बची अबभी मुझमें शराफ़त बहुत है
मिलीं नेकी करने के बदले हैं रुसवाईयां
पेश अज़नबी से हैं आते मन आहत बहुत है।
वक़्त जाया क्यों करना कभी बेग़ैरतों पर
सख़्त मुझसे ही मुझको भी हिदायत बहुत है।
कैसे एहसान फ़रामोश होते मौका परस्त
कैसे एहसान फ़रामोश होते मौका परस्त
पेश अज़नबी से हैं आते मन आहत बहुत है।
जिनके लिए छोड़ सबको आज़ तन्हा हुए
ख़ेद,वही करते अब मुझसे कवायद बहुत हैं।
परख से मिली कुछ सीख ग़र मेरी आदतों
परख से मिली कुछ सीख ग़र मेरी आदतों
ख़ुद लिए करना वक़्त की हिफ़ाज़त बहुत है।
मुश्क़िल घड़ी में सदा साथ जिनके खड़े थे
वही स्वार्थसिद्ध होते करते सियासत बहुत हैं।
मुश्क़िल घड़ी में सदा साथ जिनके खड़े थे
वही स्वार्थसिद्ध होते करते सियासत बहुत हैं।
करें तौहीन,मानभंग जो भलमनसाहत की
ऐसे ही ख़ुदग़र्ज़ों से मुझको हिक़ारत बहुत है।
ज़रुरतमंदों को अब थोड़ा अनदेखा करना
अब अज़नबी जैसे हो गए हम उनके लिए
ऐसे ही ख़ुदग़र्ज़ों से मुझको हिक़ारत बहुत है।
ज़रुरतमंदों को अब थोड़ा अनदेखा करना
चूक होती जरा भी मिलती ज़लालत बहुत है।
बह जज़्बातों की रौ में ग़म बाँटे थे जिनके
बदले उनके ही सुर मुझको मलानत बहुत है।
बदले उनके ही सुर मुझको मलानत बहुत है।
अब अज़नबी जैसे हो गए हम उनके लिए
भीड़ संग क्या चले आ गई नफ़ासत बहुत है।
जज़्ब दामन में किये जिनके हर राज़ हम
वे ही दिखाते नये यारों संग नज़ाक़त बहुत हैं।
वे ही दिखाते नये यारों संग नज़ाक़त बहुत हैं।
चोट खाकर सीख शैल अपनी कद्र करना
तवज्ज़ो देने में लोग करते किफ़ायत बहुत हैं।
तवज्ज़ो देने में लोग करते किफ़ायत बहुत हैं।
गर चाहूँ तो कर दूँ सरेराह नंगा उनको मैं
बची मगर अभी भी मुझमें शराफ़त बहुत है।
शैल सिंह
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