मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

'' ग़ज़ल '' दोस्त की बेवफाई पर

  ग़ज़ल '' दोस्त की बेवफाई पर 


दोस्ती के तक़ाजे क्या उसने ना जाना
सरेआम रूसवा हुई दास्ताँ दोस्ती की ,

वफ़ा करते-करते चोट खाई ना होती
मलाल इतना ना होता दिल के नासूर का
तिल-तिल ना जलते यूँ बेवफ़ाई की आग में
आया होता ख़ुदगर्ज को ग़र उल्फ़त का सलीका ,

ग़र जानती दिल में बेवफ़ा के खंजर
करीब दिल के कभी इतना आने ना देती
न गैर को अपना महसूसने की नादानी होती
ना वफ़ाई के एवज में जग में ऐसी रुसवाई होती ,

खुद कुसूरवार वही खार व्यवहार में
बेबुनियाद इल्ज़ाम लगा किया है घायल
उसकी बेरंग दुनिया से ख़ुश हूँ आज़ाद हो
मेरे तो बिंदास शख़्सियत की दुनिया है क़ायल ,

मुझे तनहा सफ़र में ना समझे कभी वो 
मेरे साथ राहों पे भीड़ सदा चलती रहेगी
ऐसी नाचीज़ खोकर हाथ मलेगी अकेली वो 
उसके मग़रूर ज़ेहन में तस्वीर अखरती रहेगी ,

लब पे मेरे तबस्सुम खिले फूलों सा
उसकी ज़िंदगी में मुबारक़ हों तन्हाईयाँ 
महके संदल की खुश्बू हवा-ए-गुलिस्ताँ मेरे
क़हर ढाएं फ़रामोश के ऊपर मेरी मेहरबानियाँ ,

गरूर इत्ता बेग़ैरत को किस बात का
खुदाया बरबाद चमन उसका गुलचीं करे
गुलों के आब की रौनाई हो मेरे पतझड़ में भी
वो गन्दी फ़ितरत के अहंकार में रब सुलगती रहे ,

दर्द सीने में संगदिल के जब भी उठेगा
बेचैन वो सारी रात करवट बदलती रहेगी
अनमोल पूँजी जो वक़्त की मैंने उसपे लुटाई
उसकी बेकद्री तन्हाईयों में भी उसे डंसती रहेगी ,

मुझे हासिल जहाँ की मुक़म्मल ख़ुशी
मनहूस की डवांडोल तूफां में कश्ती रहे
फिर मुमक़िन नहीं दिल से दिल का मिलन
आफ़ताब से बढ़कर भी मेरी हस्ती औ मस्ती रहे ।

                                             शैल सिंह


                                       

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