वासन्ती उपहार लिये कब,आओगे गांव हमारे मधुवन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन
व्यग्र शाख पर कोंपल,मुस्कान बिखेरें कैसे
बंजर मरू धरा का मन,हरा-भरा हो कैसे
कैसे आलोक बिखेरे,अंशुमाली कण-कण पर
तुम बिन चादर कैसे, प्रकृति ओढ़े तन पर
दिग-दिगन्त बिखरा दो सौरभ,निकुंज करें अभिनंदन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।
चमकूं कैसे भला बताओ,इस निस्सीम गगन में
सुन्दर,स्वप्न सजेंगे कब,बेबस शिथिल नयन में
अलि मधुपान करें कैसे,मस्त पराग के कण का
कब आगाज करोगे,विमल बहार के क्षण का
ठसक से आ सिंगार करो,सूना कितना नन्दन वन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।
कनक रश्मियां मचल रहीं,कोना-कोना चमकाने को
सौरभ को देतीं नेह निमंत्रण,महक से जग महकाने को
मेहमान वसन्ती परदेसी,कब पतझड़ संग तेरी भांवर
सहवास करूं पंखुड़ियों संग,किस्मत की लाना कांवर
तपता तन ले मृदु अंगड़ाई,सहर्ष दे जाओ नवजीवन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।
लता कुञ्ज की बदहाली,कब निखरेगी काया
कब हेमन्त की मंजुल,मोहक,पावन बरसेगी माया
वातावरण,फ़िज़ा में कैसे मदमस्त होंगी रंगरलियां
तपते विराने वन में गुम हैं सतरंगी लड़ियां
लहराता देखूँ नूर तुम्हारा,दो ना अनूठा दरपन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन।
अलमस्त चहकने को व्याकुल अधीर खग,मृग हैं
पद-रज चूमें कब तेरा,बावरे से पागल दृग हैं
चाह क्षितिज में उर्वसी सी मैं मादक इतराऊं
नव उमंग से मस्त कड़ी,मैं मल्हार की गाऊं
मधुमासी परिधान पहन,करना कलियों का आलिंगन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।
तरस रही कबसे विलास को,पुरवा की पटरानी
जैसे गांव की अल्हड़ गोरी,पनघट से भरती पानी
पीहर से सौगात लिये,चुनरी सतरंगी मनभावन
छमक-छमक तुम आना,अलबेले पाहुन आँगन
पतझड़ की सूनी गलियों में सुन कोकिल क्रन्दन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
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