सोमवार, 16 जनवरी 2017

देशभक्ति गीत

       एक देशभक्त सिपाही के उद्वेग का वर्णन गीत वद्ध कविता में ,

बाँधा सर पे कफ़न हम वतन के लिए
जांनिसार करना मादरे चमन के लिए ,

मत प्रिये राह रोको कर दो ख़ुशी से विदा  
भाल पर मातृ भूमि का रज-कण दो सजा
दिल पे खंजर चलातीं हरकतें दुश्मनों की
लेना सरहद पे बदला हर बलिदानियों का ,

है पिता का आशीष गर दुआ साथ माँ की
प्रिये होगी विजय मुश्किले हर हालात की
रखना इंतजार का दीया दिल में जलाकर
सलामत रहा होगी बरसात मुलाक़ात की ,

अश्कों के बाल दीप ना बुज़दिल बनाओ 
ना कजरे की धार की ये बिजली गिराओ  
पिघल न जाये कहीं मोम सा दिल ये मेरा 
विघ्न के इस प्रलय की ना बदली बिछाओ ,

महबूब ये वतन तेरा वतन से प्यार करना 

वतन की आबरू लिए सुहाग वार करना 
माँग अपनी संवारो संकल्प के सामान से
कंगना कुंकुम ना रोको न मनुहार करना ,

कायराना कमानों का न आयुद्ध जुटाओ 
आरती के थाल आज़ सम्मान से सजाओ
धरा पलकें बिछा पथ निहारती सपूत का 
फर्ज़ का यह कटघरा न मुज़रिम बनाओ ,

है ललकारता नसों में नशा इन्क़लाब का 
तूफां से लड़ते देखना कश्ती के ताब का 
व्यर्थ ये जनम जो वतन के काम आये ना 
व्यर्थ रक्त शिराएं जिसमें उबाल आये ना , 

मक्कारियों से दुश्मनों के आजिज़ हैं हम 
बार-बार क्यूँ हुए शिकार साज़िश के हम
हौसलों के आग से तबाह करना शत्रु को 
भेंजो रणसमर न नैन कर ख़ारिश में नम , 

जीना मरना राष्ट्र हित लिए आरजू है मेरी 
कर्ज़ माँ का फ़र्ज निभाऊँ जुस्तजू है मेरी 
मौत आये ग़र अर्थी पर कफ़न हो तिरंगा 
शहादत पे सुनना आख़िरी गुफ़्तगू ये मेरी , 

ये तन समर्पित सरज़मीं पे देश प्राण मेरा 
ऐसा बनूँ मैं प्रहरी लगे सारा आवाम मेरा 
रखूँ अखण्ड देश को मैं लाल भारती का 
माँ भारती की आन पर कुर्बान जान मेरा ,

वतन पे मिटने वालों दिल से तुम्हें सलाम 
मिटना हमें क़ुबूल ज़िन्दगी वतन के नाम 
वफ़ा की मेरे खुश्बू सने माटी में वतन के 
शौर्य,शूरवीरता पे मिले हमें बस ये इनाम।   

                                     शैल सिंह 


   

रविवार, 8 जनवरी 2017

नव वर्ष पर कविता

भय,आतंक से मुक्त हो नया साल ये



सन सोलह ने कहा अलविदा
नव वर्ष तेरा अभिनन्दन कर
किया जग बेसब्री से इन्तज़ार
नव वर्ष तेरा शत वन्दन कर ,

ठसक से नवागत साल ले आना
नेमतें नई खुशियों की नियामतें
पर्यावरण,देश,समाज का विकास
है नवीन श्रृंखला में हमें तराशने ,

तुझसे उम्मीदें ख़ुशियों के सौगातों की
मंशा कारनामों के नए-नए आयामों की
पुलकित मन उल्लसित हर्षित जीवन हो
महकें दसों दिशाएँ नूतन निर्मित कन हो

ठहरे हुए वक्त को पर लग जाये
नवागत वर्ष में जन-जन का उत्कर्ष हो
धर्म,मज़हब की पट जाये गहरी खाई
फिर ना सियासत,नफ़रत सा संघर्ष हो  ,

भ्र्ष्टाचार,ग़रीबी,फ़रेब,अन्याय का
प्रेम,सौहार्द,स्नेह भाव से हो निष्कर्ष
हिंसा,द्वेष,घृणा,निराशा,दुर्घटना को
नव प्रभा निगल ले ऐसा हो नव वर्ष

भय,आतंक से मुक्त हो नया साल ये
दंगा,फ़साद,क़त्ल ना कोई बवाल हो
नया साल हो तेरा ऐसा पूण्य आगमन
बढ़े प्रभुत्व देश का हर का ख़याल हो ,

नित नव रंग भरो जीवन के उपवन में
नवीन चेतना,ईमान का करो जागरण
विमल हृदय,मनोवृत्ति हो सकारात्मक
श्रम,निष्ठा,परोपकार का भरो आचरण ,

दुःख-दर्द,पीड़ा,कटुता,कलेश हर लेना
भाईचारे,सद्दभाव की चादर फहराकर
अनसुलझी सुलझाना पिछली पहेलियाँ
सुख समृद्धि बरसा देना नीहार हटाकर।

नीहार--धुंध,कुहासा
                                    शैल सिंह













शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

नव वर्ष पर कविता

'' नव वर्ष मुबारक हो सबको ''

नए साल ने दस्तक दी है
नव वर्ष मुबारक हो सबको ,

बीते बरस के खट्टे-मीठे अनुभव
भेदभाव सब बैर बिसारकर  
नव वर्ष का आदर स्वागत करें हम
खुशियों का उपहार लूटाकर ,

दिलों में प्रीत की जोत जलाएं
आत्मीयता का पुष्प बिछाकर
घर,समाज,देश हर रिश्ते संग
आह्लाद,नेह का घन बरसाकर ,

हम सब मिल यह संकल्प करें
नव वर्ष विश्व का मंगलमय हो
बहे जीवन सबके ज़ाफ़रानी बयार
दुःख,दर्द,रोग,शत्रुओं का क्षय हो ,

उमंग,तरंग से पुलकित अन्तर्मन  
हर्ष उल्लास से जीवन सुखमय हो
कल्पनाएं,अभिलाषाएं,आशाओं की
कभी ना राह किसी की कंटकमय हो ,

नव वर्ष नई स्फूर्ति नव किरण बिखेरे
खुशियों के फूल खिले घर आँगन में
हर सुबह सुहानी शुभ संदेशों की
ध्वजा फहराये हर प्रांगण में,

दैन्य,दरिद्रता,दुःख,कष्ट तमस मिटे
नाचे मोरनी कूके कोयल कानन में
साहस,सुयश,सद्ज्ञान,विज्ञान का
परचम लहराये हिन्द के दामन में,

नए साल ने दस्तक दी है
नव वर्ष मुबारक हो सबको ,

जय हिन्द ,जय भारत

                             शैल सिंह 




  

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

'' ग़ज़ल '' दोस्त की बेवफाई पर

  ग़ज़ल '' दोस्त की बेवफाई पर 


दोस्ती के तक़ाजे क्या उसने ना जाना
सरेआम रूसवा हुई दास्ताँ दोस्ती की ,

वफ़ा करते-करते चोट खाई ना होती
मलाल इतना ना होता दिल के नासूर का
तिल-तिल ना जलते यूँ बेवफ़ाई की आग में
आया होता ख़ुदगर्ज को ग़र उल्फ़त का सलीका ,

ग़र जानती दिल में बेवफ़ा के खंजर
करीब दिल के कभी इतना आने ना देती
न गैर को अपना महसूसने की नादानी होती
ना वफ़ाई के एवज में जग में ऐसी रुसवाई होती ,

खुद कुसूरवार वही खार व्यवहार में
बेबुनियाद इल्ज़ाम लगा किया है घायल
उसकी बेरंग दुनिया से ख़ुश हूँ आज़ाद हो
मेरे तो बिंदास शख़्सियत की दुनिया है क़ायल ,

