एक सैनिक की चिट्ठी माँ के नाम
ख़त के मजमून क्या हैंपढ़ने की स्थिति में होते नहीं
धैर्य का पुलिन तोड़ बहा मत करो
इस तरह खत माँ लिखा मत करो,
टपकी हुई बूंदें,छितरी हुई स्याही
बिखरे हुए शब्द अस्पष्ट
कातरता से भींगे सिमसिम से पन्ने
माँ एक भी हर्फ़ पढ़ ना सकूं
इस तरह विक्षिप्त हो जाता हूं माँ
वात्सल्य से सींचा,भावनाओं से भींगा
अहसासों में पिरोया,जज्बातों से गीला
अबसे सादा कागज लिफाफे में भर भेजना
तेरीे हर अभिव्यक्तियां महसूस कर लूंगा माँ ।
बिखरे हुए शब्द अस्पष्ट
कातरता से भींगे सिमसिम से पन्ने
माँ एक भी हर्फ़ पढ़ ना सकूं
इस तरह विक्षिप्त हो जाता हूं माँ
वात्सल्य से सींचा,भावनाओं से भींगा
अहसासों में पिरोया,जज्बातों से गीला
अबसे सादा कागज लिफाफे में भर भेजना
तेरीे हर अभिव्यक्तियां महसूस कर लूंगा माँ ।
तेरी नसीहतों का पालन करता हुआ
मुस्तैदी से ड्यूटी निभाता हूँ माँ
मुस्तैदी से ड्यूटी निभाता हूँ माँ
तेरे स्नेहिल हाथों का निवाला महसूस कर
रूखा सूखा कुछ भी निगल लेता हूँ माँ
रूखा सूखा कुछ भी निगल लेता हूँ माँ
मुंह पोंछ लेता हूं आभास कर तेरे आंचल का छोर
सीवान,बियाबान जंगल में भी
खुले आसमान तले सर्दी-गर्मी में भी
कहीं भी सो लेता हूं,नरम गलीचा समझ
तेरे हाथों की थपकियों का कर अहसास माँ ।
सीवान,बियाबान जंगल में भी
खुले आसमान तले सर्दी-गर्मी में भी
कहीं भी सो लेता हूं,नरम गलीचा समझ
तेरे हाथों की थपकियों का कर अहसास माँ ।
इस तरह आद्र होकर मत हाल पूछा करो
खत का स्वरूप देख आंदोलित हो जाता हूँ मांँ
गडमड हो जाते हैं हर्फ़ आंसूओं के तालाब में
आड़ी-तिरछी लगतीं तहरीर की हर पंक्तियां
बयां करते हैं ख़त हाल तेरा जो माँ
गडमड हो जाते हैं हर्फ़ आंसूओं के तालाब में
आड़ी-तिरछी लगतीं तहरीर की हर पंक्तियां
बयां करते हैं ख़त हाल तेरा जो माँ
बिखर जाऊंगा मैं हौसला मुझको दो
देश की रक्षा लिए है शत्रुओं का संहार करना
लम्बी उमर की रब से दुआ बस करो
इस तरह खत माँ लिखा मत करो।
देश की रक्षा लिए है शत्रुओं का संहार करना
लम्बी उमर की रब से दुआ बस करो
इस तरह खत माँ लिखा मत करो।
ऋण तेरे दूध का आया अदा करने माँ
उस अनमोल दूध की दुहाई ना देना
कहीं विचलित ना हो जाऊँ महान कर्म पथ से
देश पर मंडरा रहे घातों के बादल घेनेरे
चौकसी में तैनात दिन-रात सीमाओं पर
प्राण रखकर हथेली पर हम लाल तेरे
शत्रुओं का विनाश करने की मन में है ठानी
ऐसी रवानी पे माँ फख्र किया बस करो
इस तरह ख़त माँ लिखा मत करो।
कहीं विचलित ना हो जाऊँ महान कर्म पथ से
देश पर मंडरा रहे घातों के बादल घेनेरे
चौकसी में तैनात दिन-रात सीमाओं पर
प्राण रखकर हथेली पर हम लाल तेरे
शत्रुओं का विनाश करने की मन में है ठानी
ऐसी रवानी पे माँ फख्र किया बस करो
इस तरह ख़त माँ लिखा मत करो।
शैल सिंह
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 06 जून 2020 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
अबसे सादा कागज लिफाफे में भर भेजना
जवाब देंहटाएंतेरीे हर अभिव्यक्तियां महसूस कर लूंगा माँ । बहुत सुंदर!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं