बुधवार, 9 नवंबर 2016

'' काला धन ''

मेरा देश बदल रहा है ,सरकार का यह सराहनीय कदम
सर आँखों पर ,भ्रष्टाचारियों तुम डाल-डाल मोदी जी पात-पात
गद्दे के नीचे,तकिये के नीचे,दीवान में रखी नोटों की गड्डियां मुँह
चिढ़ा रही होंगी ,५०० की १००० की गड्डियां टीसू पेपर के मुकाबले भी
नहीं रहीं,अब इनका क्या करोगे घूसखोरों आग लगाओगे या गंगा में बहाओगे
नहीं-नहीं गंगा भी अपवित्र हो जाएँगी ,ऐसा करो इसे चबा जाओ तुम लोगों की
पाचनशक्ति और हाजमा दुरुस्त हो जाएगी आगे और भी रास्ते अपनाने है काले
धन कमाने को। भ्रष्टाचारी कभी भी बाज नहीं आएंगे। फिर भी परिवर्तन की आंधी
में कुछ तो बदलाव आएंगे ही । सबका साथ सबका विकास ,
जय हिन्द ,जय भारत ,जय मोदी ,स्वच्छ भारत स्वतंत्र भारत ,हर-हर महादेव ,

                   '' काला धन '' 


मुझे कोई गम नहीं ,पास काला धन नहीं
मोदी का जवाब नहीं कितना है कदम सही
उड़ गयी होगी नींद किसी-किसी के आँख की
छीन गया होगा करार धनकुबेर हैं जो बेपनाह की
सुखानुभूति हो रही अपने उजले धन पर
ऐसी गाज गिरा दी है मोदी ने काले धन पर
वाह रे माँ लक्ष्मी तेरी कृपा भी क्या कमाल की
सर चढ़ जिनके बोली उन घर भी क्या धमाल की
अजीब हाल उगल सके ना निगल सके
रख सके न फेंक सके न गोरे में बदल सके
कल घर की लक्ष्मी आज कचरे की ढेर हो गई
शान बघारने वालों तेरे घर कैसी झट अंधेर हो गई ।

                                          शैल सिंह



शनिवार, 29 अक्टूबर 2016

तमस मिटाऐं अंतर्मन का



कहाँ दीपक की दीपशिखा में दंभ तनिक भी बोलो तो
कहाँ दीपक के प्रज्वलन में है अहं तनिक भी बोलो तो ,

पर्व ज्योति का आया दीप बाल करें सिंगार तिमिर का
अन्तर्मन के तज विकार आओ करें सिंगार तिमिर का ,

मावस की काली रजनी जगमग वर्तिका की ज्योति से
आलस्य,कुंठा,भय,निद्रा मिटे दीप की अमर ज्योति से ,

चेतना का द्वार खोलता माटी का दीप जला अपना तन
अज्ञानता का तिमिर मिटाता दीप लुटा कर अपना धन ,

आकाश जुगनूओं से जगमग दीपों से झिलमिल धरती
साहित्य ,कला,संस्कृति ,ज्ञान दीपशिखा उरों में भरती ,

निज की आहुति दे नित दीपक पथ आलोकित करता
स्वर्ण शिखा सी ज्योति बिखेर संसार सम्मोहित करता ,

दीप जलाएं शिक्षा का मानवता का ऊर्जा भाईचारे का
नेह के घृत में चेतना की बाती तम मिटाऐं अंतर्मन का ,

अन्तर्मन की भावनाएं,संवेदनाएं प्रज्वलित करें प्रकाश
अभिव्यंजना दीप की तब सार्थक जब हिय भरें उजास ,

हमारी संस्कृति के रंग-रंग रचा-बसा दीपों का त्यौहार
आत्म ज्योति दीपित कर मनुज घर मन्दिर दियना बार ।

