मेघ से उलाहना
उमड़-घुमड़ घनघोर घटाएंनख़रे दिखा-दिखा लौट जाती हैं
चाहतों का घोर उल्लंघन कर
जी भर-भर मन को जलाती हैं ,
चाहतों का घोर उल्लंघन कर
जी भर-भर मन को जलाती हैं ,
देखें कब बूंदों के सोंधेपन से
भरेंगे नथुने,घटा बोध कराती है
कब रिमझिम बारिश की फुहारों से
कब रिमझिम बारिश की फुहारों से
सुखी धरती की कोख भींगाती है ,
ना जाने कब अँधेरों में टिप-टुप
कहीं-कहीं बूंदा-बांदी कर जाती है
दूसरे ही पल तैश में आकर
ऊष्मा पुनः अपना रौब दिखाती है ,
दूसरे ही पल तैश में आकर
ऊष्मा पुनः अपना रौब दिखाती है ,
लगे हण्टर सी तपन सूर्य की
रेत सी वसुंधरा तड़फड़ाती है
नभ पर लगी सबकी है टकटकी
जाने ये किस ऐंठन में भाव खाती है ,
बेहाल हैं जीव-जंतु,वन्य प्राणी
देखें कब ताज़पोशी वर्षा की कराती है
बेहाल हैं जीव-जंतु,वन्य प्राणी
देखें कब ताज़पोशी वर्षा की कराती है
जरूरत के मुताबिक कभी भी ये
नहीं नाशपीटी रंग में आती है ,
कभी अनहद बरस-बरस सब कुछ
कहीं बाढ़ का क़हर कहीं मार सूखे की
कभी-कभी बेढब ये व्यवहार दिखाती है
मनबढ़ सैलाबों में बहा ले जाती है ,
बरस सरसा जाओ सीना धरती का
मिटाओ पल में ऊष्मा क्यों सताती हो
बनती क्यों कोपभाजन हर जुबान की
कड़क-कड़क कर अवसाद भर जाती हो ,
सुनो गुहार मनहर मेघराज जी
घटा दिग्भ्रमित कर चक्र्व्यूह रचाती है
छलकाओ ना जरा गागर वृष्टि की
सूखे कंठ से मेंढकी टर्रटराती है।
शैल सिंह
घटा दिग्भ्रमित कर चक्र्व्यूह रचाती है
छलकाओ ना जरा गागर वृष्टि की
सूखे कंठ से मेंढकी टर्रटराती है।
शैल सिंह
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