मत ख़लल डालो ज़रा ठहरो
रुको सांसों चलो धड़कनों आहिस्ता
खटका रही कुण्डी दिल की,किसी की याद
कहीं इस शोर से रूठ जायें न मेरे ख़्वाब आहिस्ता ।
कैसे करें सरेआम शरम आये
लगा चाहत का रोग बसे तुम रूह में
दवा,दुआ ना आये काम कैसी व्याधि है यह
लगे श्वांसों की ध्वनि बैरन जबसे तुझमें मशरूफ़ मैं ।
वे मधुर कम्पन छुवन के तेरे
करें झंकृत जब याद आ तन-मन को
खिल उठे उर कचनार सा जैसे खड़े सम्मुख
ना जाने कैसा रिश्ता है जो महका जाता चमन को ।
परायी हो गईं हैं साँसें मुझसे
धड़कन बन धड़कने लगे तुम जबसे
नज़र आते नहीं नयनपट पर रैन बसेरा कर
मुस्कुरा निद्रा मेरी आँखों से चुराने लगे तुम जबसे ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
बहुत ही खूबसूरत रचना।।।।।।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय
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