बुधवार, 3 जनवरी 2018

'' चार जवानों की शहादत पर कविता ''

 चार जवानों की शहादत पर कविता 

जाते-जाते साल के आखिरी दिन सन सत्रह
दे गया ज़ख्म गहरा,कैसे मनाएं साल अट्ठरह ,
दर किसी के आयी सज अर्थी कोई जश्र में डूबा 
देश के लोगों का जश्न मनाना लगे बड़ा ही अजूबा ,
ऐसे ताजा तरीन ख़बर पे भी किसी ने नज़र न डाली
चार जवानों के शोक पर लोग कैसे मना रहे खुशहाली ।

मन बिल्कुल नहीं लगता नव वर्ष का जश्न मनाने में
सरहद पर हुए लाल शहीद देश की गरिमा बचाने में ,
बन्द ताबूत में ओढ़ तिरंगा कितनों के लाल आये हैं घर
जश्न मनाने वालों तुझपर भी तो इसका होता कोई असर ,
रो-रो तेरा भी होता बुरा हाल ग़र खुद का नयन सूजा होता
तब भी तुम जश्न मनाते क्या निज के घर का दीप बुझा होता ,
जिनकी मेंहदी,महावर,बिंदिया,सिन्दूर धुल दिए गये हैं पानी से
जिनके सुहाग ने दी शहादत देश लिए अपनी अनमोल क़ुर्बानी से ,
उन घरों में पसरे सन्नाटे,सूनी चौखट का दुःख तो आभास किये होते
आह ऐसी मर्मान्तक पीड़ा का ओ हृदयहीनों थोड़ा अहसास किये होते।

जिनके घरों में अर्थी भेज नए साल ने दी है दस्तक़ 
बलिदानियों पे संवेदनहीनों नवाना चाहिए था मस्तक , 
शत-शत नमन शहीदों,देश तुझे शोकातुर होना चाहिए
जिस घर में मातम का आलम,भान ग़म का होना चाहिए , 
जिनके बच्चे बिलख रहे हैं आज़ रो रहीं खा-खा पछाड़ें माँ
फट जाता सीना दहाड़ पर मूर्छित हो भार्या गिरती जहाँ-तहाँ ,
नव वर्ष पे दी सौग़ात जो पाक ने उसे ईश्वर कभी ना माफ़ करे
घातियों पे इतना बरपायें क़हर कि ताक़त की आंक के थाह डरे ,
पाक तेरा भी घोर हो अमङ्गल नव वर्ष में हम सबकी कामना यही
बुझाना तेरे हर घर का चराग़,करना नेस्तनाबूद है मनोकामना यही।


                                                                   शैल सिंह


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