गुरुवार, 17 अगस्त 2017

देश पर कविता कहीं दुर्गन्ध नाक में दम ना कर दे

 देश पर कविता  कहीं दुर्गन्ध नाक में दम ना कर दे


उर्दू है तहज़ीब वतन की
हिन्दुस्तान का हिन्दी है श्रृंगार
सांस्कृतिक सभ्यता संस्कृति है
बाईबल,गीता,ग्रन्थ,कुरान हैं हार,    

हिंदुस्तान की न्यारी धरती हमारी 
जहाँ भाई-चारा आपस में सौहार्द्र 
जहाँ भिन्न बोलियां,वेश भूषा भाषाएं
विभिन्न धर्मों के समावेश का प्यार  ,

जहाँ इबादत,प्रार्थनायें गुरु ईसा के साथ   
जहाँ भोर अजान की,गूंजे चालीसा का पाठ 
जिस सभ्यता ने विश्व को दिखाया आईना 
उस मुल्क़ को सेंध लगा दुश्मन रहा है बाँट  ,

भारत माँ के विस्तृत आँचल को आज 
सियासत की गन्दगी ने दूषित कर डाला
छल,छद्म का बिछाकर जाल चौमुखी
जनमानस की आत्मायें कुत्सित कर डाला ,

भारतीय मूल्यों को ताक़ पर रखकर       
कुछ लोग देख रहे मुल्क़ का चीरहरण 
करते किस आजादी की मांग ये देशद्रोही 
ज़मीर बेंच देश का चाह रहे हैं विध्वंसकरण,  

जागरुक होना है दुष्परिणाम से पहले
भटके लोगों का हृदय परिष्कार करना है
कहीं दुर्गन्ध नाक में दम ना कर दे
देश के गन्दे कीड़ों का बहिष्कार करना है ,

                                       शैल सिंह

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