शब्दों के अभाव पर कविता
शब्दों बिन बेजुबां वाक्य हैं
रचना रखूं किस शिलान्यास पर
अस्मर्थ,बेजान पंक्तिबद्ध कतारें
मौन शब्दों के उपहास पर ,
क्षत-विक्षत हो शब्द शांत हैं
भाव दिग्भ्रमित वनवास पर
अवचेतन की प्रसव वेदना
सही न जाये,कलम उपवास पर ,
गीतों के बोल ठूंठ पड़े
अधरों के कैनवास पर
शीतल से अहसास बन्दी जैसे
कल्पनाओं के आवास पर ,
अधरों के कैनवास पर
शीतल से अहसास बन्दी जैसे
कल्पनाओं के आवास पर ,
अक्षर-अक्षर दुलराया
अभिव्यक्ति के विभास पर
काव्य के अवयव गण सभी
रस,छंद,अलंकार हैं अवकाश पर ,
सुप्त पड़ी लेखनी की वाणी
सुप्त पड़ी लेखनी की वाणी
मसि,कागज गये सन्यास पर
घोलूं किसमें कल्पना का लालित्य
घोलूं किसमें कल्पना का लालित्य
टूटन,मिलन,वियोग के परिहास पर ,
करूँ प्राण-प्रतिष्ठा भावदशा की
किन शब्दों,बिम्बों के मधुमास पर
शब्द हो गए विलुप्त या विस्थापित
या गये शब्द विधान के अभ्यास पर ,
कैसे गूंथूं मन का अवसाद
शब्दाभाव में किस विश्वाश पर
किन शब्द कलेवरों में बेसुध पीर
रचूं जग के करते हुए अट्टहास पर ,
भाव नदी का सोता सूखा
कहाँ निष्ठुर हर्फ़ों को आभास पर
देख नयनों में भी जल प्लावन
मिला निर्मम शब्दों से बस ह्रास पर ,
बिखरते,दरकते,रूठे रिश्तों को
कहाँ करूं वर्णित किस आस पर
कैसे अकथ विरह,वेदना,अंतर्दाह
रखूं श्रीहीन शब्दों के विन्यास पर ,
कहाँ श्रृंगार का माधुर्य बिखेरूं
शब्दों के किन अनंत आकाश पर
कैसे जीवन का वृतान्त लिखूं
निस्तब्ध शब्दों से मिले हताश पर ,
कर में अधीर,रचना प्रवित्त लेखनी
शब्दों को रही खराद,तराश पर
शब्दों की चोरी में हैं संलिप्त लुटेरे
ख़त्म होने नहीं देते मेरी तलाश पर ,
पुचला कर आलिंगन भर सहलाया
पर फटके ना तरस खा शब्द पास पर
शब्दों बिन कितना निरूपाय सृजन
लगता प्रार्थनाएँ,मिन्नतें गईं कैलाश पर।
गण--टोली,गिरोह, विभास--चमक,दीप्त
गण--टोली,गिरोह, विभास--चमक,दीप्त
ह्रास--क्षमता,अभाव विन्यास--सजाना,संवारना
शब्द विधान--निर्माण,रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
भाव नदी का सोता सूखा
जवाब देंहटाएंनिष्ठुर हर्फ़ों को कहाँ आभास पर
देख नयन में जल प्लावन भी
निठुर शब्दों ने दिया बस ह्रास पर ,.....
अत्यंत ही प्रभावशाली रचना। आपकी लेखन शैली भी भीड़ से हटकर है। साधुवाद व शुभकामनाएं आदरणीय ।
आदरणीय आपको जितना भी धन्यवाद दूं कम है
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