किस क़दर डूबी हूँ प्यार में मैं तेरे
हो कर वाक़िफ़ मगर हो यों बेख़बर
क्या जानो मज़ा इश्क़ के नशे का
दिखता सूना हृदय भी रंगों का नगर ।
मेरे हर जिक़्र में नाम लब पर तेरा
इस तरह तुम बसे हो जाँ औ ज़िग़र
संग मेरे सफर में चलो तुम अगर
हसीं हो जायेगा हर कदम हमसफ़र ।
ग्रन्थ लिख डाले मैंने कई प्यार के
पढ़कर भी अगर देख लेते भर नज़र
करते मंथन अगर वेदना सिंधु का
नैना बह जाते तेरे भी झर-झर निर्झर ।
बीती रातें कई मेरी करवटें बदल
नर्म बिछौने पर ना नींद आई रात भर
पीर का हिस्सा बन विरह में पगी
मैं बरसात में भी जलती रही उम्र भर ।
पतझड़ सा जीवन चमन हो गया
बहारें आईं गईं कितनी रहीं बेअसर
चाँद नभ का ना बन सताओ मुझे
चाहत आओ न नैनों के आँगन उतर ।
मैंने माना कि मौन प्रेम मेरा रहा
निठुर तेरी भी रही प्रीत ऐ मीत मगर
कृष्ण के मीरा सी मैं दीवानी बन
हुई लहरों से टकराती नैया सी जर्ज़र ।
किस क़दर डूबी हूँ प्यार में मैं तेरे
हो कर वाकिफ़ मगर हो यों बेख़बर......
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
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