गुलजार हुआ है आंँगन
मेरी रौशन हुई है देहरी
गुलजार हुआ है आंँगन
गुलजार हुआ है आंँगन
खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल
इक फूल है घर के प्रांगण।
कितना सुखद ये पल है
लगे बेटी का लौटा शैशव है
महके नवागंतुक से फुलवारी
मिली सौगात हृदय को प्यारी।
लगे बेटी का लौटा शैशव है
महके नवागंतुक से फुलवारी
मिली सौगात हृदय को प्यारी।
कानों में मिश्री घोलें
नन्हें की किलकारी
मासूम से भोले मुखड़े की
मुस्कान लगे अति न्यारी
भींच लूं भर के अंक में अपने
भरि-भरि नैन निहारी ।
मेरी रौशन हुई है देहरी
गुलजार हुआ है आंँगन
खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल
गुलजार हुआ है आंँगन
खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल
इक फूल है घर के प्रांगण।
नाना लेते मुन्ने की बलैंयां
बलि-बलि जाऊं मैं बलिहारी
मामा मगन हो मंगल गाएं
गूंज रही सोहर से ओसारी
नानी बटुवा खोल उड़ावें
गावें गोतिनें मंगलचारी ।
मेरी रौशन हुई है देहरी
गुलजार हुआ है आंँगन
खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल
गुलजार हुआ है आंँगन
खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल
इक फूल है घर के प्रांगण ।
फूले न समाएं दादाजी
झूमें अति प्रसन्न हो दादी
ताऊ-ताई बजवाएं बधाई
झुलावें झूलना दोनों भाई
नेग लुटायें फूफा पाहुने
बुआ हुलसें कजरा लगाई ।
मेरी रौशन हुई है देहरी
गुलजार हुआ है आंँगन
खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल
गुलजार हुआ है आंँगन
खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल
इक फूल है घर के प्रांगण ।
फुर्र से वक़्त गुजर जाता
मुन्ने की मेहमाननवाजी में
बाँध लिया है मोहपाश में
नवजात से शिशु पाजी ने
चाकरी में उसके दिन कट जाता
सोता जागता अपनी राजी में ।
मेरी रौशन हुई है देहरी
गुलजार हुआ है आंँगन
खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल
गुलजार हुआ है आंँगन
खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल
इक फूल है घर के प्रांगण ।
मन मुराद हो गई पूरी
पाकर चाँद सा टुकड़ा
नजर दिठौना लगा ललाट मैं
निरखूँ अपलक मुखड़ा
बाल सुलभ हरकतें ललन की
देख काफ़ूर हो जाता दुखड़ा ।
मेरी रौशन हुई है देहरी।
गुलजार हुआ है आंँगन
खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल
गुलजार हुआ है आंँगन
खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल
इक फूल है घर के प्रांगण ।
शैल सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें