रविवार, 30 मार्च 2014

अश्क़ों के इस समंदर से कोई उबार दे

अश्क़ों के इस समंदर से कोई उबार दे


चंद रोज की मुलाकात यादों का अम्बार दे 
घर बसा कर ज़ेहन में निशां हजार दे
किस बात का मलाल चाक-चाक दिल किया 
सीने में घुट रहा दम बता मन का गुबार दे ,

चतुरता से देके दस्तक अचानक से ग़ुम हुए  
एहसान मंद कर दिया दिल का आज़ार दे
ताउम्र सालेगा लूट सरमाया मुक़दस दिल का
बदल लिया कैसे अन्दाज़ भरोसा बेज़ार दे ,

क्यूँ बेहिसाब तल्ख़ दिल,जरा वो दीदार दे
कुछ कर सकूँ सवालात मन को क़रार दे 
पाकीज़गी पर शक नहीं ग़म इस बात का 
क्यूँ बनाया मुरीद हद तक हक़ बेकार दे ,

क्यूँ ऐसे किया गुफ़्तगू पहलूनशीं में शुमार दे  
साझा किया क्यों राजे-दिल फ़रहत फुहार दे                                    
बेरूख़ी से फेर लिया नज़र बिन संवाद के 
हैरतजदां हूँ गुजरा मेरे कूचे से बिन ईख़बार दे ,           

इतनी तो कर इनायत बता वफ़ादार दे 
किया ईश्क़ में दीवाना क्यों इज़हार दे 
दिल की धड़कने जुनूँ में धड़कने लगीं जब 
चुप्पी सी साध ली क्यों मेरे मन पर अंगार दे ,

बिखरी हुई मेरी ज़िंदगी  कोई संवार दे
अश्क़ों के इस समंदर से कोई उबार दे
दिल के तार छेड़कर किसी बेदर्द ने है तोड़ा
कोई अज़ीज बनकर आ तबियत से प्यार दे ,

कश्ती फंसी भंवर में कोई माझी पुकार दे
गुल ज़िंदगी के खिल उठें सदके बहार दे
क्या गुज़री है साजे दिल पर बुत ने ना जाना
हमदर्द बन ख़ुशी से कोई दुनियां निसार दे ,

मेरे दर्दे दिल कि दास्ताँ सुन बांहों का हार दे
टूटे दिल के तार जोड़कर फिर वही झंकार दे
सदमा-ए-क़ायनात में नग़मा ग़ज़ल गूँजे फिर 
मूर्च्छित वदन में फिर से कोई जगा फ़नकार दे ,

कोई हसरतों के रहगुज़र शबे-चिराग़ बार दे
अफ़सोस ना हो फिर कभी ऐसा ऐतबार दे
भटक रही है आरजू सहारे की छाँव को
मुसीबत हो लाख राह में बेइंतहा दुलार दे ।


आज़ार--रोग ,  बेजार--दुखी नाराज
पहलूनशीं-पास बिठाके ,फरहत-आनंद , 
इख़बार-सूचना   ,मुक़दस-पवित्र  ,सरमाया--पूंजी 
शबे-चिराग-जुगनू 

                                           शैल सिंह 

शुक्रवार, 14 मार्च 2014

''क्या दिलकशीं में हाल''

  क्या दिलकशीं में हाल

    


उमंग ले गए तुम तरंग ले गए 
ज़िंदगी के रंग सारे संग ले गए 

गुजरे हुए लम्हात की हर बात याद आये 
वादे जो ज़ज़्बात के अल्फ़ाज़ गुदगुदाए 
भींगे प्यार में दो ज़िस्म वो बरसात याद आये 
गीत ले गए तुम संगीत ले गए 
ग़ज़ल की रूबाई भी मनमीत ले गए ,

बदले वफ़ा के तुमने जो बख्शीश दी है शुक्रिया 
रंजोगम नहीं हैरान हूँ तेरी बेरुखी पे शुक्रिया   
जीस्त वास्ते जली जो चन्दन की चिता शुक्रिया  
जान ले गए तुम जहान ले गए 
ईमान बेच क़ीमती मुस्कान ले गए ,