                                                    शैल सिंह 

सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

तलाक और शरिया

तलाक तलाक तलाक के मसले को ना तो कानून सही कर सकता और ना ही शरीयत ,सिर्फ बहस और वाद प्रतिवाद के दौर में असली मुद्दा ही दबकर रह जायेगा । इस मसले का हल सारी मुस्लिम महिलाओं के हाथ में है यदि वह अपने साथ सदियों से हो रहे अन्याय के प्रति बगावत पर उत्तर जाएँ तो ,पर वो डरती हैं इस लड़ाई से कहीं अलग-थलग न पड़ जाएं ऐसी घड़ी में साथ देना होगा समाज को ,सभी वर्ग के लोगों को तथा हिंदुस्तान के सभी मानवीय संवेदनाओं को,मुस्लिम महिलाओं की सहनशक्ति ने ही बढ़ावा दिया मुस्लिम मर्दों को क्रूर से क्रूरतम अत्याचार और व्यवहार करने को सर से एड़ी तक बुर्का ,खुलकर साँस लेने की भी आजादी नहीं ,फैशन के अनुसार तथा बदलते हुए ज़माने साथ कितनों ने कुरीतियों को छोड़ ज़माने के साथ कदम मिलाया पर मुस्लिम धर्म में कोई बदलाव कभी नहीं आया न आएगा जब तक विचारों में आमूल परिवर्तन नहीं होगा जब तक सोच के फलक पर नई सोच हॉबी नहीं होगी ।  
                                                            shail singh  


                                                     

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

मन इतना आद्र है की बस .... मत पूछिये

     मन इतना आद्र है की बस  ....  मत पूछिये


उरी में शहीद हुए हैं अपने वीर जवान जो उनकी श्रद्धांजलि में
अभी शपथ लो हिंदुस्तान के नौजवानों डटकर इंतकाम लेने का
सिलसिला तभी थमेगा जब घुसकर तुम भी पाकिस्तान के गढ़ में
ऐसा हश्र करोगे मुँहतोड़ जवाब दे बेगैरत छिनालों के छैले ख़ेमे का ।

मच्छर,मक्खी सी माँऐं पैदा करतीं तादातों में वाहियात औलादें
न तहजीब सीखातीं न कोई संस्कार बस जनती रहतीं हरामजादे
न अफ़सोस उन्हें ना फर्क कोई गोजरों की एक टांग टूट जाने का
गर महसूसती वज्र का पहाड़ टूटना मलाल होता कुछ खो जाने का ।

पर तेरी बहना तो थाल सजा बैठी थी इकलौते भाई की राहों में
मेंहदी रचे हाथ भरी चूड़ियाँ जहाँ सिंगार तब्दील हो गए आहों में
हसरत से देखती रस्ता जिन माँओं के आँखों से निर्झर आँसू उमड़े
उन वीर सिपाहियों की शहादत पे नौनिहालों लेने होंगे फैसले तगड़े ।


शीघ्र फतह कर घर लौटो



तुम दुश्मन पर बम फोड़ो
हम दुआ करेंगे तेरी सलामती की
दीवाली नाम तेरे देश के रखवालों
जय वीरों जय माँ भारती की
तुम वीरों के नाम का दीप जला
सजा राखी है थाली आरती की
शीघ्र फतह कर घर लौटो
घर-घर जश्न मने खुशहाली की
ऐ सरहद पर लड़ने वालों
शत-शत नमन और शत-शत प्रणाम
तेरे ज़ज्बों और वतन परस्ती की |
                                                     

सोमवार, 10 अक्टूबर 2016

वीर रस की कविता --ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना

वीर रस की कविता --ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना 



क्यूँ पापों में निर्लिप्त निर्बाध बह रहे अनिर्दिष्ट दिशा में पाकिस्तान ,

क्यों सत्य,अहिंसा की पावन वेदी को हिंसात्मक बनाने पर हो तूले
कश्मीर का तो सवाल नहीं पीओके पर नजर हमारी क्यूँ तुम भूले ,

छोड़िये नवाज़ शरीफ बुरहान वानी की तोतिये रट का सिलसिला
मेरे घर का मामला था वो ग़द्दार,उसे उसके करनी का फल मिला ,

गर कुछ लेहाज बाकी तो पहले निज घर की बिगड़ी तस्वीर संवार
तेरी व्यर्थ कोशिशें काश्मीरियों लिए शाख़ की ढहती दीवार निहार ,

छोड़ दो वानी का कल्ट खड़ा कर कश्मीरी युवाओं को भड़काना
अन्तर्राष्ट्रीय मानकों ने इतना धिक्कारा पर तुझे नहीं आया शर्माना ,

क्यों उसकी फिक्र तुझे इस्लाम अनुसार जन्नत के मजे वो लूट रहा
बहत्तर हुरों के अंगूरी रस का स्वाद इत्मिनान से वानी तो चूस रहा ,

वैश्विक पटल पे इतनी फ़जीहत देखले मक्कार तूं अपने को तनहा
कहाँ गई जनाब की दादागिरी ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना ,

आख़िर क्यूँ हमसे बैर तुम्हें,साज़िश-रंजिश रचते जिन्ना के मरदूदों
पक्के देशभक्त अपने हिंदुस्तानी मुस्लिम यहाँ ना डालो डोरे चूज़ों

