शहीदों पर कविता--
सबर का हमारे वो इम्तहान ले रहे हैं
ख़त में लिखा था घर आने का
मंसूबें गिनाया था छुट्टियां मनाने का
मन पसंद की सूची व्यंजन पकवान की
बनी रह गई,खबर आई प्रिये के बलिदान की।
दर आई अर्थी पिया की लुटा संसार मेरा
हुई कल अभी बात थी अवाक़ इस खबर पर।
सबर का हमारे वो इम्तहान ले रहे हैं
हम हैं कि सबर पे सबर किये जा रहे हैं
जिस दिन ठनेगी सबर से सबर की हमारी
कहर ढायेंगे सबर ही सबर जो किये जा रहे हैं।
हम अतिशय तुम्हारी जो सहे जा रहे हैं
फिर देखना तुम्हारी तुम तबाही का मंजर
भड़काया आज ज्वार जो कबसे सहे जा रहे हैं।
त्यागेंगे अहिंसा के पाठ जो पढ़े जा रहे हैं
असहनीय कर दीं हैं करतूतें अब शांत रहना
शैल सिंह
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