मायूसियों की राह में दीपक जलाये बैठी 
खिले हसरतों के फूल दिल में दबाये बैठी 
जिस राह आओगे रोज़ोशब आँख लगाये बैठी 
साज़ ले गए तुम आवाज़ ले गए 
अदा नाज़ ले गए तुम अंदाज़ ले गए ,

जीवन के वियाबानों में रुदादे-ग़मों के सिवा    
कुछ नहीं नाला कशीं के पास मेरे मासिवा     
चन्द्रमुखी शाम में बस ग़म के पहाड़ों के सिवा 
आस ले गए तुम उम्मीद ले गए 
करार चैन भी संग नींद ले गए , 

यादों के बेतलब ना झरोखों में झाँकिए 
क्या दिलकशीं में हाल जरा आके आंकिए 
बावफ़ा दी सौग़ात जो दर्दे ग़म बांटिये
हँसी ले गए तुम ख़ुशी ले गए
उम्र भर की बेबसी ख़ामशी दे गए ,

जीस्त -जीवन ,  रोज़ोशब-दिन रात
नाला कशीं - हाय हाय ,रुदादे-गमों - दुःखड़ा 
मासिवा -अतिरिक्त                                            शैल सिंह 



होली पर्व पर एक संदेश

होली पर्व पर एक संदेश 

ऋतुराज का आगमन 
प्रकृति में नूतन परिवर्तन 
भंवरे फूलों पर मंडराने लगे 
नये फूल,पत्ते,वृक्ष इठलाने लगे ,

उमड़ी मादक सी अंगड़ाई 
हर मानस रौनक छितराई 
स्नेही वसंतोत्सव की बहार 
मुरझाये मन को दी उपहार , 

आया होली का परम त्यौहार 
बहे भीनी-भीनी फागुनी बयार 
चलो रंगे हम रंगों के फूहार में 
भींगे मन से मन के प्यार में ,

त्यागें मद और झूठे अहंकार, 
वर्ण,जातिभेद का कर तिरष्कार 
हास-परिहास,समरसता का पर्व ये 
रंगों की बौछार उमंगों का त्यौहार ,

आनंद,उल्लास का ये त्यौहार 
व्यंग्य,विनोद का ये त्यौहार 
भूलें द्वेष,शत्रुता और सब विकार  
ये एकता,मित्रता का त्यौहार ,

देश,समाज की सारी बुराई, 
होलिका दहन में करें विसर्जित 
सतरंगी मधुराई बरसाकर हम  
करें लें सारी खुशियां अर्जित , 

भूलें आपसी कलह तकरार 
भष्म करें ईर्ष्या और अहंकार 
चलो हमसब करें आत्म परिष्कार 
तोड़ें नफ़रत की खाई,दीवार ,

होली है बहु रंगों का त्यौहार 
हर्ष,उमंगों,उल्लासों का त्यौहार 
सभी जाति धर्मों का ये त्यौहार 
रंगें प्रेम के रंगों में हम मन के तार । 
                      'शैल सिंह'




बुधवार, 5 मार्च 2014

मोबाईल

ये मोबाईल


ये मोबाईल भी क्या जंजाल है
बेमतलब मिस्ट काल देकर
पूछता हर कोई हाल-चाल है 

बट्टा लगे बजट का इसलिए
घर वाले से बंद बोल-चाल है
हितैषी बन हमें ही लगा चूना
धूर्त टाईम पास कर निहाल है

ऐसे तो कोई ना ले खैर-खबर
इस चालबाजी का बड़ा मलाल हैं
सच कहूं मिस्ट काल देने वालों
ये मोबाईल रखना भी बवाल है ।
                                             शैल सिंह 

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

वसंत पंचमी

             'वसंत पंचमी'

आओ वसंत पंचमी पर्व मनायें प्रकृति ने ली अंगड़ाई है
वासंती परिधान का जलवा चहुं ओर खिली तरुणाई है।  

मन रंगा वसंती रंग में और रंग गई सगरी जहनियां
मलयज का झोंका बहे झूर-झूर ऋतुराज करें अगुवनियां ,मन रंगा  .... |

चन्दा लुक-छुप करे शरारत है चकोर निहारे चंदनियां
मधुऋतु की शुभ बेला ताने पल्लव ,बेली ,पुष्प कमनियां ,मन रंगा  .... |

पपिहा,कोयल,बुलबुल चहकें रूम-झूम नाचे मोर-मोरनियां
नवल सिंगार कर प्रकृति विहँसे वन भरें कुलाँचे हिरनियां ,मन रंगा  ….| 

मद में महुवा रस से लथपथ अमुवा मऊर बऊरनियां 
निमिया फूल के गहबर झहरे हरियर पात झकोरे जमुनियां ,मन रंगा  ....|

हरषें बेला,चमेली,चंपा भंवरा गुन-गुन गाये रागिनियां 
पीत वसन पेन्हि ग़दर मचाये सरसों चढ़ी कमाल जवनियां ,मन रंगा  ....| 

घर ठसक से आये वसंती पाहुन सतरंगी ओढ़ी ओढ़नियां 
पतझर सावन मुस्काया कोयल कू-कू पुलकित बोले वनियां ,मन रंगा  ....| 

टेसू,केसू,ढाक,पलास पल्लवित रूप अभिनव धरे टहनियां  
लावण्य टपकता अम्बर से सज बावरी धरा बनी दुलहिनियां ,मन रंगा  ....|

पीतवर्ण कुसुमाकर,गाँछें ,रक्तिम किंशुक कहें कहनियां  
चहुँदिशा सुवासित पराग कण से सिन्दूरी भोर किरिनियां ,मन रंगा  ....| 

स्निग्ध हो गई बगिया सारी फूले नहीं समाये मलिनियां 
किसलय फूटे पँखुरियों से अधखिली कलियाँ हुईं सयनियां ,मन रंगा  ....| 

गेंदा,गुलाब,जूही निकुंज की मखमली विलोकें चरनियां 
नथुनों घोले सुवास मौलश्री बूढ़े पीपल की करतल ध्वनियां ,मन रंगा  ....|

ठूंठ के दिन बहुराई गए पछुवा भई छिनाल दीवनियां
आँगन विरवा तुलसी मह-मह रसे-रसे बहे पवन पुरवनियां ,मन रंगा  ....| 

फगुवा का आग़ाज कुसुम्भी रंग रंगी पिया विरहिनियां 
आयेंगे परदेशी बालम सखी हो लेके नथिया साथ झुलनियां ,मन रंगा  ....| 

मथुरा ,वृंदावन ,बरसाने ,बजे ब्रज नन्दगांव पैंजनियां   
अबीर,गुलाल धमाल मचा गायें फाग अल्हड़ ग्वालनियां ,मन रंगा  ....| 
                                                                                     

                                                              'शैल सिंह'  



                                                                  


रविवार, 26 जनवरी 2014

आज का दिन हिंदुस्तान के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है ,पूरा देश धूमधाम से आजादी का जश्न मनाता है,छब्बीस जनवरी के दिन हम आजादी के परवानों को,दीवानों को अश्रुपूरित आँखों से आजादी के गीत गाकर स्मरण करते हैं और श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं उन अमर शहीदों को याद करते हुए और सीमाओं पर तैनात प्रहरियों के लिए …।

१- देशवा की ख़ातिर जान रखिके हथेली पे
    सीमवां पे देत पहरा भीषण सर्दी झेली के
    केहू क सजनवां हउवं केहू क वीरनवां हो 
     केहू क ललनवां हउवं इंकलाव बोली के । अधूरा  ....

