढ़ेंगी नज़रें मुझे होके बेक़रार ,

दर्द छलके आँख से शोर करें खामोशियाँ
सबने महफ़िलों में देखा है बस हँसते हुए
चुपके रोता दिल नैनों में तड़प दीदार की
किसीने देखा न क्यूँ तन्हाई में तड़पते हुए , 

कैफियत--विवरण,हाल
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह

6 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 21 नवंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहद उम्दा....

    आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है|

    https://hindikavitamanch.blogspot.com/2019/11/I-Love-You.html

    जवाब देंहटाएं

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