पाकिस्तानी हिन्दूओं संग जो किये बर्बरता उन्हें शहीद का दो दर्जा
कहर ढा चुप रखा उन निर्दोषों को कहीं तेरे गुनाहों की ना हो चर्चा

देख तरक्की हिन्दुस्तान की जल-भून क्यूँ खूंखार बन खुंदस रखता
हम मानवता के अंकुर बोते पाकिस्तानी जमीं जिहादी पौधा उगता

मौन तरंगों को करता उद्वेलित तूं हमपे अघोषित प्रहार कर-करके
गरज उठा समंदर अन्तर का भीषण तूफ़ानों के अट्टहासों से भरके ,

पीड़ा और ज्वलन के आरक्त से हुईं शिथिल इन्द्रियाँ भी उन्मादित
तेरे रक्त कणों से उर की प्यास बुझानी,हैं हिंदुस्तानी भी उत्साहित ।

                                                                 शैल सिंह
  

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2016

बता दो शेरों क्या औक़ात तेरे हिंदुस्तान की,


   ' वीर रस की कविता '


सीमाओं पर तो सब कुछ सहते तुम सेनानी
फिर किस आक़ा के ऑर्डर का इन्तजार है
आत्म रक्षा के लिए वीरों तुम पूर्ण स्वतंत्र हो
हैवानों से निपटने का तुम्हें पूर्ण अधिकार है,

स्वयं के जान की कीमत समझो सिपाहियों    
दुश्मनों पर दागो गन ,बारूद औ एटमबम
कायर बन कर राक्षसों के वंशज करते वार
छप्पन गज सीने से टकराने का नहीं है दम,
   
खद-खद ख़ौल रहा जो आज खून जाबांजों
इतना ख़ौफ़ दिखा फट जाए पाकिस्तान की
बहुत खोये हैं लाल भारत माँ ने आज तलक
बता दो शेरों क्या औक़ात तेरे हिंदुस्तान की,

ऐसा उठा बवंडर शान,आन की बात सपूतों
घर के मित्र-शत्रु का फर्क भी ध्यान में रखना
बहुत हुई गाँधीगिरी मानवीयता बहुत दर्शाये
असमंजस क्यों,पैलेटगन हिफ़ाजत में रखना,

मुहूर्त बहुत ही अच्छा दुश्मन मार गिराने का
मटियामेट इन्हें करना संकल्प ठानो दिग्गज़ों
प्रीत पड़ोसी नहीं जानता बार-बार उकसाता
देश कुर्बानी मांग रहा राणा प्रताप के वंशजों,

ऐ कश्मीर के बासिन्दों क्यों धुंध नजर पे छाई
क्यों स्वर्ग की नगरी नरक कुण्ड है बना दिया
क्यूँ बो रहे केसर की क्यारी नफरत के अंगारे
क्यों ग़द्दारों की सह पे खुद का चैन उड़ा लिया ,

                                                shail singh



बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

' क्रान्तिकारी कविता ' अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे

 इस कविता के द्वारा मैंने हिजबुल मुजाहिदीन,जैश-ए-मोहम्मद और अलगाव वादी नेताओं तथा हाफिज सईद आदि जैसे आतंकी फैक्ट्रियों को चलाने वाले एवं भारत में अराजकता फैलाने वाले एवं अपने नापाक इरादों से कश्मीरी नौजवानों को गुमराह करने वाले सनकियों को समझाने वाले अंदाज में एक सन्देश देने की कोशिश की है । 

' क्रान्तिकारी कविता '  अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे,


भटके नौजवां आतंकी बन काश्मीर के जर्रे-जर्रे में छैले
छितरे नागफ़नी के काँटों से फुफकारें पाले नाग विषैले ,

क्यूँ रक्षकों के भक्षक बन दुश्मन देश से हाथ मिलाते हो
क्यूँ जन्नत सी धरती पर अपनी काँटों की पौध उगाते हो
संग कौन खड़ा होता विपदाओं में जब भी तुम घिरते हो 
किस आजादी की मांगे कर दिन-रात उत्पात मचातें हो ,

ओ वादी के भोले नादानों कह दो अपने सरगनाओं को
हमें नहीं जेहादी बनना दो टूक जवाब दो आक़ाओं को
हमें तामिल हासिल कर नबील बानी जैसा टॉपर बनना
हमें हुर्रियत जैसे भड़काने वाले नेताओं का पर कतरना ,

