शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

धूँधली सी है परछाईं

धूँधली सी है परछाईं 


फिर लौट के आ जा बचपन मेरे
अगाध स्नेह,वात्सल्य से नहलाने
बाबा चाचा,भईया,अम्मा,बापू के
प्यारी थपकी से दुलराने सहलाने ,

मऊनी ,कुरुई भरकर दाना,भेली
बैठ मचान पर गुड्डे,गुड़िया खेली
चने,मटर की फलियाँ फाँड़ में भर
छिप कोली टिकोरे अमिया तोड़ी ,

संग आज़ भी धूँधली सी परछाईं ,
मेले,गांव,गोहार,गोईड़े,कोइड़ारे की
सखी,सहेली,बाग़,बगईचा,पोखरा
घुघुरी,रस और पट्टी कोल्हुवाड़े की ,

जी चाहे जी भर रो लूँ फ़फ़क कर
ममता के आँचल का छोर ढूंढती
स्नेहमयी ममता की मूरत कहाँ तूं 
ऑंखें ढूंढतीं अविरल लोर ढूरती,

हवा,नदी,करील,बबूल,पलाश से
तेरा पता पूछती माँ सभी पहर से
माँ शब्द जुबां पर सजा सदा रहेगा
साँसों से जब तक नाता जुड़ा रहेगा ,
                          शैल सिंह

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