शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

जाने क्या हश्र हो

जाने क्या हश्र हो 


ओ मेरी गुड्डी,तारा,मैना,राना
ना अँखियों में ख़्वाब सजाना 
सात समन्दर के उस पार का 
धोख़े फ़रेबी नीरस संसार का ,

सब्ज़बाग के कितने रंग दिखा
ले जायेंगे बहेलिये बहला कर 
मक़सद हासिल कर देंगे छोड़ 
हाशिये पे बदनसीब बेहाल कर ,
                                
बजेगी शहनाई द्वारे ढोल नगाड़े 
भाड़े के टट्टू आएंगे बाराती सारे
विश्वास छलेगी छल भरी दुनिया 
ठगे से मलेंगे हाथ हितैषी बिचारे ,

इतनी बेताब ना हो अरे बालाओं 
विदेश की सैर लिए कर पीले हाथ 
जाने क्या हश्र हो मंजिल पर तेरी 
पता चलेगा ख़्वाब बिखरने के बाद  , 

किससे करेंगी बयां हाले-दिल शैल
सब अवरुद्ध मार्ग जब हो जाएंगे
चमक-दमक दम घोंटू आबो-हवाएं
निगलेंगी अपने भी पराये हो जाएंगे ,

जब असलियत का होगा पर्दाफ़ाश 
क्या होगा तूफानों में घिर जाने पर 
निष्ठुर परदेश भी देगा दगा गुड़िया  
क्या होगा सामां समूल खो जाने पर ।   

                                                शैल सिंह 

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