इश्क़ की दीवानगी
दीवाना किया आशिक़ी ने
बेइंतहा प्यार में
तप रही है देह सारी
इश्क़ के बुख़ार में ,
बस में नहीं दिल जरा भी
होश नहीं ख़ुमार में
निग़ाहें टकटकी साधे रहें
तप रही है देह सारी
इश्क़ के बुख़ार में ,
बस में नहीं दिल जरा भी
होश नहीं ख़ुमार में
निग़ाहें टकटकी साधे रहें
किसी के इंतज़ार में ,
ख़्वाब बुनते बीतते दिन
दिल लगे ना कारोबार में
आँखें इक झलक भी चार हों
खिल जाते दीदार के बहार में ,
वफ़ा भी करे ग़र बेवफ़ाई
आनन्द आए तक़रार में
मनाना,रूठना शिकवे,गीले
रोज मनुहार करते प्यार में ,
भय बदनाम होने का भी
लब कर देता ज़िक्र बेक़रार में
ख़्वाब बुनते बीतते दिन
दिल लगे ना कारोबार में
आँखें इक झलक भी चार हों
खिल जाते दीदार के बहार में ,
वफ़ा भी करे ग़र बेवफ़ाई
आनन्द आए तक़रार में
मनाना,रूठना शिकवे,गीले
रोज मनुहार करते प्यार में ,
भय बदनाम होने का भी
लब कर देता ज़िक्र बेक़रार में
गढ़ते तारीफ़ों के क़लमें सदा
इशारों से बेनाम के बाज़ार में ,
इश्क़ में मौजे हैं,तूफां है लेकिन
इश्क़ इक सजा भी है पठार में
दिल ये नादान जानता ही नहीं
काँच ही काँच प्यार के दयार में ,
फासला नहीं फूलों,काँटों में
अड़चनें मोहब्बतों के ज्वार में
मुरादें पूरी हो मर्ज़ी ख़ुदा की
बेतहाशा ग़म भी है इक़रार में।
शैल सिंह
इशारों से बेनाम के बाज़ार में ,
इश्क़ में मौजे हैं,तूफां है लेकिन
इश्क़ इक सजा भी है पठार में
दिल ये नादान जानता ही नहीं
काँच ही काँच प्यार के दयार में ,
फासला नहीं फूलों,काँटों में
अड़चनें मोहब्बतों के ज्वार में
मुरादें पूरी हो मर्ज़ी ख़ुदा की
बेतहाशा ग़म भी है इक़रार में।
शैल सिंह
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