मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

हमें रत्ती भर भी मंजूर नहीं कोई भारत माँ पर आँख उठाये



हमें रत्ती भर भी मंजूर नहीं कोई भारत माँ पर आँख उठाये


चाहे जितनी कर लो नारेबाज़ी कश्मीर नहीं हम देने वाले
चाहे जीतनी चलो पैंतरेबाजी ये जागीर नहीं हम देने वाले
हमें रत्ती भर भी मंजूर नहीं कोई भारत माँ पे आँख उठाये
जिसे प्रिय है इतना पाकिस्तान जाके पाकिस्तान बस जाये ,

हमें नहीं ज़रुरत घाती गद्दारों,दुराचारी अलगाववादियों की
कितने नमकहराम होते हैं हमारे ही टुकड़ों पर पलने वाले
इन आस्तीन के साँपों को हमारा आदर,सत्कार नहीं भाता
इनको चाहे जितना मक्खन दो होते मन के ये कपटी काले ,

हम नहीं कोई तमाशाई जो ख़ामोश अतिक्रमण इनका देखें
ग़र हिंदुस्तान में इन्हें रहना है तो वन्दे मातरम कहना होगा
उन्हें भी नहीं बख़्शना जिनकी सह पाकर मचा रहे बवण्डर
इसी ज़मीं का गुण गाकर इन्हें हिन्द के लिए ही मरना होगा । 

                                                         शैल सिंह



रविवार, 7 फ़रवरी 2016

कितनी बार चली है सब्र पे आरी नहीं चैन से रहना है

कितनी बार चली है सब्र पे आरी नहीं चैन से रहना है                                                                                                                                                                                                


        
जिस मांग का सिन्दूर उजड़ गया बिखर गया संसार
जिस घर का इकलौता दीप बुझा कोख़ रही चीत्कार ,

चटक गई जिस संबल की लाठी  नाव अभी मँझधार
जिस बहन की रूठी राखी दृष्टि बहाती अविरल धार ,

सुनो गौर से देशप्रेमियों,बारी तेरी,देना ये क़र्ज़ उतार
रक़्त का कतरा-कतरा कर देना शहादत पर न्योछार ,

राख चिता की बुझ ना पाये दुधारी धार धारो तलवार
सुलग रही सीने में आग मचा दो घमासान हाहाकार ,

आग चिता की बुझी अगर सब जोश धरा रह जायेगा
ग़र नीर नयन के सूख गए ठंडा आक्रोश पड़ जायेगा ,

इसी राख की मल भभूत अंग समर सम्राट उतरना है
कितनी बार चली है सब्र पे आरी नहीं चैन से रहना है ,

घिनौने मनसूबे कर तबाह बैरी को देना असह लताड़
इन चाण्डाल दुश्मनों को जड़ से देना है फ़ेंक उखाड़ ,

हम हैं अहिंसा के पुजारी,शान्ति के द्योतक देते सन्देश
तुम भिखारी मत निपटाओ भूख,बेकारी,करो कलेश ,

कौन सी भट्ठी रोज उगलती ऐसे आतंकी गुण्डे मवाली
कर दिया चैन हराम हमारा क्या दें ऐसी माँ को गाली ।

                                                      शैल सिंह



बुधवार, 20 जनवरी 2016

अब राखें चिंघाड़ेंगी क्या पस्त हो



अब राखें चिंघाड़ेंगी क्या पस्त हो

झुग्गी झोपड़ियों में आग लगने पर 


एक छोटी सी लुत्ती हुई शोख़ इतनी
हवा के शहर का पता पूछकर
पस गई ठाठ से झुग्गियों के नगर
खाक़ कर डाली सब वस्तियां गेलकर

अब राखें चिंघाड़ेंगी क्या पस्त हो
ख़त्म कर सब कहानी पवन खेलकर
मातम पर चल दिया हँसता हुआ 
क्रूर विध्वंस कर नाद से बेखबर

खुद के षड्यन्त्र में लुत्ती स्वाहा हुई
मिली संयोग की संज्ञा विनाश झेलकर
कोई भी अरमां की लाशों का ढेर देखकर
कुछ ना पूछा भभकों का छाला कुरेदकर ।

पस --घुसना  ,गेलकर --मज़ाक़ कर 

रविवार, 10 जनवरी 2016

'' एक छोटे से बालक की क्रन्तिकारी आवाज ''

 एक छोटे से बालक की क्रन्तिकारी आवाज 


माँ मुझको वर्दी पहना दो देश की रक्षा करने जाऊँगा
माँ सचमुच की बन्दूक दिला दो दुश्मन मार गिराऊँगा ,

आँखों में खून उत्तर आया है माँ देख जवानों की लाशें
मत अबोध की बात कहो माँ सर बाँधो केसरिया साफे ,

फ़ेंक दिया माँ सारा खिलौना छोड़ा कंचा गिल्ली-डण्डा
धधका रही प्रतिशोधी अंतर्ज्वाला बदल दिया है फण्डा ,

शान्ति अमन के पोषक घर घुस,दुश्मन ललकार गया है
घर के घाती जयचन्दों टुच्चों का सुर दुश्मन ताड़ गया है ,

