रविवार, 27 मार्च 2022

" रिश्तों पर कविता "

              " रिश्तों पर कविता "


गिनती की साँसें हैं पल में माटी में मिलना तय है 
चार दिन की ज़िंदगी है रखना क्यों अहं औ मैं है 

टूटकर बिखरती जा रहीं हर शाख़ से हैं डालियाँ
रिश्तों की दिनों-दिन कमज़ोर हो रही हैं बालियाँ
था कभी जिन रिश्तों में  मृदुल मखमली एहसास 
उनमें घुलती जा रहीं कड़वाहटें कहाँ गई मिठास ।

दुश्मनों से बढ़ दुश्मन हुये जा रहे अपने ही लोग
हर पग जो साया से थे साथ तोड़ रिश्तों की डोर 
पड़ती जा रहीं दरारें उर में,खींची जा रही दीवार
तोड़ धागे ऐतबार के बो काँटे नफ़रतों की हजार ।

रक्त के अपने रिश्तों से हो रहा परायों सा बर्ताव
बेबुनियाद के रिश्तों से रख के अपनों सा लगाव
इस तरह उलझ ना रिश्तों से मन में गाँठ बाँधिए
रिश्ते जीवन के अनमोल अंश अहमियत जानिए ।

क्या मोल रिश्तों का जब-तक समझ में आएगा
हो चुकी होगी देर बड़ी हाथ मलमल पछताएगा
होता काँच से भी कोमल  सम्बंधों का महाजाल
ग़र सम्भाल कर रखें इसे हो जाये जीवन निहाल ।

जिन रिश्तों को निभाने में गुजर जाती उम्र सारी
वही हो जाते स्वार्थी, ख़ुदगर्ज़ यही तो कष्ट भारी 
ग़र ना छोड़े ज़िद्द,अकड़ साथ,हाथ छूट जायेगा
बिखरे ग़र माला के मोती,कुछ नज़र ना आएगा ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
               शैल सिंह 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 28 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    उत्तर
    1. आपका आभार रविन्द्र जी मेरी रचना को http://halchalwith5links.blogspot.in में शामिल करने के लिए।

      हटाएं
  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28 मार्च 2022 ) को 'नहीं रूकती है चेहरे पर सुबह की नरम धूप' (चर्चा अंक 4383) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. "जिन रिश्तों को निभाने में गुजर जाती उम्र सारी
    वही हो जाते स्वार्थी,ख़ुदगर्ज़ यही तो कष्ट भारी
    ग़र ना छोड़े जिद,अकड़ साथ,हाथ छूट जायेगा
    बिखरे ग़र माला के मनके,कुछ नज़र न आएगा"।

    बहुत ही शानदार प्रेरक सार्थक सृजन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका किन शब्दों में आभार व्यक्त करूँ मेरी रचना पर प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत-बहुत आभार

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