मंगलवार, 28 जनवरी 2020

" एक दीवाना ऐसा भी "

" एक दीवाना ऐसा भी "

हटा दो लाज का  पहरा     
सबर आँखों का जाता है           
मेरी बेचैन चाहत को               
अदा नायाब भाता है । 

काली घटा सी जुल्फें    
क्या बिजली गिराती हो        
मैं मदहोश हुआ जाता          
ग़जब चिलमन गिराती हो । 

चुराकर चैन सोती तुम      
सपन की मीठी बाँहों में         
मेरी पल भर कटी ना रातें             
मगन बोझल निगाहों में । 

अगर तुम ला नहीं सकतीं   
जुबां पर दिल की वो बातें       
निगाहों से बयां कर देतीं         
जुबां और दिल की वो बातें ।

तेरे खंजर नयन नशीले    
कहीं जान ना मेरी ले लें       
सुर्ख लबालब होंठ रसीले              
सरेआम मोहब्बत ना पीले ।  

आँखें मदभरी मधुशाला         
तिल क़ातिल गाल गुलाबी है             
अकारथ ही हुआ मतवाला                
रंग-ढंग चाल नवाबी है । 

पिलाकर मय निग़ाहों का     
ना यूं नज़रें झुकाकर चल       
दबाकर दिल की चाहत को           
ना दिल को यूं जलाकर चल। 

तुझे देखूं तो आता चैन    
नहीं तो दिल को बेचैनी       
क़यामत क्यों हो ढाती यूं             
बता दो ना वो मृगनयनी । 

रुसवाई का डर है ग़र    
ग़र है ख़ौफ ज़माने का        
तो बेख़ौफ इनायत कर           
कर परवाह दीवाने का ।  

ख़ुदा की कसम ज़न्नत      
तेरे क़दमों में बिछा दूंगा       
अगर तूं चाँद मांगे जानम            
ज़मीं पर ला दिखा दूंगा ।  

कसीदा तुम गज़ल की हो    
हो लय,सुर,ताल नगमों की         
इन्तेहा प्यार का ग़र चाहो            
तो ले लो सात जन्मों की । 

कर दीदार जालिम खोल    
झरोखा दिल के दरपन का       
क्या हालत है रोज़ो-शब           
दीवाने दिल की धड़कन का । 

कहते लोग परेशां मुझको    
कहाँ एहसास खुद का मुझको         
हाँ औरों से सुना है जानेमन           
मेरे हालात मालूम तुझको । 

ग़र तुम पास होते दिलवर     
समां का लुत्फ लेता छक कर           
फिजां भींगी सुहाना मौसम               
होता ग़र बांहों में लेता भर कर।  

ख़त लिखना नहीं वाज़िब    
दिलो-जां में हो तुम रहती        
तुझे हर हर्फ़ मालूम ख़त के              
सांसों में हर पल समायी रहती।  

        रोज़ो-शब----दिन-रात     

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