पहले निपट लूँ उन भडुवों  से फिर छलियों से निपटूंगा
गिन-गिन हिसाब कपट का लूँगा फिर इनको भी सुतुंगा ,

माँ भैया की शहादत पर आँखों में मत आँसू भर लाना
माँ वीरगति पर पापा के तुम गौरव चक्र लिए मुस्काना ,

मत राखी तोड़ गिरा बहना देखो दूजा भाई तैयार खड़ा
उठो सजाओ चन्दन,थाली,रोली रिश्तों से है वतन बड़ा,

माँ तूने तो गीता का सार बता नैतिकता का पाठ पढ़ाया
दुश्मन की माँ होतीं गन्दी क्यूँ इतनी जेहादी पौध उगाया ,

आतंक का कोई धर्म ना होता माँ कहते हैं इनके आका
और सहिष्णु बन साफ़गोई से  तेरे घर डलवाते हैं डाका ,

छल से कितने नैनों के तारे टूटे अब सब्र नहीं होता रे माँ
बुजुर्ग़ पिता का देख मुख मलीन फ़फ़ोला फूट रहा रे माँ

माँ हमने भी तो ठान लिया अब ऐसा भद्र मजा चखाऊँगा
दफ़नाने की वजाय काहिलों की चिता पर आग लगाऊंगा ,

जो कामी नृशंस निज जननी की बेरहमीं से क़त्ल करता  है 
पीर,मोहम्मद,पैग़ंबर,ज़न्नत की झूठी कलुषित आहें भरता है  ,

ऐसे राक्षसों का करना संहार माँ गदा अभी भीम की ला दो
बजरंगबली हनुमान बनाके लंका दहन का तिलक लगा दो ,

करें मुकाबला आमने-सामने छप्पन गज छाती का कायर
चटनी,भुर्ता बना कचूमर रख दूँगा दे दाग दना-दन फ़ायर ,

मैं अपनी आज़ाद जमीं पर मस्जिद तोड़ूँ या मंदिर बनवाऊँ
क्यूँ कुत्तों को होता गुरेज़ जब गधों के मसले ना टाँग अड़ाऊँ ,

हठ महाप्रताप राणा बनना असली चेतक,तलवार दिला दो
कर वीर शिवा की तरह सजा पण,रण की पोशाक पेन्हा दो ,

दुश्मन की बांबी-बांबी घुसकर ऐसी भीषण आग लगाऊँगा
रूह भी थर्रा जाएगी चीलों को बोटी-बोटी काट खिलाऊँगा ,

माँ बाँध केसरिया सेहरा जीत का धरती का पाँव पखारूँगा
बेग़ैरत राखों पर तुझे थूका उन जांबांजों का क़र्ज़ उतारूँगा ,

ताबूतों घूसा बैरी सूअरों का जनाज़ा,नहीं दफ़न करने दूँगा
वरना पैदा होगा फिर जिन्न बन,ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूँगा ,

ओ गंगे जमुनी माँ,विश्व गुरु का तमगा गले तेरे लटकाना है
ये चंचल मुण्डा छोड़ा शरारत ताज वतन के माथ मढ़ाना है ,

माँ मुझे तिरंगा अपना प्यारा स्वर्ग सी धरती अपनी प्यारी है
ग़र तेरी  शान-आन पर जां कुर्बा हो धन-धन भाग हमारी है ।

पण --तलवार ,कर --हाथ ,
                                                             

                                                       







शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

सन पन्द्रह ने दिया सन सोलह का उपहार


सन पन्द्रह ने दिया सन सोलह का उपहार


हम नई ऊर्जा के साथ चलो नए साल का
करें स्वागत सन पन्द्रह की दी सौग़ात का
क्या लिया क्या दिया है इस गुजरे साल ने
लिया भूलें,याद रखें क्या दिया नए साल में ,

गीले,शिकवे,मलाल,द्वेष,क्लेश,अहंकर का 
नाश करें हम बुराईयों के हर अंतर्जाल का
मिटा कर तूं और मैं का दर्प,संकल्प लेकर 
फासले मन से मन के मिटा इंसानियत का  
बेकस,बेसहारों को दें संबल सबल बाँह का
आओ नयी ऊर्जा के साथ हम नए साल का
करें स्वागत सन पन्द्रह की दी सौग़ात का ।

भरें प्रेम,सौहार्द्र के सागर से मन का गिलास
ज़श्न की मस्ती में खोकर भींगें हम एक साथ
पंथ,सम्प्रदाय पर फिर कोई सियासत ना हो
इक दूजे के प्रति दिल कोई ख़िलाफ़त ना हो
ख़ाहिश हर मौसम उलीचे शगुन का तोहफ़ा
आओ नयी ऊर्जा के साथ हम नए साल का
करें स्वागत सन पन्द्रह की दी सौग़ात का ।

आओ एक साथ वीणा उठायें भलाई का हम
चलो मुस्करा के वादा निभाएं वफ़ाई का हम
ख़िज़ाँ के दर्द का भी हम मिल करें आंकलन
एकता की ख़ुश्बू से करें मह-मह सारा चमन
स्वयं झाड़कर हम तुम ग़र्द-ए-सफ़र पांव का
आओ नयी ऊर्जा के साथ हम नए साल का
करें स्वागत सन पन्द्रह की दी सौग़ात का ।

