शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

वैयक्तिक द्वेष से किसी की मेधा को चुनौती देने वालों पर कविता --

वैयक्तिक द्वेष से किसी की मेधा को चुनौती देने वालों पर कविता --


जिसने सोच लिया परिस्थितियाँ अनुकूल बनाने की
बाधाएं पुल बना देतीं उसे मन्जिल तक पहुँचाने की,

जिसकी संकल्पनाएं बिछातीं लक्ष्य का गलीचा सदा
वह बार-बार की पराजयों से हताश नहीं होता ख़ुदा, 

जिसके नज़रिये में जीत हासिल करने का जज़्बा हो
सामर्थ्यवान साथ ईमानदार निर्णायक का कुनबा हो,

इच्छा शक्ति सकारात्मकता को निराश नहीं करतीं
असफलता जीवन में प्रयास के नित नया रंग भरतीं,

जिसने हार को चुनौती दे दिया हराकर पछाड़ने की
उसकी जीत सुनिश्चित है विजेता बनकर उभरने की,

दांव खेलने वाले चाहे जितनी,जैसी विसात बिछा लें 
हथेली में खींची लकीरें चाहे जितने भी बार मिटा लें,

इक दिन ईश्वर लिखी रचना का स्वयं ही संज्ञान लेंगे
जिसलिए तराशे थे उसी मुक़ाम पर पहुँचा दम लेंगे,

विधि पर ग्रहण लगा कर विश्वास से छल करने वाले
वैयक्तिक द्वेष से किसी के जीवनवृत्त से खेलने वाले

देख क़ायनात पुष्प वर्षाती ख़ुद फलित अरमानों पर
दुश्मन भी अचंभित दाता के अकस्मात् वरदानों पर ।

                                            शैल सिंह

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