मंगलवार, 4 मई 2021

याद पर कविता " पराई हो गईं हैं सांसें मुझसे "

मत ख़लल डालो ज़रा ठहरो 
रुको सांसों चलो धड़कनों आहिस्ता 
खटका रही कुण्डी दिल की,किसी की याद
कहीं इस शोर से रूठ जायें न मेरे ख़्वाब आहिस्ता । 
 
कैसे करें सरेआम शरम आये
लगा चाहत का रोग बसे तुम रूह में
दवा,दुआ ना आये काम कैसी व्याधि है यह  
लगे श्वांसों की ध्वनि बैरन जबसे तुझमें मशरूफ़ मैं । 

वे मधुर कम्पन छुवन के तेरे 
करें झंकृत जब याद आ तन-मन को 
खिल उठे उर कचनार सा जैसे खड़े सम्मुख 
ना जाने कैसा रिश्ता है जो महका जाता चमन को ।

परायी हो गईं हैं साँसें मुझसे 
धड़कन बन धड़कने लगे तुम जबसे
नज़र आते नहीं नयनपट पर रैन बसेरा कर 
मुस्कुरा निद्रा मेरी आँखों से चुराने लगे तुम जबसे । 

सर्वाधिकार सुरक्षित
                  शैल सिंह




2 टिप्‍पणियां:

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...