२-देश के जवानों तुझको शत-शत नमन है
    देश के दुलारों तुझसे ये रौशन चमन है

    दुश्मनों से महफूज रखना शहीदों की विरासत
    दुवा  है  हमारी  दिल  से  रहो तुम  सलामत
    सीमाओं  पे डटके करते हम सबकी हिफाज़त
    किसी के ललन ,वीरन हैं सजन हैं अमानत ।

    आज का ये शुभ दिन कभी ना भूलाना
    इल्तजा है देश वासी तिरंगा फहराना ।
    कभी आन,बान पर ना आने देना क़यामत
    दुश्मनों के गढ़ में जाके ढाना ऐसी शामत ।
                                                           शैल सिंह
   


रविवार, 19 जनवरी 2014


                                          'दिल्ली तूं किस हाल में ' 

दिल्ली की राजनीति में आजकल जो भूचाल आया हुआ है जो उठा-पटक ,खलल मची हुई है उसकी जिम्मेदार खुद दिल्ली कि जनता है। भावावेश में बहकर दिल्ली की जनता ने जो अपने मतों के साथ खिलवाड़ किया है उसके परिणाम का हश्र खुद उन्हें समझ में आ रहा होगा,और ऐसा नहीं भी हो सकता है क्योंकि ये ज्ञानी और समझदार लोगों की जमात के लोग नहीं हैं। शीला दीक्षित सरकार का कार्यकाल देखा ही था फिर नए खिलाड़ीयों के साथ खेलकर क्या मिला,अस्थिरता कि तलवार हर पल लटकी हुई है,खींचतान मची हुई है। रोज लग रहे आरोपों-प्रत्यारोपों से निपटने में सारा समय जाया हो रहा है ,जनता कि समस्याओं का निदान करने का वक्त तो अपनी ही पार्टी कि समस्याओं से जूझने और निपटने में व्यतीत हो रहा है । भावनाओं की आंधी ने दिल्ली की जनता के सोच-समझ को कुंद कर दिया।यदि भारतीय जनता पार्टी ने इतने अधिक सीटों को हासिल किया तो निश्चित इसके पीछे बड़े,बुजुर्ग और बुद्धिजीवियों के अनुभवों का कमाल है,युवाओं और गरीबी से जूझती झुग्गी झोपड़ी वाली जनता की अपरिपक्वता ने दिल की सुनी दिमाग से काम नहीं लिया।बिन्नी के विरोधाभाषी वक्तव्य ,राखी बिड़ला और सोमनाथ की चर्चाएं ,धैर्य कि कमीं इतनी हड़बड़ाहट जैसे लगता है पल में दिल्ली कि तस्वीर बदल देंगे ,ये सब आने वाले तूफान के संकेत हैं। देहाती कहावत [ताते दूध बिलार नाचे ]  आप पार्टी ने दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन से किला क्या फतह कर लिया जैसे और राज्यों में भी झंडा गाड़ देंगे। अब शायद जनता फिर नासमझी की पुनरावृति ना करे। गली-गली में नमो-नमो का नारा गूंज रहा है एक बार बहुमत से देश कि तकदीर मोदी के हाथों आ जाये तो शायद देश कि तस्वीर बदल जाये और अछूत का धब्बा भी धुल जाए, मोदी के राज्य में ही वो सबसे ऊँचा दर्जा पाएंगे जो अपने को उपेक्षित और भारतीय जनता पार्टी को सांप्रदायिक कहते हैं ,गुजरात इसका साक्षात् उदहारण है,दुष्प्रचारों ने बरगलाने का जो काम किया है अब पढ़े लिखे ऊँची सोच वाले अल्पसंख्यक भी माजरा समझने लगे हैं,उनको हर पार्टी ने यूज किया है और भारतीय जनता पार्टी के प्रति भड़काने का काम किया है ,अल्पसंख्यक तो हमारी ताकत हैं हिंदुस्तान के लोकतंत्र में उनका भी उतना ही हक़ है जितना हमारा ,उनको भी समझना चाहिए । सपा,बसपा,कांग्रेस इत्यादि ने उनके भोलेपन का दुरुपयोग किया है अब शायद वह भी दिमाग का इस्तेमाल करेंगे,सबको आजमाने के बाद,एक बार सोचों में तब्दीली लाकर तो देखें ,आजमाकर तो देखें कि उनके मतों का कितना योगदान है। प्रधानमंत्री के रूप में मोदी जी का नारा बुलंद करते हुए हर-हर महादेव ,अल्ला रहम करे… 

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...