तुम्हारी अकर्मन्यतायें ही आतंकों की प्रयोगशालाएं हुईं
क्या कभी हुक्मरानों ने जानी क्या तेरी अभिशालाएं हुईं
अपनी औलादो की करें हिफाज़त तुझे ज़िहाद में झोंकें
तूं कुत्तों की मौत मरे तेरे कुन्बों को खुश करने वो भौंकें ,

पत्थरबाजी खेल,खेलते तुम्हीं वर्दी वालों को उकसाते हो
जब वर्दी हरकत में आती क्यों पैलटगन पर चिल्लाते हो
सारी हदें तुम तोड़ते क्यों पागल माफ़िक होश गंवाते हो
खुद आग लगा हाथ क्यों आग की लपटों में झुलसाते हो ,

यह मत सोचो हमें डराकर कश्मीर हमारा हथिया लोगे
दहशतग़र्द गतिवविधियों से दिल्ली का तख़्त हिला दोगे
अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे
रहो चैन से रहने दो वरना हम जन्नत की राह दिखा देंगे ,

मत इस ग़फ़लत में रहना ऐ आतंक जेहाद के उलेमाओं
देश के नक़्शे से काश्मीर मिटा इस्लामी मुल्क़ बना लोगे
हमने खेलीं ना कच्ची गोलियाँ ना तो गट्टों में चूड़ियां पेन्ही
जब कुपित काल बन घहरेंगे नाशपीटों तो दुम दबा लोगे

क्या कभी भड़काने वालों ने शिक्षा रोजग़ार की बातें कीं
पढ़ो-लिखो तुम अच्छा इन्सान बनो कभी ऐसे जुमले कीं
तूं दिमाग से पैदल है या तेरी अक़्ल को लकवा मार गया
क्यों नहीं समझता गिद्धों ने पैदा खूनी खेलों की नस्लें कीं ,

हम कितने पेशेवर हैं देखो बता दिया सही वक़्त आने पर
जब-जब तोड़ेगा सब्र विवश होंगे इच्छाशक्ति दिखाने पर
क्यूँ भड़काते,भाई से भाई के आंगन में दंगल करवाते हो
कितनी हिदायतें देते ओछी हरकत से बाज नहीं आते हो,

क्यों नौजवानों के मस्तिष्क में बोते तुम नफ़रत के अंगारे
पलते हमारी आस्तीन मे लगवाते पाक ज़िन्दाबाद के नारे
अरे जाहिलों लड़वाओ ना भूख,बीमारी,अशिक्षा,बेगारी से
इत्ते भी अब घाव ना दो वादी वंचित हो जाये किलकारी से ,

घाटी में मरघट फैला,वीरों की शहादत पर जश्न मनाते हो
मुस्टण्डों खाते-पीते हो हिंदुस्तान का हरा रंग फहराते हो
तेरी भाषा में देना आता जवाब आ हम भी सीना तान खड़े
क्यों मधुमक्खी सा भिनभिनाकर तुम छत्तों में घुस जाते हो ,

तुझ माटी के कच्चे घड़ों को मनचाहे आकारों में ढलवाना
मनसूबों के नापाक़ ईरादे तुझे नाकारा निकम्मा बनवाना
ओ कश्मीर के नौनिहालों इन अलगाववादियों से दूर रहो
हिन्दुस्तान लिए जीयो-मरो ऐसा करो के हिन्द के नूर रहो ,

भेदिये का काम करें यही बख़ूबी,यही हैं घुसपैठ करवाते
हम विविधता के बहुरंगों में यह इस्लाम की फ़सल उगाते
देख हिन्द की ताक़त का अन्दाज़ विश्व भी लोहा मान रहा
सरहद पार जो कीर्ति दिखा दी दुनिया भर में सम्मान रहा ,

दहशतग़र्दी की धौंस दिखा खेल न खून भरी पिचकारी से
खलनायक का रोल भूल खुश्बू फैला केसर की क्यारी से
हाथ न डाल मांद में शेरों की हम चीर फाड़ कर रख देंगे
अपनी धर्म,संस्कृति की रक्षा हेतु जान हथेली पर रख देंगे

हुक़्मरानों के बरगलाने पर नाक में दम करना अब छोड़ो
बंद करो ये खूनी खेल प्रसारण अंजाम बहुत घातक होगा
और न उकसाओ हिन्दुस्तानी हृदय के तूफानी ज्वारों को
तेरे कुकर्मी कारख़ानों का रोकथाम बहुत विनाशक होगा ।
                                                 
                                                                    शैल सिंह
                                      

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...