" देश का अन्तरद्वन्द "
न मोती है न ओस की बूंदें हैं,
ये खारे आँसू अन्तस के शान्त समंदर की
विकराल,वीभत्स उफनती हुई लहरें हैं,
जो पाकिस्तान की तबाही का
खौफनाक इतिहास रचेंगी।
देश अपने कलेजे के टुकड़ों की
शहादत पर मातम नहीं मना रहा
बल्कि अन्तर का कोलाहल और चित्कार देशवासियों
के दिलों में पाक की बर्बादी का जुनूनी जोश भर रहा,
शहीदों की वीरगती पर हम नम आँखों से श्रद्धांजली नहीं,वरन प्रतिशोध की ज्वाला से पाकिस्तान को
नेस्तनाबूद करने की कहानी लिख रहे हैं।
तिरंगे से सुशोभित हमारे शहीदों की ये कुर्बानी नहीं,
बल्कि देश को जगाने की उनकी जुबानी इबारत है ,
वतन के दुलारों का बलिदान शोक मनाने के लिए नहीं
अपितु देशभक्त देशवासियों के लिए एक शपथपत्र है,
कि अब तक जितने भी लालों के खूं से भारत माँ का
आँचल लाल हुआ है उनका सूद समेत कर्ज उतारना है,
हम अपने शहीदों की अन्तिम यात्रा पर उन्हें सलाम नहीं
बल्कि वादा कर रहे हैं कि आपके वलिदान का जश्न मनायेंगे पाकिस्तान को बर्बाद कर,तबाह कर लातों के भूत पाकिस्तानी कायर सियारों की लाशों को आग के हवाले कर उसकी लपटों से उनके गद्दार आकाओं को
जलायेंगे,कुढ़ायेंगे। पहले तो घर में पाले संपोलो की आंतें निकाल उनकी मांओं की हथेली पर रखना है
जिनकी नाक के नीचे उनकी औलादें हमारे देश का
खा पीकर डकारें लेते हैं और पाकिस्तान जिन्दाबाद
के नारे लगाते हैं हमारे टुकड़ों पे ही पलकर हमारे
फौजी भाईयों को आँखें तरेरते हैं,धिक्कार है देश के गद्दारों को भी जो अपनी माँ का नहीं किसी और का क्या होगा।
जयहिन्द जय भारत
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