तन्हाई पर कविता
गुजरे मौसम की याद दिलाती
यादों के शुष्क बिछौने पर
भीगीं-भीगीं सिमसिम रात
तन्हाई से करती बातें
नैनों की रिमझिम बरसात
भीगीं-भीगीं सिमसिम रात
तन्हाई से करती बातें
नैनों की रिमझिम बरसात
जाने कहाँ-कहांँ भटकाती रात ,
पलकों की सरहद तक आ-आ
नींद काफूर हो जाती है
बेचैन रात की आलम का
सिलवट दस्तूर बताती है
उन्नीदी आंँखों में बीति सारी रात ,
उन्नीदी आंँखों में बीति सारी रात ,
हठ करती बचपन की क्रिड़ायें
अबोध अल्ह़ड़पन यौनापन का
काश कि मुट्ठी में बंद कर रखती
कुछ हसीं पलों के छितरेपन का
कभी ना होती इतनी बेवफ़ा रात ,
हर पहर,रैन की क़ातिल होकर
गुजरे मौसम की याद दिलाती
गुजरे मौसम की याद दिलाती
बेदर्द वीरानी बन मेरी हमदर्द
रख पहलू में हँसाती और रुलाती
तन्हा और बनाती तन्हाई की रात ,
ना जाने क्यूँ तन्हाई में यादें
ज़िक्र करती हैं पुराने मंजर का
तल्ख़ी और उदासी भर देतीं
काम करती हैं जादू-मंतर का
ख़्यालों में डूबी,उतराई सारी रात
शैल सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें