गुरुवार, 6 मई 2021

कोरोना की तीसरी लहर

कोरोना की तीसरी लहर 


और कितना प्रकोप ढाओगी 
कितनी वर्जनाएं लगाओगी
कोहराम मचा है चारों ओर 
तीसरी लहर का और है शोर ,

कितने घोंसले उजड़ गये 
कितनों के सपने बिखर गये
कितनों का संबल छीन लिया 
कितनों को अदृश्य हो लील लिया ,

सारी कायनात लग रही है विरां 
छेद रही मर्मभेदी करूणा है सीना
उन्मुक्त हँसी अधरों से गायब 
सब कुछ जैसे लग रहा अजायब ,

किस अमोघ अस्त्र से होगी पस्त 
सारी दुनिया हो गई है तुमसे त्रस्त
कौन सा दिव्यास्त्र चलाया जाये
आतंकित,भयभीत सभी दिशाएं ,

फ़जाओं में पसरा गहरा सन्नाटा 
थमा-थमा कोलाहल दे झन्नाटा
आवागमन पर छाया घोर कुहासा
भाग रहे सब जब कोई खांसा ,

निस्तेज हुई है कांति मुखों की
ऐसा वज्र गिरा दु:खों की
प्रगति पर विराम लगा दी
सबका प्रवेश वर्जित करा दी ,

कितना बरतें एहतियात हम
कितना सतर्क रहें बता हम
किसकी कितनी सुनें सलाह
क्या हालत हो गई या अल्लाह ,

जी मिचले कड़वा काढ़ा पी भाई
नहीं होती कारगर कोई दवाई
किसके सम्पर्क से रहें अछूत
लगे ज़िन्दे इंसान भी कोई भूत ,

कैसा अज़ाब ढाई हो कोरोना
ऊफनवा रही हो जाबा पहना
दहशत से डरा-डरा है मन
किस निरोध से हो तेरा शमन ,

क्या निस्तारण तेरा तू ही बता
क्या रहेगी जहाँ में ऐसे ही सदा
मानवीयता पर भी ग्रहण लगा
रहा ना अब कोई किसी का सगा ,

तेरे चक्रव्यूह को भेदना होगा
तेरे दु:साहस को तोड़ना होगा
ग़र तुझसे बची रह गई ज़िन्दगी
विश्व कल्याण लिए करेंगे बन्दगी ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
                  शैल सिंह

मंगलवार, 4 मई 2021

याद पर कविता " पराई हो गईं हैं सांसें मुझसे "

मत ख़लल डालो ज़रा ठहरो 
रुको सांसों चलो धड़कनों आहिस्ता 
खटका रही कुण्डी दिल की,किसी की याद
कहीं इस शोर से रूठ जायें न मेरे ख़्वाब आहिस्ता । 
 
कैसे करें सरेआम शरम आये
लगा चाहत का रोग बसे तुम रूह में
दवा,दुआ ना आये काम कैसी व्याधि है यह  
लगे श्वांसों की ध्वनि बैरन जबसे तुझमें मशरूफ़ मैं । 

वे मधुर कम्पन छुवन के तेरे 
करें झंकृत जब याद आ तन-मन को 
खिल उठे उर कचनार सा जैसे खड़े सम्मुख 
ना जाने कैसा रिश्ता है जो महका जाता चमन को ।

परायी हो गईं हैं साँसें मुझसे 
धड़कन बन धड़कने लगे तुम जबसे
नज़र आते नहीं नयनपट पर रैन बसेरा कर 
मुस्कुरा निद्रा मेरी आँखों से चुराने लगे तुम जबसे । 

सर्वाधिकार सुरक्षित
                  शैल सिंह




शनिवार, 24 अप्रैल 2021

'' कोरोना पर कविता ''

कोरोना पर कविता 

हर ओर है पसरा सन्नाटा 
चहुँओर ख़ौफ़नाक है मंज़र 
मची तबाही शहर गली में 
इक वायरस ने घोंपा है ख़ंजर , 

कारागृह हो गया है घर 
क़ैदी भाँति क़ैद हुए सब घर में 
ग़ुम हुईं रौनक़ें बाज़ारों की 
फासले बना रह रहे सब डर में ,

विरक्ति सी हो रही चीजों से 
नीरस सा हो गया है मन 
इंसा इंसा के काम ना आता 
धरा रह जा रहा दौलत औ धन , 

ऐसा संक्रामण का रूप भयंकर 
हर व्यक्ति संदिग्ध सा लग रहा 
मानवों को लील रही महामारी  
श्मशान लाशों के ढेर से पट रहा ,

अलसाई सी सुबह लगे 
लगे तन्हा-तन्हा सी शाम 
सांसों की डोर है डरी-डरी 
अवरूद्ध पड़े जा रहे सब काम , 

छाई सर्वत्र उदासी ख़ामोशी 
भयावह सी लगती नीरवता 
कब काल आ भर ले आग़ोश में 
हर पल इस संशय में है कटता ,

देख दारुण सी व्यथा जगत की 
करुण क्रन्दन सुन कर्ण फटे 
ऐसी दहशत फैला रखी कोरोना 
कि अपने भी सम्पर्क से परे हटें ,

ऐसी आपदा विपदा में भी 
कोई किसी के काम ना आये 
असहाय,लावारिश सी लगे ज़िंदगी 
मौत की सौदाग़र नित पांव फैलाये। 

सर्वाधिकार सुरक्षित 
                शैल सिंह 
 
 

 






मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

प्रेम पर कविता '' चाँद नभ का ना बन सताओ मुझे ''



किस क़दर डूबी हूँ प्यार में मैं तेरे 
हो कर वाक़िफ़ मगर हो यों बेख़बर 
क्या जानो मज़ा इश्क़ के नशे का  
दिखता सूना हृदय भी रंगों का नगर ।

मेरे हर जिक़्र में नाम लब पर तेरा 
इस तरह तुम बसे हो जाँ औ ज़िग़र
संग मेरे सफर में चलो तुम अगर
हसीं हो जायेगा हर कदम हमसफ़र ।

ग्रन्थ लिख डाले मैंने कई प्यार के 
पढ़कर भी अगर देख लेते भर नज़र 
करते मंथन अगर वेदना सिंधु का  
नैना बह जाते तेरे भी झर-झर निर्झर ।

बीती रातें कई मेरी करवटें बदल 
नर्म बिछौने पर ना नींद आई रात भर
पीर का हिस्सा बन विरह में पगी 
मैं बरसात में भी जलती रही उम्र भर । 

पतझड़ सा जीवन चमन हो गया 
बहारें आईं गईं कितनी रहीं बेअसर 
चाँद नभ का ना बन सताओ मुझे 
चाहत आओ न नैनों के आँगन उतर । 

मैंने माना कि मौन प्रेम मेरा रहा 
निठुर तेरी भी रही प्रीत ऐ मीत मगर 
कृष्ण के मीरा सी मैं दीवानी बन
हुई लहरों से टकराती नैया सी जर्ज़र ।

किस क़दर डूबी हूँ प्यार में मैं तेरे 
हो कर वाकिफ़ मगर हो यों बेख़बर......

सर्वाधिकार सुरक्षित 
                शैल सिंह 
 




मंगलवार, 30 मार्च 2021

ज़िन्दगी पर कविता

उम्मीदों से भरा जियो ज़िंदगी का विहान
आसमान से ऊँचा रखो सपनों की उड़ान
उठा करो गिर-गिर कर हिम्मत बटोर कर
हर पल बिताओ ख़ुशी से बांहों में भरकर

मुसीबत के बादलों को हौसलों से छांट दो
मुश्क़िलों की खाई मुस्कुराहटों से पाट दो
सीखना हम सबको साथ वक़्त के चलना
नदी के जैसे कल-कल राह बना के बहना

फैसला तक़दीरों का क्या ये लकीरें करेंगी
ग़र है जज़्बा जीत का मुकाबलों से डरेंगी
भले दूर हो मंज़िल कदम मगर ना रोकना
पूरा करना मकसद बस सफ़र का सोचना

ज़िन्दगी को ख़ुद के  मुताबिक जिया करो
जो चीज हो पसंद उसे हासिल किया करो
लौट कर ना आने वाला बीता हुआ लमहा
उम्र यूं ही गुजर जायेगी हो जाना है तनहा

सिर्फ सांस लेना ही नहीं ज़िंदगी का काम
ख़्वाब,उम्मीदें ही ना हों तो ज़िन्दगी हराम
जितने दर्द,क़र्ज़,फर्ज़ हमारी जिन्दगी में हैं
उतनी वंदना की सूची रब की वन्दगी में है ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
            शैल सिंह

मंगलवार, 2 मार्च 2021

" कलम से गुजारिश "

           कलम से गुजारिश


अनकहे भावों को शब्दों में उकेरकर  
प्रिये पोरों लिख दो आँसुओं में भींगोकर
खेलने दो शब्दों से भावनाओं के उफ़ान को 
रख दो ज़ुबां ख़ामोशी की कागज़ों पे खोलकर ।

कैसे गुजरता है वक़्त तनहा बता दो
बहकते अक्षरों को मोतियों सा सजा दो  
जिन क्यारियों में बोये कभी ख़्वाब हम हसीं 
मिली तन्हाईयों की तोहफ़े में दहकती सी जमीं ।

ख़ामोशियों,तन्हाईयों के बाज़ार में
भीड़ में हजारों की निग़ाहें तुम्हें ढूंढ़तीं
अहसासों की दुनियां में छाई बस वीरानियाँ
कहना हर अजनवी से पता तेरा बावली पूछती ।

ज़िन्दगी के पन्नों के सारे ईबारत
लिखो क़लम तुझे तो हासिल महारत
दो पल के मोहब्बत में गुनाह कैसा था हुआ
कि धड़कनों के ही साजो-सामां हो गये नदारद ।

जीने में ना मरने में तेरे इन्तज़ार में
गुजारती हूँ कैसे शाम और रात का समां
अभी तक हैं दिल में महफ़ूज़ जो निशानियां
सहेज कर उसे हैं बैठे चैन और करार हम गवां ।

तुझे ही ज़िन्दगी ने बस तवज्ज़ो दिया
बेफ़िकर हो मुझको तुमने ही तन्हा किया
गुज़रे मौसमों का मंजर मेरी आँखों में तैरता 
लिखना बिन तुम्हारे ये शहर है लगता उदास सा ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
                शैल सिंह



शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

कविता 'वसंत पंचमी' पर

   कविता        'वसंत पंचमी'   पर

आओ वसंत पंचमी पर्व मनायें प्रकृति ने ली अंगड़ाई है
वासंती परिधान का जलवा चहुं ओर खिली तरुणाई है।  

मन रंगा वसंती रंग में और रंग गई सगरी जहनियां
झूर-झूर बहे मलयज का झोंका ऋतुराज करें अगुवनियां ,मन रंगा  .... |

चन्दा लुक-छुप करे शरारत चकोर निहारे चंदनियां
मधुऋतु की शुभ बेला,पल्लव,बेली ताने पुष्प कमनियां ,मन रंगा  .... |

पपिहा,कोयल,बुलबुल चहकें रूम-झूम नाचे मोर-मोरनियां
नवल सिंगार कर प्रकृति विहँसे वन भरें कुलाँचे हिरनियां ,मन रंगा  ….| 

मद में महुवा रस से लथपथ अमुवा मऊर बऊरनियां 
निमिया फूल के गहबर झहरे हरियर पात झकोरे जमुनियां ,मन रंगा  ....|

हरषें बेला,चमेली,चंपा भंवरा गुन-गुन गाये रागिनियां 
पीत वसन पेन्हि ग़दर मचाये सरसों चढ़ी कमाल जवनियां ,मन रंगा  ....| 

घर ठसक से आये वसंती पाहुन सतरंगी ओढ़ी ओढ़नियां 
पतझर सावन सा मुस्काये बोले कू-कू कोयल पुलकित वनियां ,मन रंगा  ....| 

टेसू,केसू,ढाक,पलास पल्लवित,रूप अभिनव धरे टहनियां  
लावण्य टपकता अम्बर से बावरी धरा सज-धज बनी दुल्हनियां ,मन रंगा  ....|

पीतवर्ण कुसुमाकर,रक्तिम गाँछें,किंशुक कहें कहनियां  
चहुँदिशा सुवासित पराग कण से सिन्दूरी भोर किरिनियां ,मन रंगा  ....| 

स्निग्ध हो गई बगिया सारी फूले नहीं समाये मलिनियां 
किसलय फूटे पँखुरियों से अधखिली कलियाँ हुईं सयनियां ,मन रंगा  ....| 

गेंदा,गुलाब,जूही निकुंज की मखमली विलोकें चरनियां 
नथुनों घोले सुवास मौलश्री बूढ़े पीपल की करतल ध्वनियां ,मन रंगा  ....|

ठूंठ के दिन बहुराई गए पछुवा भई छिनाल दीवनियां
आँगन विरवा तुलसी मह-मह रसे-रस बहे पवन पुरवनियां ,मन रंगा  ....| 

फगुवा का आग़ाज कुसुम्भी रंग रंगी पिया विरहिनियां 
आयेंगे परदेशी बालम सखी हो लेके नथिया साथ झुलनियां ,मन रंगा  ....| 

मथुरा ,वृंदावन ,बरसाने ,बजे ब्रज नन्दगांव पैंजनियां   
अबीर,गुलाल धमाल मचा फाग गायें अल्हड़ ग्वालनियां ,मन रंगा  ....| 
                                                                                     
                                                           'शैल सिंह'

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...