जले प्रेम संवाद की घर-घर ताख़ पर ढिबरी 
मानस के उजड़े मकां जले प्रीत की सिगड़ी
पूर्वाग्रहों,भ्रांतियों की मिटाकर वहम् आसुरी
गायें प्रीत का गीत भर हम बांस की बांसुरी
आहों में भर के गुलाबी धूप हम आह्लाद का
आओ नयी ऊर्जा के साथ हम नए साल का
करें स्वागत सन पन्द्रह की दी सौगात का ।

                                      शैल सिंह




बुधवार, 6 जनवरी 2016

मन इतना आर्द्र है की बस .... मत पूछिये

मन इतना आर्द्र है कि बस मत पूछिये


पठानकोट में शहीद हुए वीर जवान जो उनकी श्रद्धांजलि में
अभी शपथ लो हिन्द के नौजवानों डटकर इन्तक़ाम लेने का
ये सिलसिला तभी थमेगा जब  घुसकर तुम भी पाकिस्तान में
मुँहतोड़ जवाब दे ऐसा हश्र करोगे पापी निशाचरों के ख़ेमे का ।

जो मक्खी,मच्छर जैसे पैदा करती तादातों में वाहियात औलादें
ना कोई तहज़ीब,संस्कार सीखातीं बस जनती रहतीं हरामज़ादे
उन्हें कोई अफ़सोस फ़र्क़ नहीं गोजर की एक टांग टूट जाने का
ग़र महसूसती वज्र का पहाड़ टूटना मलाल होता कुछ खोने का ।

पर तेरी बहना तो थाल सजा बैठी थी इकलौते भाई की राहों में
मेंहदी रचे हाथ,भरी चूड़ियाँ जो सिंगार तब्दील हो गए आहों में
हसरत से देखती रस्ता जिस माँ की आँखों में निर्झर आँसू उमड़े
उस वीर सैनिक की शहादत पर लेने होंगे तुम्हें भी फैसले तगड़े ।

                                                              शैल सिंह

रविवार, 3 जनवरी 2016

चर्चा सारे शहर में तेरे नाम का

जाने किसने शरारत में गुगली है की
बदनाम करने पर तूला रिश्ता पाक का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ,

अभी आँखों में बस था बसाया तुझे
दिल की किताबों में था छुपाया तुझे
अभी पन्ने पलटकर भी देखा नहीं
अभी अलकें ना खोलीं कहीं राज की
तुझे पलकों की छत पर भी रखा नहीं
जाने किसने फैलाया धुवाँ आग का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।

बस शराफ़त के तेरे थे कलमें पढ़े
तेरी चर्चा पे थे कुछ कसीदे काढ़े
भींड में भी नज़र का तुझे ढूंढ़ना
ज़िक्र पर तेरे,लब का महज़ खोलना
धड़कनों की ग़दर ही खबर बन गई
जाने किस गंध ने दी पता हाल का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।

कोंपलों ने अभी पांख खोला ना था
गुप्त तहखाने का राज डोला ना था
लफ़्ज़ निर्लज्ज हो कुछ भी बोले ना थे
ख़्वाबों के पांव बाँधी थीं पाज़ेब तरंगें
थीं स्वप्न के माथ चूमीं निगोड़ी उमंगें
जाने क्या हश्र होगा इस तूफ़ान का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।

सुलगती चिलम सी सीने में अगन
इश्क़ की आग तपता भट्ठी सा वदन
क्या तुझको भी ऐसे ज्वर की ताप है
तेरे दिल का भी द्वार खटखटाता कोई
तेरी कनपटियों पर गुनगुनाता भी है
कैसे ज़माने को हुआ भान उफान का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।

हवा गलियों में यूँ ही भटकती रहेगी
सूंघकर गंध जमाना कुछ कहता रहेगा
चलो बोयें हम तुम सितारों की फसल
उर के गोदाम भर लें प्रीत की हर नसल
क्यूँ ना बाँधें कलावा हम उड़ती ग़र्द को
जाने कैसे खुला सांकल अहसास का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।

मन में काती थी पुनि मैं तेरे नाम की  
क्या उर तेरे भी रमी धूनी मेरे नाम की
इल्म हो जाता ग़र थोड़ा इस बात का
हो जाती दवा, हवा की हर बात का
ख़त लिखने को थोड़ा कलम थाम लो
जल उठे दीप गुलमुहर तले जज़्बात का 
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।

गर्म हवाओं ने और आग भड़का दी हैं
ये अफ़वाहें हकीक़त सी लगने लगी हैं
रेशमी दस्तावेज अब मुलाक़ातों का
निग़ाहों से हुई गुफ़्तगू जो उस रात का 
तुम भी जुबां के मुंडेरों तनिक लाओ ना
तोड़ें ख़ामोशियाँ भी कलई हालात का
चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का ।
 
सद्य---अभी
कलई--राज


                                         शैल सिंह


बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...