चुनौतियों से लड़कर जीना अब तो मैंने स्वीकार लिया
मुक़द्दर के शहर में भटक रहा है,मेरे जीवन का लक्ष्य
मित्र कहाँ से कहाँ पहुँच गए,थे जो कभी मेरे समकक्ष,
मित्र कहाँ से कहाँ पहुँच गए,थे जो कभी मेरे समकक्ष,
हैरां हूँ खुदा के फैसले पे,था जो सबसे श्रेष्ठ सबमें दक्ष
उसके साथ अनीति क्यूं ऐसी पूछ रही प्रश्न बनके यक्ष,
रही ना ताक़त संघर्षों की मन का विश्वास भी हार गई
अखर रहा जीवन भर की ही सारी मेहनत बेकार गई,
उम्र के इस ढलान पे आ चाहतों ने भी दम तोड़ दिया
चुनौतियों से लड़कर जीना अब तो मैंने स्वीकार लिया ,
असफ़लता से हार न मान दुश्मन के चाल से हार गई
साथ मेरे ये बार-बार हुआ जालसाजी का शिकार हुई।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
हम किसी न किसी जाल में फंस कर रह जाते हैं
जवाब देंहटाएंऔर हमारी क्षमताएं दम तोड़ देती है।
उत्तम रचना।
पधारें 👉👉 मेरा शुरुआती इतिहास
रोहित जी बहुत बहुत धन्यवाद आपको आपकी रचना पढ़ी काबिलेतारीफ़ शायद आपके ही दौर जैसा हम लोगों का भी दौर था मास्टर जी ने जो विवरण दे दिया वही आज तक चल रहा है चाहे वह बढ़ाकर लिखी गयी हो या घटाकर पैदाइश का सही आंकड़ा तो खुद तब की जन्मदात्री भी जानती थीं
हटाएंजीवन में ऐसे पल आते हैं कि लगता है अंधेरा छाने को है आशा का सूर्य डूब गया होता है ,
जवाब देंहटाएंपर के किसी कोने में होता है एक हौसलाज्ञबस उसके सहारे मानव फिर द्वंद में उतरने का साहस बटोर लेता है।
अप्रतिम सृजन जहां निराशा मुखरित हो आई है ।
भावों को स्पष्ट करती रचना।
धन्यवाद आपका,कभी-कभी काबिलियत मायने नहीं रखती चाटुकारिता आड़े आ जाती हैं
हटाएंजब आप सीढ़ी के ऊपरी पायदान पर हों और कोई नीची पायदान वाला टांग खीच ले तो भावनाओं को चोट पहुँचेगी और कविता आधार होगी उद्वेलित को शान्त करने के लिए ।
नमस्ते श्वेता जी ,आपका बहुत बहुत आभार जो आपने मेरी रचना को इस काबिल समझा
जवाब देंहटाएं