रविवार, 4 सितंबर 2022

क्षणिकाएँ

          क्षणिकाएँ 


हर्षित मन से है करना अभिनन्दन 
नवल वर्ष पग धर रहा है देहरी पर
दो हजार इक्कीस ने खींची रंगोली
द्वारे वंदनवार सुमन सजा मही पर। 

हृदय में लहरों का नर्तन
प्यास हलक तक बनी रही
कश्ती खाती रही हिचकोले
मौज़ों की माँझी से ठनी रही

आस की नैया ले तूफानों से
आस्था की वल्गा थाम टकराई
क़िस्मत मँझधार ले डूबी कश्ती  
प्रभु तुझे तनिक तरस ना आई ,

जब घर में आग लगानी थी
कान सटे थे लगी दीवारों के
उस घर की हालत कैसी है
कोई थाह न लेता बेचारों के
ताक-झाँक ना कोई हलचल
अब ना कोई हरक़त गलियारों के

बहुत कुछ मिला पर सुकूं ना मिला
ख़्वाहिशों की लम्बी कतारों के आगे
कब होंगी ख़तम ज़िन्दगी की जरूरतें
जिए जी भर उमर कहाँ ख़वाबों के आगे ,

दर्द घुल बह ना जाये कहीं प्यार का 
इसलिए आँखों का पानी ना बहने दिया
क़तरा-क़तरा मोहब्बत की निशानी समझ 
पलकों की पनाहों में ऐ फ़रामोश रहने दिया

नयनों के चंचल चितवन में पढ़ ली,क्या है मन की भाषा
अधरों के कम्पन से सुन ली,क्या है अंतर की अभिलाषा
क्यूँ पलकें नीची कर जतलाती हो कि प्रीत हुई ना मुझसे
पर अलकें लाज से मुखड़ा चूम,कह दीं मन की मीमांसा ।

कितने मौसम आए गए,हम ना बदले बदल गए वो
हम वहीं के वहीं रह गए,और भी दुगुने संवर गए वो
हृदय पर राज किये कभी जो कर कहीं बसर गए वो
थे जितने स्वप्न सजे नयन में सिरे से उसे कतर गए वो ।

हम मिलें ना मिलें खूबसूरत स्वप्नों पर छोड़ देते हैं
अनिश्चित कालीन प्रतिक्षाओं से मोहब्बत कर लेते हैं

शिद्दत से तराशें गर हम हौसलों को
कद आसमां का खुद-बख़ुद झुक जायेगा
राह कोसों हों मन्जिल की चाहे मगर
खुद मंजिलों पे सफर जाकर रुक जायेगा।

मीमांसा--विचार या मनन 

शैल सिंह 

2 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार(०५-०९ -२०२२ ) को 'शिक्षा का उत्थान'(चर्चा अंक-४५४३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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