मुझे तनहा सफ़र में ना समझे कभी वो 
मेरे साथ राहों पे भीड़ सदा चलती रहेगी
ऐसी नाचीज़ खोकर हाथ मलेगी अकेली वो 
उसके मग़रूर ज़ेहन में तस्वीर अखरती रहेगी ,

लब पे मेरे तबस्सुम खिले फूलों सा
उसकी ज़िंदगी में मुबारक़ हों तन्हाईयाँ 
महके संदल की खुश्बू हवा-ए-गुलिस्ताँ मेरे
क़हर ढाएं फ़रामोश के ऊपर मेरी मेहरबानियाँ ,

गरूर इत्ता बेग़ैरत को किस बात का
खुदाया बरबाद चमन उसका गुलचीं करे
गुलों के आब की रौनाई हो मेरे पतझड़ में भी
वो गन्दी फ़ितरत के अहंकार में रब सुलगती रहे ,

दर्द सीने में संगदिल के जब भी उठेगा
बेचैन वो सारी रात करवट बदलती रहेगी
अनमोल पूँजी जो वक़्त की मैंने उसपे लुटाई
उसकी बेकद्री तन्हाईयों में भी उसे डंसती रहेगी ,

मुझे हासिल जहाँ की मुक़म्मल ख़ुशी
मनहूस की डवांडोल तूफां में कश्ती रहे
फिर मुमक़िन नहीं दिल से दिल का मिलन
आफ़ताब से बढ़कर भी मेरी हस्ती औ मस्ती रहे ।

                                             शैल सिंह


                                       

रविवार, 20 नवंबर 2016

अकेलेपन में ख़ुशी की तलाश

अकेलापन भी एक एकान्त साधना है
एकान्तमिकता की मौनता भी अबूझ है
मन को कहाँ से कहाँ भटका ले जाती है
यही एकान्तमिकता कवि मौन मन को
मुक्त रूप से कवितायेँ रचने के लिए शब्दों
की समाधि में लीन कर उदासी को कविता
कहानियों के संसार में ले जा जीवन का
सार सिखा ,जता ,बता देती है । वीतरागी
मन के लिए ,छीजती हुई जिंदगी के लिए
एकान्त किसी विलक्षण औषधि से कम नहीं ,
यही कारण है कि एकान्त वास में मैं अपने
अकेलेपन और उदासी के उत्सव को ,मन रमा
कविताओं की विभिन्न विधाओं में मना लेती हूँ ,
मन होता विराट फ़लक पर रच डालूं ,उदासी
के क्षणों में हुए चुप्पी के करुणा का सागर ,मन
की कातर विह्वलता का संसार ,विलक्षण अनुभवों
का बहाव जिसका माध्यम सारे दर्द की दवा बन
जाये। कभी-कभी तो जैसे शब्दों का अकाल सा
पड़ जाता है ,मन का उद्वेलन व्यक्त करने
के लिए भाव होते हुए भी शब्द विलीन हो
जाते हैं ,भाषा करवट ले ले उकताती है पर
शब्द साथ नहीं देते और फिर निराशा जन्म
लेकर गहन उदासी पैदा कर देती है । ये शब्द
भी क्या धूप-छाँव का खेल खेलते हैं कभी तो
उबार लेते हैं अपनी अमूल्य निधि की ताक़त से
और कभी साथ न देकर विचलित कर देते हैं
रचनाओं के धरातल से । एकान्त ,अकेलापन और
उदासी भी एक अलग ऊर्जा की जमीं तैयार
करते हैं ,जिसमें होता है विशाल सोचों का भंडार
जो देती है किसी भी चीज के विश्लेषण की
क्षमता का अकूत साधन ,कल्पनावों का आसमान ,
अकेलेपन को कोसने से बेहतर है तन्हाईयों में
जिंदगी का उत्सव मना लेना ,स्वरूप जो भी हो ।
हरा-भरा संसार बिखरा-बिखरा ,एक दूजे से दूर
परिवारों का बिखरना ,रोजी-रोटी की जुगत में
घर-गांवों से लोगों का पलायन ,सभी अपने
आप में तनहा अकेले ,आज का जीवन ऐसा ही है ,
इसी में तलाशना है जिंदगी ,जिंदगी के सारे पहलू ।

