मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

" वसन्त ऋतु पर कविता "

'' वसन्त ऋतु पर कविता "


शरद ऋतु  की कर विदाई 
ऋतुराज अतिथि गृह आये
पतझड़  को  नवजीवन  दे
मुरझाये प्रकृति संग हर्षाये ,

ऋतुपति हैं ऋतुओं के राजा 
इनकी शोभा अतीव निराली
अनुपम सौंदर्य  से परिपूरित
बिखेरें दिग्-दिगन्त् हरियाली ,

मधुमाती  गंध  से वातावरण 
मह-मह माधव  ने  महकाया 
वसुन्धरा  पर  मुक्त पाणि से
अगणित अपूर्व नेह बरसाया ,

अम्बर ने  मादक  रंग बिखेरा
छवि विभावरी करे सम्मोहित 
कली  जूही  की  प्रियतम  के
बंध आलिंगन  हुई आलोड़ित ,

मधुमासी नेह कलश में भींग 
महक उठी प्रमुदित अमराई
लद बौराया  अमुवा मंजर से 
कोयल चहक कुहुक इतराई ,

क्यारी-क्यारी बिछी हरीतिमा
बाग़ सोलह सिंगार कर हुलसे
प्रदीप्त सौंदर्य से दसों दिशायें 
अलौकिक आह्लाद उर विहँसे ,

महुआ नख-शिख रस में मात
टप-टपा-टप   चूवे  जमीं  पर
श्वेत सुमन से छतर-छतर नीम
कौमार्य से झरे इठला मही पर ,

सुआ, सारिका,सारंग, शिखी
पा वासन्ती वात्सल्य हैं हर्षित
मातंग, मराल, हारिल, मृगेन्द्र 
देख विपिन लावण्य हैं गर्वित  ,

गेंदा, गुलाब, गुड़हल, टगर 
के बहुर  गये  दिन फिर से
चम्पा,चमेली, बेला,हरगौरा 
कमनीयता मोगरा से बरसे ,

टेसू,पलाश,बांस,अमलतास
लगे नयनाभिराम गुलमोहर 
मर्मर ध्वनि गूँजी पीपल की 
वृंदावनि प्रांगण लगे मनोहर ,

पीकर पराग कण तितलियाँ
झुण्डों में,झूम  रहीं मस्ती में
डोलें  इर्द-गिर्द  रसवंती बन 
कानन,उद्यानन की बस्ती में ,

नव पल्लव  नव कुसुमों से
सज  झूमीं   विटप  लताएं
हरा घाघरा पीत चूनर ओढ़
दुल्हन बनी सिमट शरमाएं ,

धानी परिधान पहन सरसों 
पियर प्रसून के घूंघट ताने
मतवारे  भंवरे  रूपसी  के
लगे अगल-बगल  मंडराने ,

पुरवा पंख डोला हुई पागल 
चारों  पहर   हुआ   रूमानी
मुस्काईं  कलियाँ ,झूमीं बेलें
बहक  हुई पछुआ  मस्तानी ,

फुदकने लगीं  गौरैयां  आँगन 
कलरव गूंज  उठी विहंगों की
मन में उठने लगी उमंग तरंगें 
फागुन  के  बहुविध  रंगों  की ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

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