शहीद की विधवा की होली
देश लिए प्राण न्यौछावर कर
पिया खून की होली खेल गये ,
घाव लगी गम्भीर हृदय पर
कुदरत ने दी ऐसी पीर है
कैसे सजे तन रंग फागुन का
कुदरत ने दी ऐसी पीर है
कैसे सजे तन रंग फागुन का
हरे ताजे नयन के नीर हैं ,
चाव नहीं कोई भाव नहीं
ना कोई खुशी रंगोत्सव की
ना कोई खुशी रंगोत्सव की
अभी सूखे नहीं आंचल गीले
फाग फीके होली महोत्सव की ,
फाग फीके होली महोत्सव की ,
कैसे भाये साज होरी का
बुझी नहीं राख अभी सजन की
बुझी नहीं राख अभी सजन की
सबकी शुभ-शुभ होली होगी
मैं भई दुखिया जनम-जनम की ,
मैं भई दुखिया जनम-जनम की ,
मांग हुई सूनी रोली बिन
किन संग खेलूं होली उन बिन
धूप अनुराग की चली गई
ख़ुशी जीवन की छली गईं ,
धूप अनुराग की चली गई
ख़ुशी जीवन की छली गईं ,
किनके गाल गुलाल मलूं मैं
सुनसान लगे विरान घर
हँसि,ठिठोली वो संग ले गये
दे वेदनाओं का दुःखान्त प्रहर।
शैल सिंह
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