                                             शैल सिंह






बुधवार, 9 नवंबर 2016

'' काला धन ''

मेरा देश बदल रहा है ,सरकार का यह सराहनीय कदम
सर आँखों पर ,भ्रष्टाचारियों तुम डाल-डाल मोदी जी पात-पात
गद्दे के नीचे,तकिये के नीचे,दीवान में रखी नोटों की गड्डियां मुँह
चिढ़ा रही होंगी ,५०० की १००० की गड्डियां टीसू पेपर के मुकाबले भी
नहीं रहीं,अब इनका क्या करोगे घूसखोरों आग लगाओगे या गंगा में बहाओगे
नहीं-नहीं गंगा भी अपवित्र हो जाएँगी ,ऐसा करो इसे चबा जाओ तुम लोगों की
पाचनशक्ति और हाजमा दुरुस्त हो जाएगी आगे और भी रास्ते अपनाने है काले
धन कमाने को। भ्रष्टाचारी कभी भी बाज नहीं आएंगे। फिर भी परिवर्तन की आंधी
में कुछ तो बदलाव आएंगे ही । सबका साथ सबका विकास ,
जय हिन्द ,जय भारत ,जय मोदी ,स्वच्छ भारत स्वतंत्र भारत ,हर-हर महादेव ,

                   '' काला धन '' 


मुझे कोई गम नहीं ,पास काला धन नहीं
मोदी का जवाब नहीं कितना है कदम सही
उड़ गयी होगी नींद किसी-किसी के आँख की
छीन गया होगा करार धनकुबेर हैं जो बेपनाह की
सुखानुभूति हो रही अपने उजले धन पर
ऐसी गाज गिरा दी है मोदी ने काले धन पर
वाह रे माँ लक्ष्मी तेरी कृपा भी क्या कमाल की
सर चढ़ जिनके बोली उन घर भी क्या धमाल की
अजीब हाल उगल सके ना निगल सके
रख सके न फेंक सके न गोरे में बदल सके
कल घर की लक्ष्मी आज कचरे की ढेर हो गई
शान बघारने वालों तेरे घर कैसी झट अंधेर हो गई ।

                                          शैल सिंह



शनिवार, 29 अक्टूबर 2016

तमस मिटाऐं अंतर्मन का



कहाँ दीपक की दीपशिखा में दंभ तनिक भी बोलो तो
कहाँ दीपक के प्रज्वलन में है अहं तनिक भी बोलो तो ,

पर्व ज्योति का आया दीप बाल करें सिंगार तिमिर का
अन्तर्मन के तज विकार आओ करें सिंगार तिमिर का ,

मावस की काली रजनी जगमग वर्तिका की ज्योति से
आलस्य,कुंठा,भय,निद्रा मिटे दीप की अमर ज्योति से ,

चेतना का द्वार खोलता माटी का दीप जला अपना तन
अज्ञानता का तिमिर मिटाता दीप लुटा कर अपना धन ,

आकाश जुगनूओं से जगमग दीपों से झिलमिल धरती
साहित्य ,कला,संस्कृति ,ज्ञान दीपशिखा उरों में भरती ,

निज की आहुति दे नित दीपक पथ आलोकित करता
स्वर्ण शिखा सी ज्योति बिखेर संसार सम्मोहित करता ,

दीप जलाएं शिक्षा का मानवता का ऊर्जा भाईचारे का
नेह के घृत में चेतना की बाती तम मिटाऐं अंतर्मन का ,

अन्तर्मन की भावनाएं,संवेदनाएं प्रज्वलित करें प्रकाश
अभिव्यंजना दीप की तब सार्थक जब हिय भरें उजास ,

हमारी संस्कृति के रंग-रंग रचा-बसा दीपों का त्यौहार
आत्म ज्योति दीपित कर मनुज घर मन्दिर दियना बार ।

                                                    शैल सिंह 

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...